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गुरुनानक देव के बेटों ने करवाया था रजौली संगत का निर्माण, अब ये धरोहर खो रही अपनी पहचान

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना के कार्यकारिणी के सदस्यों ने सोमवार को रजौली संगत का दौरा किया. जांच के बाद इसकी बदहाली को देखकर वे लोग काफी चिंतित दिखे. उन्होंने इस संदर्भ में डीएम से भी बात की. ताकि खंडहर में तब्दील हो रहे इस संगत को बचाया जा सके.

पहचान खोती ऐतिहासिक राजौली संगत
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Published : Sep 17, 2019, 12:28 PM IST

Updated : Sep 17, 2019, 3:54 PM IST

नवादा: "सहेजने पुरखों की धरोहर को जी जान लगा रखा है, बूढ़ी दीवारों ने मिलकर एक छत को संभाल रखा है". जी हां, कुछ ऐसे शब्द ही आपकी ज़ुबां से निकल पड़ेंगे, जब जिले के ऐतिहासिक धरोहर 'रजौली संगत' को खंडहर में तब्दील होते देखेंगे. आत्मा तक पसीज जाएगा आपका, इसकी बदहाली को देखकर. कभी इस संगत में महंतो की पंगत लगा करती थी, लेकिन आज यह वीरान पड़ा हुआ है. संगत की संपत्ति भी समय के साथ कम होती जा रही है. कहा जाता है कि इसमें 1506 में गुरुनानक देव के अपने दो पुत्रों के साथ यहां आए थे. लेकिन आज प्रशासन की अनदेखी के कारण ये ऐतिहासिक धरोहर अपना अस्तित्व खो रहा है.

गुरुनानक देव के बेटों ने करवाया था इसका निर्माण,

1506 में हुई थी संगत का स्थापना
गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी, पटना के त्रिवेणी सिंह ने बताया कि जब 1506 ई. गुरुनानक देव जी महाराज पूरब की यात्रा पर आये थे उस वक्त उनके साथ उनके प्रथम पुत्र श्रीचंद्र भी थे. कहा जाता है कि उन्होंने ही इस संगत का निर्माण करवाया था. वहीं, इसकी देखरेख महंत गोपाल बख्शदास किया करते थे. उसके बाद से उनकी हर पीढ़ी इस संगत को देखती आ रही है. आपको बता दें कि करीब डेढ़ सौ एकड़ में फैली इस संगत की संपत्ति अब काफी कम बची हुई है. इसकी प्रमुख शाखाएं नवादा के अकबरपुर, नालंदा के राजगीर और झारखंड के देवघर में थे.

historical Rajauli Sangat
ऐतिहासिक धरोहर खो रही है अपनी पहचान

क्या कहते हैं संगत के महंत
संगत के वर्तमान महंत भोला बक्शदास बताते हैं कि इस संगत की देखरेख सबसे पहले हमारे पूर्व गोपाल बख्शदास ने किया. उसके बाद विष्णु बख्शदास, दानी बख्शदास, नरेश बख्शदास, राम रतन बख्शदास ने किया. मै भोला बख्शदास इसका महंत 2009 में बना. तब से अब तक गुरुग्रंथ की पूजा-अर्चना कर रहा हूं. उन्होंने कहा कि जमींदारी खत्म होने के बाद से इसकी बदहाली शुरू हो गई है. संगत की जमीन से पैसा मिलना भी बंद हो गया है. जिसकी वजह से इसकी देखभाल सही से नहीं ही पा रही है. उसके बाद से प्रशासन ने भी ध्यान नहीं दिया.

historical Rajauli Sangat
गुरुनानक देव जी बैठे थे यहां

क्या कहते हैं स्थानीय शिक्षक
संगत परिसर के शिशु विद्यालय के प्रधानाचार्य का कहना है कि यह श्रीचंद्र बाबा का स्थल है. इसकी हालत ठीक नहीं होने का कारण व्यवस्थापक की इसके प्रति अच्छी सोच नहीं है. यह अब केवल विद्यालय के महंत जी के सहयोग से चल रहा है.

