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Nalanda News: नालंदा में शीतलाष्टमी के दिन बसियौरा की है पुरानी परंपरा, दर्जनों गांव में नहीं जलता चूल्हा

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Published : Mar 13, 2023, 4:19 PM IST

नालंदा में शीतलाष्टमी के दिन बसियौरा की है पुरानी परंपरा है, इस दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलता ना ही झाड़ू लगाई जाती है. शीतल मंदिर के पास तालाब में नहाने से चेचक सहित कई अन्य बीमारियां दूर हो जाती हैं. लोग तालाब का पानी अपने साथ ले जाते हैं.

नालंदा में शीतलाष्टमी
नालंदा में शीतलाष्टमी
शीतलाष्टमी के दिन बसियौरा की है पुरानी परंपरा

नालंदाः शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला की नगरी मघडा में बसियौरा की पुरानी परंपरा है. कल यानी मंगलवार को शीतलाष्टमी है. इस मौके पर दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है. नालंदा के बिहारशरीफ से 3 किमी दूर स्थित गांव मेघड़वा है. जहां मां शीतल का मंदिर है. मां शीतला की नगरी मघडा में चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन से नालंदा सहित सूबे और दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी.

ये भी पढे़ंः Nalanda News: इस गांव में चिड़िया का रखते हैं ख्याल, 12 साल से हो रहा है गौरैया संरक्षण

स्नान के बाद की जाती है पूजा अर्चनाः इस दिन जिले के दर्जनों गांव में 24 घंटे घर में चूल्हा और झाड़ू का इस्तोमाल नहीं करते. शीतलाष्टमी यानी कल मंगलवार को बनाया गया खाना बुधवार को प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाएगा है. इसे ही बसियौरा की तरह मनाया जाता है. मंदिर परिसर में स्थित तालाब में लोग स्नान के बाद नहाते हैं और वहीं पूजा अर्चना की जाती है.

बासी प्रसाद खाकर बेसियौरा मनाते हैंः इस संबंध में मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मघड़ा में मां शीतला का सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां चेचक सहित कई अन्य बीमारियां तालाब में नहाने से दूर हो जाती हैं. लोग तालाब का पानी अपने साथ ले जाते हैं. चेचक रोग के लिए ये रामबाण होता है, मां शीतला को स्वास्थ्य व स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है. इस दिन की पूजा में गर्म चीज़ों का इस्तेमाल करना मना है. यही वजह की आज के दिन चूल्हा नहीं जलता है और लोग बासी प्रसाद खाकर बेसियौरा मनाते हैं.

"ऐसा कहा जाता है कि गांव के एक ब्राह्मण को मां ने सपना दिया कि उनकी मुर्ती नदीं किनारे ज़मीन में गड़ा हुआ है. उसे बाहर निकालो और गांव में किसी जगह स्थापित कर दो. इसके बाद ब्राह्मण ने कुएं की खुदाई कराकर मां शीतला की प्रतिमा को बाहर निकाला और उसे गांव के बगल में स्थित तालाब किनारे स्थापित कर दिया. उस कुआं को मीठी कुआं भी कहा जाता है. सप्तमी को मां शीतला के नाम अरवा चावल, साग, पुड़ी, चना ,दाल साग, हलवा बनाकर भोग लगाया जाता है"- धीरज कुमार पांडे, पुजारी

शीतलाष्टमी के दिन बसियौरा की है पुरानी परंपरा

नालंदाः शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला की नगरी मघडा में बसियौरा की पुरानी परंपरा है. कल यानी मंगलवार को शीतलाष्टमी है. इस मौके पर दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है. नालंदा के बिहारशरीफ से 3 किमी दूर स्थित गांव मेघड़वा है. जहां मां शीतल का मंदिर है. मां शीतला की नगरी मघडा में चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन से नालंदा सहित सूबे और दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी.

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स्नान के बाद की जाती है पूजा अर्चनाः इस दिन जिले के दर्जनों गांव में 24 घंटे घर में चूल्हा और झाड़ू का इस्तोमाल नहीं करते. शीतलाष्टमी यानी कल मंगलवार को बनाया गया खाना बुधवार को प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाएगा है. इसे ही बसियौरा की तरह मनाया जाता है. मंदिर परिसर में स्थित तालाब में लोग स्नान के बाद नहाते हैं और वहीं पूजा अर्चना की जाती है.

बासी प्रसाद खाकर बेसियौरा मनाते हैंः इस संबंध में मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मघड़ा में मां शीतला का सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां चेचक सहित कई अन्य बीमारियां तालाब में नहाने से दूर हो जाती हैं. लोग तालाब का पानी अपने साथ ले जाते हैं. चेचक रोग के लिए ये रामबाण होता है, मां शीतला को स्वास्थ्य व स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है. इस दिन की पूजा में गर्म चीज़ों का इस्तेमाल करना मना है. यही वजह की आज के दिन चूल्हा नहीं जलता है और लोग बासी प्रसाद खाकर बेसियौरा मनाते हैं.

"ऐसा कहा जाता है कि गांव के एक ब्राह्मण को मां ने सपना दिया कि उनकी मुर्ती नदीं किनारे ज़मीन में गड़ा हुआ है. उसे बाहर निकालो और गांव में किसी जगह स्थापित कर दो. इसके बाद ब्राह्मण ने कुएं की खुदाई कराकर मां शीतला की प्रतिमा को बाहर निकाला और उसे गांव के बगल में स्थित तालाब किनारे स्थापित कर दिया. उस कुआं को मीठी कुआं भी कहा जाता है. सप्तमी को मां शीतला के नाम अरवा चावल, साग, पुड़ी, चना ,दाल साग, हलवा बनाकर भोग लगाया जाता है"- धीरज कुमार पांडे, पुजारी

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