नवादाः कुछ लोग अपनी दिव्यांगता को कमजोरी समझ बैठते हैं, वहीं कुछ लोग इसे शस्त्र बनाकर मंजिल तलाश लेते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी जिले के सदर प्रखंड स्थित कादिर गंज के दिव्यांग दीपक और उनकी पत्नी नीतू की है. दोनों पति-पत्नी पैर से दिव्यांग हैं. दीपक ठीक से चल भी नहीं पाते, लेकिन उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी.
आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने का प्रयास
दीपक और उनकी पत्नी नीतू शिक्षक के तौर पर ग्रामीण बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगाने में जुटे हुए हैं. इसकी वजह से शिक्षक दंपति का नाम जिले भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. दोनों बच्चों को पढ़ाकर अपने घर की चरमराई आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं.
"सर के पढ़ाने का तरीका बेहद अच्छा है. वो आसान तरीके से सभी मुश्किल हल कर देते हैं. यहां पढ़ने के बाद हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ती."- अंजलि, छात्रा
जीते हैं कई गोल्ड मेडल
दीपक का जन्म बेहद साधारण परिवार में हुआ है. वे जन्म के समय से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. उन्होंने केमिस्ट्री से बीएससी ऑनर्स किया है. वहीं, उनकी पत्नी नीतू ने हिंदी से ऑनर्स किया है. दीपक बचपन से ही पढ़ाई में तेज रहे हैं. इसके साथ ही वे खेल में भी काफी आगे रहे हैं. उन्होंने राज्य स्तर पर ट्राई साइकिल व गोला फेंक में प्रथम स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल हासिल किया है.
"मैं बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हूं. माता पिता ने मुझे ठीक करने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. मैंने अपने शरीर से दिव्यांग शब्द को हटाने के लिए शिक्षा को हथियार बनाया ताकि समाज में मुझे मान सम्मान मिल पाए."- दीपक, दिव्यांग, शिक्षक
मजबूत है आत्मविश्वास
दीपक वर्तमान में सरकारी स्कूल में नियोजित शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं. वे शिक्षा में नवाचार के पक्षधर हैं. साथ ही इनके कई लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं. दीपक स्कूल में पढ़ाने के अलावा घर पर ट्यूशन सेंटर चलाते हैं और गरीबों को निशुल्क शिक्षा भी देते हैं. आज दीपक भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन उनका आत्मविश्वास उतना ही मजबूत है.