historical Rajauli Sangat
24 सितंबर को होगा गुरुपर्व मेला

क्या कहते हैं विरासत बचाओ अभियान के संयोजक
विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी का कहना है कि यह सिख धर्मावलंबियों के लिए यह एक आस्था का केंद्र है. इसके बारे में कहा जाता है कि सिख धर्म के प्रवर्तक और प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी बहुत पहले यहां आये थे. वर्तमान में जहां पर संगत है वहां प्रवचन दिए थे. जहां बैठकर उन्होंने प्रवचन दिया उसे गद्दी कहा जाता है. जिसे उनके शिष्यों ने स्मारक के रूप में स्थापित कर दिया है. इसमें 50 कमरे और 3 आंगन है. लेकिन बदलते दौर में इसका विकास नहीं हो सका है. उन्होंने यह भी कहा कि इसके बारे में प्रकाश पर्व के समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि सिख धर्म से जुड़े जो भी स्थल हैं उसे गुरुनानक देव सर्किट से जोड़े जाएंगे. हालांकि अभी जुड़ नहीं पाया है. इसकी ऐसी हालत के बारे में बताया जाता है कि जब से जमींदारी प्रथा हटी तबसे इनके पास कुछ रह नहीं गया. अगर इसका विकास सही हो तो सिख धर्मावलंबियों के लिए और पर्यटन के लिए भी अच्छा स्थान बनेगा.

historical Rajauli Sangat
सिख गुरु गुरुनानक देव जी

2015 में हुआ था संचालन समिति का गठन
प्रशासन की ओर से 2015 में ही इसके लिए संचालन समिति गठित की गई थी. जिसके अध्यक्ष वर्तमान अनुमंडल पदाधिकारी रजौली शंभू शरण पांडे बने थे. उन्होंने अपने आवास पर विभिन्न विभाग के अधिकारियों और स्थानीय बुद्धिजीवियों के साथ बैठक कर विकास कार्य के लिए एक विकास कमिटी गठित की. इसके लिए बैंक खाते भी खुलवा दिए गए, ताकि संगत की संपत्ति से प्राप्त आय उसमें रखा जा सके. उस वक्त संगत परिसर का निरीक्षण कर अगल-बगल जमीन का भी मुआयना किया गया था. संगत को आकर्षक वह सुंदर बनाने के लिए रंग-बिरंगे फलदार वृक्ष और छायादार वृक्ष लगाने की बात भी कही गई थी, लेकिन इन बातों के कहे भी चार साल गुजरनेवाले हैं. आज तक इस धरोहर की सूरत नहीं बदल सकी है.

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने किया निरीक्षण
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना के कार्यकारिणी के सदस्यों ने सोमवार को रजौली संगत का दौरा किया. जांच के बाद इसकी बदहाली को देखकर वे लोग काफी चिंतित दिखे. उन्होंने इस संदर्भ में डीएम से भी बात की. ताकि खंडहर में तब्दील हो रहे इस संगत को बचाया जा सके. बताया जाता है कि इसे गुरुनानक देव सर्किट से भी जोड़ा गया है.

24 सितंबर को होगा गुरुपर्व मेला का आयोजन
24 सितंबर पर गुरुनानक देव जी की 150 प्रकाश पूर्व के अवसर संगत के जमीन पर गुरु पर्व मेला के आयोजन को लेकर तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं. मेला के आयोजन को लेकर स्थानीय लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. इस साल गुरु पर्व को भव्य रूप मनाने को लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना साहिब की अगुवाई में चार दिवसीय गुरु पर्व का आयोजन भी किया जाएगा.

नवादा: "सहेजने पुरखों की धरोहर को जी जान लगा रखा है, बूढ़ी दीवारों ने मिलकर एक छत को संभाल रखा है". जी हां, कुछ ऐसे शब्द ही आपकी ज़ुबां से निकल पड़ेंगे, जब जिले के ऐतिहासिक धरोहर 'रजौली संगत' को खंडहर में तब्दील होते देखेंगे. आत्मा तक पसीज जाएगा आपका, इसकी बदहाली को देखकर. कभी इस संगत में महंतो की पंगत लगा करती थी, लेकिन आज यह वीरान पड़ा हुआ है. संगत की संपत्ति भी समय के साथ कम होती जा रही है. कहा जाता है कि इसमें 1506 में गुरुनानक देव के अपने दो पुत्रों के साथ यहां आए थे. लेकिन आज प्रशासन की अनदेखी के कारण ये ऐतिहासिक धरोहर अपना अस्तित्व खो रहा है.

