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गौरवशाली इतिहास का गवाह है देवनगढ़, खुदाई के दौरान मिली कई मूर्तियां - पुरातत्व विभाग

देवनगढ़ नवादा के पुरातत्व के दृष्टिकोण से सबसे पुरानी जगह है. यहां खुदाई के दौरान प्रथम शताब्दी में बनी बलराम, वासुदेव और कांसा की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिसे आज भी पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है.

नवादा का देवनगढ़
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Published : Oct 18, 2019, 11:08 AM IST

नवादा: जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पकड़ीबरावां-कौआकोल मार्ग पर स्थित देवनगढ़ अपने गौरवशाली इतिहास का गवाह है. यहां खुदाई के वक्त कई सारी प्राचीनकाल की मूर्तियां मिली हैं. देवनगढ़ में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खनन कराया गया था पर दुर्भग्यवश अब यह प्रक्रिया थम गई है.

देवनगढ़ में खुदाई के दौरान प्रथम शताब्दी में बनी बलराम, वासुदेव और कांसा की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिसे पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है. जब 1988 में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खन्न किया गया तो 11वीं शताब्दी की धातु निर्मित बौद्ध देवी मंजूश्री की प्रतिमाएं मिली थी. इसके अलावा कई प्रकार के पुरावशेष भी मिले थे.

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देवनगढ़ में खुदाई के दौरान मिली हैं कई मूर्तियां

2017-18 में फिर हुई खुदाई
करीब 20 साल बाद एकबार फिर पुरातत्व विभाग की ओर से 2017-18 में खुदाई की गई तब वहां से एक चौखट मिली. लोगों का कहना है कि खुदाई के वक्त यहां शिवलिंग मिला था. इलके अलावा भगवान शिव और गणेश की मूर्ति मिली थी. इससे यह साबित हो गया कि यहां कुछ न कुछ भारत के गौरवशाली इतिहास का पुरावशेष जरूर छिपा है. लेकिन जिस हिसाब से जिज्ञासा के साथ काम वहां होनी चाहिए वो नहीं हो सका. फिलहाल काम ठप्प पड़ा है.

जानकारी देते विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी

क्या कहते हैं इतिहासकार
युवा इतिहासकार व विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी बताते हैं कि देवनगढ़ नवादा के पुरातत्व के दृष्टिकोण से सबसे पुरानी जगह है. पहली शताब्दी का सबसे पहला अवशेष यहीं मिला है. उसके बाद प्रागैतिहासिक काल का भी अवशेष मिला है. पहली शताब्दी की बनी बलराम वासुदेव और कांसा की मूर्ति आज भी पटना म्यूजियम में संरक्षित है.

नवादा: जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पकड़ीबरावां-कौआकोल मार्ग पर स्थित देवनगढ़ अपने गौरवशाली इतिहास का गवाह है. यहां खुदाई के वक्त कई सारी प्राचीनकाल की मूर्तियां मिली हैं. देवनगढ़ में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खनन कराया गया था पर दुर्भग्यवश अब यह प्रक्रिया थम गई है.

देवनगढ़ में खुदाई के दौरान प्रथम शताब्दी में बनी बलराम, वासुदेव और कांसा की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिसे पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है. जब 1988 में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खन्न किया गया तो 11वीं शताब्दी की धातु निर्मित बौद्ध देवी मंजूश्री की प्रतिमाएं मिली थी. इसके अलावा कई प्रकार के पुरावशेष भी मिले थे.

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देवनगढ़ में खुदाई के दौरान मिली हैं कई मूर्तियां

2017-18 में फिर हुई खुदाई
करीब 20 साल बाद एकबार फिर पुरातत्व विभाग की ओर से 2017-18 में खुदाई की गई तब वहां से एक चौखट मिली. लोगों का कहना है कि खुदाई के वक्त यहां शिवलिंग मिला था. इलके अलावा भगवान शिव और गणेश की मूर्ति मिली थी. इससे यह साबित हो गया कि यहां कुछ न कुछ भारत के गौरवशाली इतिहास का पुरावशेष जरूर छिपा है. लेकिन जिस हिसाब से जिज्ञासा के साथ काम वहां होनी चाहिए वो नहीं हो सका. फिलहाल काम ठप्प पड़ा है.

