नालंदा : बिहार भले ही आज बिहार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दे पर पिछड़ा है लेकिन इसका अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है. इसका प्रमाण बिहार का नालंदा शहर (Nalanda historical place ) है. यहां की ऐतिहासिक इमारतों से साफ पता चलता है कि जब विश्व की अन्य दूसरी संस्कृतियों का उदय हो रहा था, कबिलाई जीवन जी रहा था, तब यहां ज्ञान और विज्ञान समृद्ध हो चुका था. इसी स्थल को देखने के लिए गुरुवार को कर्नाटक विधान परिषद की 14 सदस्यी टीम बिहार के नालंदा (Karnataka MLC come to Nalanda ) पहुंची थी. जब उन्होंने यहां के ऐतिहासिक विरासत को देखा तो सभी एक सुर में कहने लगे हमारा अतीत काफी गौरवशाली है. विश्वविद्यालय की अवधारणा चौथी और पांचवीं शताब्दी में नालंदा में ही पड़ गई थी. नालंदा को देखकर बिहार के बारे में उनकी पूरी अवधारणा ही बदल गई.
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नालंदा दौरे पर कर्नाटक MLC विशेषाधिकार टीम: नालंदा में कर्नाटक विधान परिषद के विशेषाधिकार की टीम (Team of Privileges of Karnataka MLC) एक दिवसीय दौरा पर नालंदा पहुंची हुई थी. टीम ने सबसे पहले प्राचीन विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देखा. उसकी बारीकी से जानकारी ली. इस दौरान टीम के सदस्यों ने बताया कि भारत के इतिहास में यह काफी गौरवशाली जगह है. जहां एक साथ 10,000 छात्र रहकर पढ़ाई करते थे, यहां हर भारतीयों को एक बार जरूर आना चाहिए. इसके इतिहास के बारे में अपनी आंखों से देखना चाहिए. हम लोग यहां पहुंच कर काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. बताते चलें कि इस टीम में कुल 14 सदस्य हैं. जिसमें 8 विधान परिषद के विशेषाधिकार टीम के सदस्य हैं. यह लोग पूरे बिहार के भ्रमण पर आए हैं.
''पहले बिहार के बारे में हमारी सोच अलग थी. बिहार काफी अच्छा प्रदेश है. अच्छे प्रदेश में सबसे बेहतर जगह नालंदा है. जहां वर्षों पहले से शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल रहने का गौरव प्राप्त है. यही कारण है कि कर्नाटक सरकार द्वारा हम लोगों को नालंदा घूमने का मौका दिया गया. यहां के बारे में हम लोगों को जानकारी लेने का मौका मिला है. इससे हम लोग काफी खुश हैं. यह स्थल सनातन धर्म का केंद्र है. नालंदा भ्रमण के बाद राजगीर के लिए रवाना हो गए. जहां के ऐतिहासिक स्थल का भ्रमण करेंगे''- शरण गौड़ा पाटिल, विधान पार्षद, कर्नाटक
ऐतिहासिक है नालंदा: बता दें कि बिहार की राजधानी पटना से 88.5 किलोमीटर दूर महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष हैं जो इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं. चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. यहाँ १०,००० छात्रों को पढ़ाने के लिए २,००० शिक्षक थे. प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ७ वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था. प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म यहीं पर हुआ था. गुप्त शासकों (who established Nalanda University in History) ने इसे 5 वीं से 7वीं शताब्दी में विकसित किया था.
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास: बता दें कि भारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी. लेकिन 1193 में आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया था. यह धरोहर केवल नालंदा ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास और संस्कृति का प्रतिबिम्ब है. इसे विश्व धरोहर का दर्जा भी मिला हुआ है.