गुरुनानक देव के बेटों ने करवाया था इसका निर्माण,

1506 में हुई थी संगत का स्थापना
गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी, पटना के त्रिवेणी सिंह ने बताया कि जब 1506 ई. गुरुनानक देव जी महाराज पूरब की यात्रा पर आये थे उस वक्त उनके साथ उनके प्रथम पुत्र श्रीचंद्र भी थे. कहा जाता है कि उन्होंने ही इस संगत का निर्माण करवाया था. वहीं, इसकी देखरेख महंत गोपाल बख्शदास किया करते थे. उसके बाद से उनकी हर पीढ़ी इस संगत को देखती आ रही है. आपको बता दें कि करीब डेढ़ सौ एकड़ में फैली इस संगत की संपत्ति अब काफी कम बची हुई है. इसकी प्रमुख शाखाएं नवादा के अकबरपुर, नालंदा के राजगीर और झारखंड के देवघर में थे.

historical Rajauli Sangat
ऐतिहासिक धरोहर खो रही है अपनी पहचान

क्या कहते हैं संगत के महंत
संगत के वर्तमान महंत भोला बक्शदास बताते हैं कि इस संगत की देखरेख सबसे पहले हमारे पूर्व गोपाल बख्शदास ने किया. उसके बाद विष्णु बख्शदास, दानी बख्शदास, नरेश बख्शदास, राम रतन बख्शदास ने किया. मै भोला बख्शदास इसका महंत 2009 में बना. तब से अब तक गुरुग्रंथ की पूजा-अर्चना कर रहा हूं. उन्होंने कहा कि जमींदारी खत्म होने के बाद से इसकी बदहाली शुरू हो गई है. संगत की जमीन से पैसा मिलना भी बंद हो गया है. जिसकी वजह से इसकी देखभाल सही से नहीं ही पा रही है. उसके बाद से प्रशासन ने भी ध्यान नहीं दिया.

historical Rajauli Sangat
गुरुनानक देव जी बैठे थे यहां

क्या कहते हैं स्थानीय शिक्षक
संगत परिसर के शिशु विद्यालय के प्रधानाचार्य का कहना है कि यह श्रीचंद्र बाबा का स्थल है. इसकी हालत ठीक नहीं होने का कारण व्यवस्थापक की इसके प्रति अच्छी सोच नहीं है. यह अब केवल विद्यालय के महंत जी के सहयोग से चल रहा है.

historical Rajauli Sangat
24 सितंबर को होगा गुरुपर्व मेला

क्या कहते हैं विरासत बचाओ अभियान के संयोजक
विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी का कहना है कि यह सिख धर्मावलंबियों के लिए यह एक आस्था का केंद्र है. इसके बारे में कहा जाता है कि सिख धर्म के प्रवर्तक और प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी बहुत पहले यहां आये थे. वर्तमान में जहां पर संगत है वहां प्रवचन दिए थे. जहां बैठकर उन्होंने प्रवचन दिया उसे गद्दी कहा जाता है. जिसे उनके शिष्यों ने स्मारक के रूप में स्थापित कर दिया है. इसमें 50 कमरे और 3 आंगन है. लेकिन बदलते दौर में इसका विकास नहीं हो सका है. उन्होंने यह भी कहा कि इसके बारे में प्रकाश पर्व के समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि सिख धर्म से जुड़े जो भी स्थल हैं उसे गुरुनानक देव सर्किट से जोड़े जाएंगे. हालांकि अभी जुड़ नहीं पाया है. इसकी ऐसी हालत के बारे में बताया जाता है कि जब से जमींदारी प्रथा हटी तबसे इनके पास कुछ रह नहीं गया. अगर इसका विकास सही हो तो सिख धर्मावलंबियों के लिए और पर्यटन के लिए भी अच्छा स्थान बनेगा.

historical Rajauli Sangat
सिख गुरु गुरुनानक देव जी

2015 में हुआ था संचालन समिति का गठन
प्रशासन की ओर से 2015 में ही इसके लिए संचालन समिति गठित की गई थी. जिसके अध्यक्ष वर्तमान अनुमंडल पदाधिकारी रजौली शंभू शरण पांडे बने थे. उन्होंने अपने आवास पर विभिन्न विभाग के अधिकारियों और स्थानीय बुद्धिजीवियों के साथ बैठक कर विकास कार्य के लिए एक विकास कमिटी गठित की. इसके लिए बैंक खाते भी खुलवा दिए गए, ताकि संगत की संपत्ति से प्राप्त आय उसमें रखा जा सके. उस वक्त संगत परिसर का निरीक्षण कर अगल-बगल जमीन का भी मुआयना किया गया था. संगत को आकर्षक वह सुंदर बनाने के लिए रंग-बिरंगे फलदार वृक्ष और छायादार वृक्ष लगाने की बात भी कही गई थी, लेकिन इन बातों के कहे भी चार साल गुजरनेवाले हैं. आज तक इस धरोहर की सूरत नहीं बदल सकी है.

