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जिस बुनकर गृह के बने कपड़ों की देशभर में होती थी डिमांड, आज सरकार की बेरुखी से हुआ जर्जर

बिहार शरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के अधीन 7 जिले थे. जिसमे नालंदा, नवादा, पटना, गया, अरवल शामिल था. सभी जिले के बुनकर इस कार्यालय से जुड़े थे, जिसका लाभ बुनकरों को मिलता था. लेकिन, समय के साथ-साथ बुनकरों का काम भी मंदा होता चला गया.

बदहाल स्थिति में बुनकर गृह
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Published : Jun 5, 2019, 2:13 PM IST

नालंदा: जिले का हस्त बुनकर गृह इन दिनों बदहाली की कगार पर है. कभी यहां बड़ी तादाद में कपड़े बुने जाते थे. लेकिन जैसे-जैसे बुनकरों का धंधा मंदा होने लगा, यह भवन भी जर्जर अवस्था में पहुंच गया. आलम यह है कि इसकी सुध लेने वाला तक कोई नहीं है.

1978 का बना भवन
इस भवन को 1978 में बिहारशरीफ के गढ़पर मोहल्ले में बनाया गया था. साथ ही बिहारशरीफ में क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ का निर्माण भी किया गया. यहां कभी बहुत भीड़ लगा करती थी, लेकिन अब यह भवन पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुका है. हालत ऐसी कि कभी भी यह भवन धराशायी हो सकता है.

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बदहाल स्थिति में बुनकर गृह

बुनकर अध्यक्ष ने दी जानकारी
बुनकर प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जाहिद अंसारी ने कहा कि बिहार शरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के निर्माण के पीछे उद्देश्य संघ के माध्यम से बुनकरों को सुत उपलब्ध कराया जाना था. ताकि बुनकर उन सुतों से कपड़ा तैयार कर बाजार में उपलब्ध कराने के लिए पुनः संघ को दें. उन्होंने कहा कि संघ के माध्यम से ही बुनकरों को उनके द्वारा तैयार किये गए कपड़े को बाजार उपलब्ध हो जाता था और बुनकर को आसानी से इसका लाभ मिलता था.

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जाहिद अंसारी, बुनकर प्रकोष्ठ

समय के साथ हुआ काम मंदा
जाहिद के मुताबिक बिहार शरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के अधीन 7 जिले थे. जिसमे नालंदा, नवादा, पटना, गया, अरवल शामिल था. सभी जिले के बुनकर इस कार्यालय से जुड़े थे जिसका लाभ बुनकरों को मिलता था. लेकिन समय के साथ-साथ बुनकरों का काम भी मंदा होता चला गया. सरकार का ध्यान भी कम होता चला गया. उन्होंने कहा कि भले ही सरकार बुनकरों के लिये बड़ी बातें कर ले. लेकिन, जमीनी यह हकीकत है कि बुनकर का काम कम होता चला गया और कार्यालय की हालत भी खराब होती चली गई.

सरकार की उदासीनता का मार झेलता बुनकर गृह

कर्मचारी ने बताई समस्या
कर्मचारी साबिर अली का कहना है कि जितने भी कर्मचारी थे. सभी यहां से रिटायर्ड होकर चले गए. सभी का रुपया यहां जमा है. उन्होंने कहा कि भविष्य में वे भी यहां से चले जाएंगे, तो उनका भी पैसा फंस जाएगा. सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए, कि किस तरह से यह हस्तकरघा बुनकर समिति संघ चला रही थी.

सरकार को दिया आवेदन
बता दें कि खंडहर हो चुका भवन कभी भी धराशायी हो सकती है. इसके लिए कई बार सरकार को आवेदन दिया गया है. इसके बावजूद अब तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. एक बार फिर भवन निर्माण की बात चल रही है. इसके लिए डीपीआर तैयार किया जा रहा है. जिसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि बुनकरों के हित में कोई अच्छी खबर मिल सकती है.

नालंदा: जिले का हस्त बुनकर गृह इन दिनों बदहाली की कगार पर है. कभी यहां बड़ी तादाद में कपड़े बुने जाते थे. लेकिन जैसे-जैसे बुनकरों का धंधा मंदा होने लगा, यह भवन भी जर्जर अवस्था में पहुंच गया. आलम यह है कि इसकी सुध लेने वाला तक कोई नहीं है.

1978 का बना भवन
इस भवन को 1978 में बिहारशरीफ के गढ़पर मोहल्ले में बनाया गया था. साथ ही बिहारशरीफ में क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ का निर्माण भी किया गया. यहां कभी बहुत भीड़ लगा करती थी, लेकिन अब यह भवन पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुका है. हालत ऐसी कि कभी भी यह भवन धराशायी हो सकता है.

