नालंदा: लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरूआत हो चुकी है. 4 दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान का समापन 3 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर होगा. इस महापावन त्योहार को लेकर जिला समेत पूरे प्रदेश में तैयारियां अंतिम चरण पर हैं. जिले के एकंगरसराय प्रखंड स्थित औंगारी धाम ऐतिहासिक सूर्य मंदिर का अपना अलग ही महत्व है. यहां पर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों के लोग भी भगावन सूर्य की आराधना के लिए जुटते है.
पश्चिम मुखी है मंदिर
बताया जाता है कि यह मंदिर द्वापर युगीन काल का है. मंदिर के पुजारी पंडित गंगाधर पांडेय का कहना है कि मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्यनारायण की दो आदम कद प्रतिमाएं हैं. इसके आलावे कई अन्य छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी है. मंदिर में एक बड़ा सा घंटा लगा जिसे बजाकर श्रद्धालु भगवान सूर्य से अपनी मनोकामना निवेदित करते हैं.
12 बीघे में फैला है मंदिर का सरोवर
मंदिर के पुजारी गंगाधर पांडेय बताते है कि यह सूर्य धाम 12 बीघे फैला हुआ है. यहां पर एक सरोवर है , ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं को असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. प्रत्येक रविवार और छठ पूजा के अवसर पर सूर्योपासना करने के लिए दूर-दूर से लोग आते है.
देश के प्रसिद्ध 12 सूर्य पीठों में से एक
प्रसिद्ध सूर्य धाम औंगारी सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं. बताया जाता है कि यहां छठ व्रत करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश भर के श्रद्धालु यहां आते हैं. लोग यहां अस्थाय़ी तम्बू लगा कर सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ संपन्न करते हैं. जानकार बताते है कि पूरे देश में कुल 12 प्रमुख सूर्य मंदिर है. यह मंदिर उन्हीं 12 सूर्य पीठों में से एक है. देश में देवार्क, लोलार्क, पूण्यार्क, कोणार्क, चाणार्क आदि प्रमुख सूर्य मंदिर है.
मूर्ति भंजक औरंगजेब भी हो चुका है नतमस्तक
जानकार बताते है कि इस सूर्य शक्ति पीठ का द्वार पश्चिम दिशा में है, इसका एक खास कारण है. बताया जाता है कि मूर्ति भंजक औरंगजेब जब देश के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ते हुए इस सूर्य मंदिर को तोड़ने का प्रयास करने लगा. तो उसने कई माह तक मंदिर को तोड़ने का असफल प्रयास जारी रखा. अंत में वह थक कर मूर्छित होकर गिर गया. मूर्छा टूटने पर औरंगजेब ने भगवान भास्कर के आगे नतमस्तक होकर मंदिर के मुख्य द्वार के पूरब से पश्चिम दिशा हो जाने कि याचना की. जिसके बाद मंदिर का द्वार चमत्कारिक रूप से पश्चिम दिशा में हो गया.
मंदिर की पौराणिक कथा
द्वापर काल में यह मंदिर अंगार नाथ मठ के नाम से जाना जाता था. दंतकथाओं की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र शाम्भ ने एक बार नारद मुनि की उपेक्षा की थी. जिसके बाद कुपित नारद मुनि ने राजा शाम्भ से बदला लेने के लिए एक चाल चली. नारद मुनी ने भगवान श्री कृष्ण से जाकर बताया कि आपका पौत्र ब्रज में गोपियों के साथ रास रचा रहा है. जिसके बाद वे राजा शाम्भ के पास जाकर कहा कि ब्रज में श्रीकृष्ण आपको याद कर रहे है. भगवान कृष्ण और उनके पौत्र का चेहरा एक समान था. जब शाम्भ ब्रज पहुंचे तो गोपियां उनमें लिपट गयी. भगवान श्री कृष्ण शाम्भ को रास करते देखकर क्रोध में पूरे शरीर में कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. जिसके बाद जब शाम्भ ने नारद से क्षमा याचना की तो उन्होंने शाम्भ को इस रोग से मुक्ति पाने का मार्ग बताते हुए कहा कि भगवान सूर्य की उपासना करने के बाद एक ही रात 12 सूर्य मठ का निर्माण कराने पर इस रोग से मुक्ति मिलेगी. जिसके बाद शाम्भ ने विश्वकर्मा की मदद से 12 सूर्य मठों का निर्माण कराया.