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने किया निरीक्षण
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना के कार्यकारिणी के सदस्यों ने सोमवार को रजौली संगत का दौरा किया. जांच के बाद इसकी बदहाली को देखकर वे लोग काफी चिंतित दिखे. उन्होंने इस संदर्भ में डीएम से भी बात की. ताकि खंडहर में तब्दील हो रहे इस संगत को बचाया जा सके. बताया जाता है कि इसे गुरुनानक देव सर्किट से भी जोड़ा गया है.

24 सितंबर को होगा गुरुपर्व मेला का आयोजन
24 सितंबर पर गुरुनानक देव जी की 150 प्रकाश पूर्व के अवसर संगत के जमीन पर गुरु पर्व मेला के आयोजन को लेकर तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं. मेला के आयोजन को लेकर स्थानीय लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. इस साल गुरु पर्व को भव्य रूप मनाने को लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना साहिब की अगुवाई में चार दिवसीय गुरु पर्व का आयोजन भी किया जाएगा.

Intro:नवादा। क्या खूब कहा है किसी शायर ने, सहेजने पुरखों की धरोहर, जी जान लगा रखी है, बूढ़ी दीवारों ने मिलकर, एक छत संभाल रखी है। जी हां, कुछ ऐसे शब्द जुबां से निकल पड़ेगा जब जिले के ऐतिहासिक धरोहर 'रजौली संगत' को खंडहर में तब्दील होते देखेंगे। आत्मा पसीज जाएगा आपका, इसकी बदहाली को देखकर। कभी इस संगत में लगता था महंथों का पंगत। आज वहीं वीरानी छाई हुई है। संगत का संपत्ति भी बीतते समयनुसार सिकुड़ता जा रहा है। गुरुनानक देव के पुत्र जब ऊपर से देखते होंगे तो न जाने क्या गुजरती होगी उनपर। क्या-क्या सोचते होंगे। ऐसा लगता है उनका अपना महंथ हो फिर प्रशासन सब के सब अब उनसे मुंह मोड़ लिया है। संगत के महंथ इसकी दुर्दशा का कारण जमींदारी प्रथा हट जाने का कारण बात रहे हैं वहीं प्रशासन भी इन ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति सजग नहीं वरना इस धरोहर की यह दुर्दशा नहीं होती।





Body:2015 में हुई थी संचालन समिति की गठन

प्रशासन की ओर से 2015 में ही संचालन समिति गठित की गई थी जिसके अध्यक्ष तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी रजौली शंभू शरण पांडे बने थे। उन्होंने अपने आवास पर विभिन्न विभाग के अधिकारियों एवं स्थानीय बुद्धिजीवियों के साथ बैठक कर विकास कार्य के लिए एक विकास कमिटी गठित की। वाकायदा बैंक खाते भी खुलवा दिए गए ताकि संगत की संपत्ति से प्राप्त आय उसमें रखे जा सके सके। उस वक्त संगत परिसर का निरीक्षण कर अगल-बगल जमीन का भी मुआयना किया संगत को आकर्षक वह सुंदर बनाने के लिए रंग-बिरंगे फलदार वृक्ष और छायादार वृक्ष लगाने की बात भी कही गई लेकिन इन बातों के कहे भी चार साल गुजरनेवाले हैं लेकिन आज तक इस धरोहर की सूरत नहीं बदल सकी है। हालांकि, संगत के महंथ भोला बक्शदेव
का उस समिति को साजिश के तहत बनाने की बात कर रहे हैं।