जानकारी देते विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी

क्या कहते हैं इतिहासकार
युवा इतिहासकार व विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी बताते हैं कि देवनगढ़ नवादा के पुरातत्व के दृष्टिकोण से सबसे पुरानी जगह है. पहली शताब्दी का सबसे पहला अवशेष यहीं मिला है. उसके बाद प्रागैतिहासिक काल का भी अवशेष मिला है. पहली शताब्दी की बनी बलराम वासुदेव और कांसा की मूर्ति आज भी पटना म्यूजियम में संरक्षित है.

Intro:नवादा। जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पकरीबरावां-कौआकोल मार्ग पर स्थित देवनगढ़ अपने गौरवशाली इतिहास का गवाह है। यहां खुदाई से मिली धातुएं व प्राचीनकाल की मूर्तियां इतिहास की बातों दिलोदिमाग में ताजा कर देती है। बस जरूरत है सही से उत्खनन करवाने की। अगर यहाँ सही तरीके से उत्खन्न किया जाए तो कई सारे प्राचीनकाल के साक्ष्य मिल सकते हैं जो नवादा से जुड़ी ऐतिहासिक पहलुओं को उजागर कर सकती है। ऐसा नहीं है कि देवनगढ़ में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खन्न नहीं करवाया गया है। उत्खनन हुए भी हैं और कुछ साक्ष्य मिले भी हैं लेकिन दुर्भग्यवश यह प्रक्रिया थम गया है लेकिन उत्खन्न के वक्त चार कोने पर चार चौखट दिखाई देना अब भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है?




Body:प्रथम शताब्दी की मिली है मूर्तियां

देवनगढ़ में ख़ुदाई से प्रथम शताब्दी में बनी बलराम, वासुदेव व एकांसा की दुर्लभ मूर्तियां प्राप्त हुई है। जिसे पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

1988 में मिले थे धातु निर्मित मूर्तियां

जब 1988 में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खन्न किया गया तो वहां से 11वीं शताब्दी की धातु निर्मित बौद्ध देवी मंजूश्री की प्रतिमाएं मिली थी। इसके साथ कई प्रकार के पुरावशेष भी मिले।

2017-18 में पुनः हुई ख़ुदाई

करीब 20 साल बाद एकबार फिर पुरातत्व विभाग की ओर से 2017-18 में खुदाई की गई फिर वहां से एक चौखट मिली। इससे यह साबित हो गया कि यहां कुछ न कुछ भारत के गौरशाली इतिहास का पुरावशेष जरूर छिपा है लेकिन जिस हिसाब से जिज्ञासा के साथ काम वहां होनी चाहिए वो नहीं हो सका। फिलहाल काम ठप्प पड़ा है।

क्या कहते हैं स्थानीय

2017-18 में देवनगढ़ में जहां खुदाई हुई थी वहीं से कुछ ही दूर स्थल का देखरेख करनेवाले व खुदाई के वक्त मौजूद रामाश्रय का कहना है, 2017-18 में खुदाई हुई तो यहां से शिवलिंग मिला, सीने से ऊपर का हिस्सावाला भगवान शंकर का मूर्ति मिला और एक छोटा सा गणेश जी का मूर्ति मिला।

क्या कहते हैं इतिहासकार

युवा इतिहासकार व विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी का कहना है, यह नवादा के पुरातत्व के दृष्टिकोण से सबसे पुराना साइट है यहां पर पहली शताब्दी का सबसे पहला अवशेष यहीं मिला है। उसके बाद प्रागैतिहासिक काल का भी वहां अवशेष मिला है। कई काल खंडों में जब भी खुदाई हुई है कुछ ना कुछ यहाँ से जरूर मिला है। पहली शताब्दी की बनी बलराम वासुदेव और कांसा की मूर्ति आज भी पटना म्यूजियम में संरक्षित है 1988 में भी जब खुदाई हुई थी तो वहां से बौद्ध देवी शमंजूश्री की मूर्तियां मिली थी। 2017-18 में भी इसकी खुदाई का काम शुरू किया गया था जिसमें पिलर सहित कई सारे खंडित प्रतिमाएं मिली थी इससे साबित हो रहा है कि पहले जो मान्यताएं थी वह पुष्ट हो रही है। हालांकि, यह बात पूरी तरह से अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है कि क्या है लेकिन यह माना जा रहा था कि वहां एक महल था क्योंकि वहां जिसमें धातु का काम होता था और बलराम वासुदेव और एकांकी मूर्तियां भी धातु मेटल की ही मिली है।



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