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बदहाल स्थिति में बुनकर गृह

बुनकर अध्यक्ष ने दी जानकारी
बुनकर प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जाहिद अंसारी ने कहा कि बिहार शरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के निर्माण के पीछे उद्देश्य संघ के माध्यम से बुनकरों को सुत उपलब्ध कराया जाना था. ताकि बुनकर उन सुतों से कपड़ा तैयार कर बाजार में उपलब्ध कराने के लिए पुनः संघ को दें. उन्होंने कहा कि संघ के माध्यम से ही बुनकरों को उनके द्वारा तैयार किये गए कपड़े को बाजार उपलब्ध हो जाता था और बुनकर को आसानी से इसका लाभ मिलता था.

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जाहिद अंसारी, बुनकर प्रकोष्ठ

समय के साथ हुआ काम मंदा
जाहिद के मुताबिक बिहार शरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के अधीन 7 जिले थे. जिसमे नालंदा, नवादा, पटना, गया, अरवल शामिल था. सभी जिले के बुनकर इस कार्यालय से जुड़े थे जिसका लाभ बुनकरों को मिलता था. लेकिन समय के साथ-साथ बुनकरों का काम भी मंदा होता चला गया. सरकार का ध्यान भी कम होता चला गया. उन्होंने कहा कि भले ही सरकार बुनकरों के लिये बड़ी बातें कर ले. लेकिन, जमीनी यह हकीकत है कि बुनकर का काम कम होता चला गया और कार्यालय की हालत भी खराब होती चली गई.

सरकार की उदासीनता का मार झेलता बुनकर गृह

कर्मचारी ने बताई समस्या
कर्मचारी साबिर अली का कहना है कि जितने भी कर्मचारी थे. सभी यहां से रिटायर्ड होकर चले गए. सभी का रुपया यहां जमा है. उन्होंने कहा कि भविष्य में वे भी यहां से चले जाएंगे, तो उनका भी पैसा फंस जाएगा. सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए, कि किस तरह से यह हस्तकरघा बुनकर समिति संघ चला रही थी.

सरकार को दिया आवेदन
बता दें कि खंडहर हो चुका भवन कभी भी धराशायी हो सकती है. इसके लिए कई बार सरकार को आवेदन दिया गया है. इसके बावजूद अब तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. एक बार फिर भवन निर्माण की बात चल रही है. इसके लिए डीपीआर तैयार किया जा रहा है. जिसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि बुनकरों के हित में कोई अच्छी खबर मिल सकती है.

Intro:नालंदा। बुनकरों को रोजगार के साथ साथ उनके द्वारा तैयार किये गए कपड़ो को बाजार उपलब्ध हो सके इसके लिए बिहारशरीफ में क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ बनाया गया था। इसके लिए वर्ष 1978 में बिहारशरीफ के गढ़पर मोहल्ला में इसका भवन भी बनाया गया था लेकिन जैसे जैसे बुनकर की हालत दयनीय होती गयी वैसे वैसे इसका भवन भी जर्जर होता चला गया। आज इसका भवन पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुका है। हालात यह है कि कभी भी यह भवन धराशायी हो सकता है। इतना ही नही यहां काम करने वाले कर्मचारी भी रिटायर कर चुके है जिसके बाद से कोई बहाल नही हो सके। बुनकर के लिये भी यह भवन अब किसी काम का नही रहा।
बाइट। जाहिद अंसारी, अध्यक्ष बुनकर प्रकोष्ठ


Body:बिहारशरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ का निर्माण के पीछे उद्देश्य था की संघ के माध्यम से बुनकरों को सुत उपलब्ध कराया जाए और बुनकर उन सुत से कपड़ा तैयार कर बाजार उपलब्ध कराने के लिए पुनः संघ को दे दे। संघ के माध्यम से ही बुनकरों को उनके द्वारा तैयार किये गए कपड़े को बाजार उपलब्ध हो जाता था और बुनकर को आसानी से इसके लाभ मिलता था। बिहारशरीफ क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति संघ के अधीन 7 जिला था जिसमे नालंदा, नवादा, पटना, गया, अरवल शामिल था। सभी जिले के बुनकर इस कार्यालय से जुड़े थे जिसके लाभ बुनकरों को मिलता था। लेकिन समय के साथ साथ बुनकरों को काम मंदा होता चला गया। सरकार का ध्यान भी कम होता चला गया। भले ही सरकार बुनकरों के लिये बड़ी बड़ी बातें कर ले लेकिन जमीनी हकीकत है की बुनकर का काम कम होता चला गया। जिसके कारण कार्यालय को हालात भी खराब होती चली गयी।
बाइट। साबिर अली, कर्मचारी


Conclusion:खंडहर हो चुकी भवन कभी भी धराशायी हो सकती है। इस दिशा में कई बार सरकार को लिखा भी गया जिसके बाद भी कुछ नही हो सका। अब सरकार के स्तर पर एक बार फिर भवन निर्माण की बात चल रही है और इसके लिए डी पी आर तैयार किया जा रहा है, जिसके बाद उम्मीद जगी है कि बुनकर के हित में कोई काम हो सकेगा और एक बार फिर से बुनकर के उद्योग को बढ़ावा मिल सकेगा ताकि इस उद्योग से जुड़े लोग एक बार फिर से अपनी जिंदगी का खुशहाल बना सके।
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