1506 में हुआ था संगत का स्थापना

गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी पटना के त्रिवेणी सिंह का कहना है कि, जब 1506 ईस्वी में गुरुनानक देव जी महाराज पूरब की यात्रा पर आये थे उस वक्त उनके साथ उनके प्रथम पुत्र श्रीचंद्र भी आये थे। कहा जाता है कि उन्होंने ने ही इस संगत का निर्माण कराया था और इसकी देखरेख महंथ गोपाल बख्शदास किया करते थे उसके बाद से पीढ़ी इस संगत को देखते आ रहे हैं। करीब डेढ़ सौ एकड़ की में थी संगत की संपत्ति जो अब काफी कम हो चुके हैं इसके प्रमुख शाखाएं नवादा के अकबरपुर, नालंदा के राजगीर और झारखंड के देवघर में थे।

क्या कहते हैं संगत के महंथ

संगत के वर्तमान महंथ भोला बक्शदास बताते हैं कि, इस संगत की देखरेख सबसे पहले हमारे पूर्व गोपाल बख्शदास ने किया उसके बाद विष्णु बख्शदास, दानी बख्शदास, नरेश बख्शदास, राम रतन बख्शदास और उसके बाद मैं भोला बख्शदास इसका महंथ 2009 में बना तब से अभी तक गुरुग्रंथ की पूजा-अर्चना कर रहा हूँ। जमीदारी खत्म होने के बाद से इसकी बदहाली शुरू हो गई। संगत के जमीन से पैसा मिलना बंद हो गया। जिसकी वजह से इसकी देखभाल सही से नहीं ही पाई। उसके बाद से प्रशासन भी ध्यान नहीं दिया।


क्या कहते हैं स्थानीय शिक्षक

वहीं, संगत परिसर स्थित शिशु विद्यालय के प्रधानाचार्य का कहना है कि यह श्रीचंद्र बाबा का स्थल है। इसकी स्थिति ठीक नहीं होने का कारण व्यवस्थापक की इसके प्रति अच्छी सोच नहीं है। संगत परिसर में विद्यालय के महंथ जी के सहयोग से चल रहा है।

क्या कहते हैं विरासत बचाओ अभियान के संयोजक

विरासत बचाओ अभियान के संयोजक अशोक प्रियदर्शी का कहना है कि, यह सिख धर्मावलंबियों के एक आस्था का केंद्र है। इसके बारे में कहा जाता है कि, सिख धर्म के प्रवर्तक और प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी बहुत पहले यहां आये थे। वर्तमान में जहां पर संगत है वहां प्रवचन दिए थे। जहां बैठकर उन्होंने प्रवचन दिया उसे गद्दी कहा जाता है जिसे उनके शिष्यों ने स्मारक के रूप में स्थापित कर दिया है। इसमें 50 कमरे और 3 आंगन है। लेकिन बदलते दौर में जितनी विकास वो नहीं हो सका। इसके बारे प्रकाश पर्व के समय मुख्यमंत्री ने कहा था सिख धर्म से जुड़े जो भी स्थल हैं उसे गुरुनानक देव सर्किट से जोड़े जाएंगे हालांकि अभी जुड़ नहीं पाया है। इसकी ऐसी स्थिति के बारे में बताया जाता है कि जब से जमींदारी प्रथा हटी तबसे इनके पास कुछ रह नहीं गया अगर इसका विकास सही हो तो सिख धर्मावलंबियों के लिए और पर्यटन के लिए भी अच्छा होगा।


शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी की टीम ने किया निरीक्षण

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी , पटना के कार्यकारिणी के सदस्यों ने रजौली संगत आज का दौरा किया। निरीक्षक के बाद इसकी बदहाली को देखकर काफी चिंतित दिखे। उन्होंने इस संदर्भ में डीएम से जिलाधिकारी से भी बात की है ताकि खंडहर तब्दील हो रहे इस संगत को बचाया जाए। बताया जा रहा है कि इसे गुरुनानक देव सर्किट से भी जोड़ा गया है।


24 सितंबर को होगा गुरुपर्व मेला का आयोजन

24 सितंबर पर गुरुनानक देव जी की 150 प्रकाश पूर्व के अवसर संगत के जमीन पर गुरु पर्व मेला के आयोजन को लेकर तैयारियां प्रारंभ हो गई है। मेला के आयोजन को लेकर स्थानीय लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है इस वर्ष गुरु पर्व को भव्य रूप मनाने को लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी पटना साहिब की अगुवाई में चार दिवसीय गुरु पर्व का आयोजन होगा।



Conclusion:
Last Updated : Sep 17, 2019, 3:54 PM IST
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