नालंदाः बिहार के तीन लोगों का पद्मश्री पुरस्कार के लिए जिसमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद (Padma shri Padma Shri Award to Kapildev Prasad ) भी नाम शामिल है. 26 जनवरी से पहले गुमनामी की जिंदगी जी रहे कपिलदेव अचानक चर्चा में आ गए. कपिलदेव को कला के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. लगभग 70 साल की उम्र में टेक्सटाइल के क्षेत्र में उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है.
"15 की उम्र से इस काम से जुड़े हैं. मेरे दादा जी के द्वार हस्तकरघा की शुरुआत की गई थी. इसके बाद मेरे पिता जी फिर मैं और अब मेरा बेटा इसे संभाल रहा है. 60 साल से मैं इस काम से जुड़ा हूं. पुरस्कर मिलने से बहुत खुशी है, इससे लोग इसके बारे में जानेंगे तो इसका विस्तार होगा." - कपिलदेव प्रसाद
60 वर्षों से काम कर रहेः कपिलदेव प्रसाद का जन्म 1954 में हुआ था. हस्तकरघा उनकी खानदानी पेशा रही है. उनके दादा भी हस्तकरघा के जरिए बावन बूटी साड़ी बनाते थे. बाद में पिता ने भी यही काम अपनाया था. पिछले लगभग 60 वर्षों से वे लगातार हस्तकरघा से जुड़े रहे और अब इस कार्य में उनका एकलौता पुत्र भी हस्तकरघा के कार्यों में हाथ बंटाते हैं. बिहार शरीफ से 3 किलोमीटर दूर एक छोटा सा टोला बासवन बिगहा के रहने वाले हैं. बावन बूटी साड़ी के जीआई टैगिंग मिलने से इसकी पहचान नालंदा से जुड़ेगी.
15 साल की उम्र से इस काम से जुड़े हैंः कपिलदेव ने बताया कि उनके दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरुआत की थी. फिर पिता हरि तांती ने उसे आगे बढ़ाया. 15 साल की उम्र से तब बुनकरी को रोजगार बनाया. अब उनका बेटा सूर्यदेव सहयोग करता है. 70 के दशक में बिहार शरीफ स्थित नवरत्न महल में सरकारी बुनकर स्कूल खुला था. यह स्कूल हाफ टाइम था. जहां नियमित पढ़ाई जारी रखते हुए बच्चे बुनकरी का इल्म सीख जाते थे. 1963 से 65 तक यहीं बुनकरी सीखी. 1990 में स्कूल बंद हो गया. इसके बाद अपने काम में लग गए.
डीएम ने किया सम्मानितः कपिलदेव यह सम्मान पाकर काफी खुश हैं. उन्होंने कहा कि यह सम्मान सिर्फ उनका नहीं बल्कि हर उन लोगों का है, जो हस्तकरघा से जुड़े हुए हैं. इस सम्मान के साथ नालंदा की पहचान जुड़ी है. इस सम्मान से मुझे उम्मीद जगा कि इसे जल्द ही जीआई टैग मिलेगा. जिससे हस्तकर्घा को और बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं इससे लोगों की उम्मीद बढ़ी, जिससे रोजगार के साथ डिमांड और इनकम का भी सृजन होगा. आज गणतंत्र दिवस के मौके जिलाधिकारी ने कार्यालय में बुलाकर पुष्पगुच्छ और शॉल भेंट कर सम्मानित भी किया.
बावन बूटी को मिलेगा बढ़ावाः बावन बूटी में कमल का फूल, बौधि वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल और शंख आदि चिह्न मिल जाएंगे, यह सभी बौद्ध धर्म के प्रतीक होते हैं. इसकी लोकप्रियता भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक फैली हुई है. बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में भी इसके नमूने मिल जाएंगे. वर्षों से इस कला को करने वाले कारिगरों को कभी भी न तो राज्य स्तर पर बहुत सराहना मिली न विश्व स्तर पर मिली. मगर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बावन बूटी से बने पर्दों को राष्ट्रपति भवन में जब लगवाया तो लोगों को इस कला के बारे में परिचय मिला. अब तो इस कला को यूनेस्को भी बढ़ावा दे रहा है.
बावन बूटी का इतिहास बौद्ध काल से जुड़ा हैः हस्तकला की बावन बूटी साड़ी का इतिहास बौद्ध काल से जुड़ा रहा है. तसर और कॉटन के कपड़ों को हाथ से तैयार कर इसमें बावन बूटी की डिजाइन की जाती है. यह बावन बूटी बौद्ध धर्म से जुड़ा है. कहा तो यह भी जाता है कि बावन बूटी साड़ी में बौद्ध धर्म की कला को उकेरा जाता है. कपिलदेव प्रसाद जिले के पहले शख्स हैं, जिन्हें पद्मश्री सम्मान मिला. हालांकि पिछले साल वीरायतन राजगीर की आचार्य चंदना पद्मश्री अवार्ड मिला था. जिनका कार्यक्षेत्र नालंदा रहा है लेकिन वे नालंदा की रहने वाली नहीं हैं.