नालंदाः देश के 12 सूर्य मंदिरों में से एक नालंदा का बड़गांव सूर्य मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है. कहा जाता है कि भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा इसी बड़गांव से शुरू हुई थी. जिस का पुराना नाम बराक था. सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा अब लोक परंपरा बन गई है. छठ पूजा लोक आस्था के महापर्व के रूप में जाना जाता है.
बड़गांव में पवित्र मन से भगवान सूर्य की उपासना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. यहां साल में दो बार कार्तिक और चैत्र मास में छठ महापर्व का आयोजन किया जाता है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं.
द्वापर कालीन है बड़गांव स्थित सूर्य मंदिर
जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से करीब 13 किलोमीटर दूर बड़गांव सूर्यनगरी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के नजदीक स्थित है. बड़गांव स्थित सूर्य तालाब के पवित्र जल में स्नान करके छठ व्रती सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं. कहा जाता है कि बड़गांव स्थित सूर्य मंदिर द्वापर कालीन है.
राजा साम्ब को मिली थी कुष्ठ रोग से मुक्ति
भगवान श्री कृष्ण के पुत्र राजा साम्ब ने इस मंदिर की स्थापना की थी. राजा साम्ब अपने पिता से भी अधिक रूपवान थे. महर्षि दुर्वासा के श्राप से उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कुष्ठ व्याधि से मुक्ति पाने के लिए बड़गांव में सूर्य उपासना करने का मार्ग बताया था. पिता के बताए मार्ग के अनुसार राजा साम्ब बराक जिसे आज बड़गांव के नाम से जाना जाता है वहां पहुंचे. राजा साम्ब को 49 दिनों तक बड़गांव में सूर्य उपासना करने के बाद महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति मिली थी.
तंबुओं का नगर बन जाता है बड़गांव
कहा जाता है कि बड़गांव तालाब में स्नान करने से कुष्ठ और चर्म जैसे रोग से मुक्ति मिलती है. छठ पर्व के मौके पर यहां बिहार सहित देश के कई राज्यों से लोग आते हैं और 4 दिनों तक रहकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं. छठ पूजा के दौरान पूरा बड़गांव तंबुओं का नगर बन जाता है. पूरे खेत में अस्थाई रूप से लोगों के निवास स्थल बन जाता है. इस दौरान लोग कठिन व्रत करते हैं और व्रत को पूरा आने के बाद वापस अपने घरों को लौट जाते हैं.