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आदिवासी इलाकों में जागरूकता है पर संसाधन नहीं, पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना !

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Published : Apr 27, 2021, 4:40 PM IST

Updated : Apr 27, 2021, 6:19 PM IST

कोरोना वायरस से बचने के लिये आपको किसी ने तीन परतों वाला मास्क पहनने की सलाह दी होगी, तो किसी ने एन-95 मास्क का भी जिक्र किया होगा. लेकिन कोरोना वायरस के खतरे के बारे में जानने के बाद मुंगेर जिले के कुछ इलाकों में आदिवासियों ने सखुआ के पत्तों का ही मास्क बनाकर उसका उपयोग करना शुरू कर दिया है. देखिए ये रिपोर्ट.

मुंगेर
मुंगेर

मुंगेर: जिले में कोरोना के लगातार संक्रमण बढ़ने के बावजूद भी शहरी क्षेत्र में जहां शिक्षित लोग मास्क पहनने से इनकार कर रहे हैं. वहीं, बरियारपुर प्रखंड के रतनपुर पंचायत के अंतर्गत आदिवासियों का एक ऐसा 'उब्भीवनवर्षा' गांव है. जहां आदिवासी बाहुल्य समाज के लोग सखुआ के पत्तों का मास्क बनाकर लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Bihar Corona Update: 24 घंटे में 67 मौत, 11801 नए केस, पटना HC में कोरोना मामले को लेकर होगी सुनवाई

पत्तों के मास्क से व्यवस्था पर सवाल
ग्रामीण दीपा टुड्डू, अजय टुड्डू, सुखिया देवी आदि ग्रामीणों ने बताया कि अभी जानलेवा कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है और सरकारी स्तर पर हम लोगों को आज तक कोरोना जांच नहीं हुई है. यहां तक की कोरोना का टीका भी हम लोगों को नहीं दिया गया है. यहां तक की मास्क और सेनिटाइजर भी नहीं मिला है.

पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे लोग
पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे लोग

''हम सभी ग्रामीण मजदूरी करने के साथ सखुआ के पत्तों से भोज पत्तल बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. कोरोना के डर से बाहर काम करने के किए नहीं जा रहे हैं. गांव में ही हम लोग इन पत्तों से पत्तल बनाते हैं. एक जगह कई लोग रहते हैं. इस कारण सखुआ के पत्तों से ही मास्क बनाकर पहन लेते हैं और गांव में ही मास्क लगाकर रहते हैं.''- दीपा टुड्डू, ग्रामीण

कोरोना के प्रति जागरूक आदिवासी
कोरोना के प्रति जागरूक आदिवासी

'दूसरे गांव के लोग उड़ाते हैं मजाक'
एक दो बार हम लोग जब दूसरे गांव भोज पत्तों की बिक्री करने ये पत्ते वाले मास्क पहनकर गए तो ग्रामीण हम लोगों का मजाक उड़ाने लगे. इस कारण हम लोग कोरोना महामारी से बचने के लिए गांव में ही सखुआ के पत्तों का मास्क बनाकर पहन लेते हैं और जंगल पत्ता चुनने के लिए चले जाते हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में लॉकडाउन की मांग पर बोले मांझी- AC वाले लोग नहीं समझते हैं मजदूरों की मजबूरी

''ग्रामीणों का कहना है कि हमें जब कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो लगा कि खुद ही उपाय करना पड़ेगा, क्योंकि गांव से आसपास के सारे इलाके बहुत दूर है. प्रखंड से दूर होने के कारण हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पाती.''- पीपा टुड्डू, ग्रामीण

पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना
पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना

सरकारी सुविधाएं दूर की कौड़ी
ग्रामीणों से सरकारी स्तर पर मास्क, सेनिटाइजर उपलब्ध कराने के साथ ही सभी ग्रामीणों की कोरोना जांच कराने की बात कही. जिस पर आदिवासी लोगों का कहना है कि सरकार के द्वारा कोरोना से बचने के लिए जो टीका लगाया जा रहा है, वो टीका यहीं शिविर लगाकर दिया जाए. गांव से प्रखंड की दूरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इस कारण हम सभी ग्रामीणों को सभी चीज यहीं गांव में ही उपलब्ध करा दी जाय.

ये भी पढ़ें- मजदूर से बने मालिक...बल्ले से दूर कर रहे बेरोजगारी, 'WC' बैट बना पश्चिम चंपारण में दे रहे रोजगार

सुरक्षा के लिए बने 'आत्मनिर्भर'
गांव के लोगों की सेनिटाइजर और मास्क खरीदने की क्षमता नहीं है. यहां के आदिवासी जंगल पर निर्भर हैं और सखुआ के पत्तों का उपयोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी करते हैं. ग्रामीण पत्तों का मास्क बनाकर उसे किसी तरह मुंह पर लगाकर अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि. ये निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि ये पत्ते कितने असरदार हैं. पत्तों के इस्तेमाल से स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कोरोना वायरस की खबर आधे अधूरे ज्ञान के रूप में गांवों में पहुंच रही है.

मुंगेर: जिले में कोरोना के लगातार संक्रमण बढ़ने के बावजूद भी शहरी क्षेत्र में जहां शिक्षित लोग मास्क पहनने से इनकार कर रहे हैं. वहीं, बरियारपुर प्रखंड के रतनपुर पंचायत के अंतर्गत आदिवासियों का एक ऐसा 'उब्भीवनवर्षा' गांव है. जहां आदिवासी बाहुल्य समाज के लोग सखुआ के पत्तों का मास्क बनाकर लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक कर रहे हैं.

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पत्तों के मास्क से व्यवस्था पर सवाल
ग्रामीण दीपा टुड्डू, अजय टुड्डू, सुखिया देवी आदि ग्रामीणों ने बताया कि अभी जानलेवा कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है और सरकारी स्तर पर हम लोगों को आज तक कोरोना जांच नहीं हुई है. यहां तक की कोरोना का टीका भी हम लोगों को नहीं दिया गया है. यहां तक की मास्क और सेनिटाइजर भी नहीं मिला है.

पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे लोग
पत्तों का मास्क बनाकर पहन रहे लोग

''हम सभी ग्रामीण मजदूरी करने के साथ सखुआ के पत्तों से भोज पत्तल बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. कोरोना के डर से बाहर काम करने के किए नहीं जा रहे हैं. गांव में ही हम लोग इन पत्तों से पत्तल बनाते हैं. एक जगह कई लोग रहते हैं. इस कारण सखुआ के पत्तों से ही मास्क बनाकर पहन लेते हैं और गांव में ही मास्क लगाकर रहते हैं.''- दीपा टुड्डू, ग्रामीण

कोरोना के प्रति जागरूक आदिवासी
कोरोना के प्रति जागरूक आदिवासी

'दूसरे गांव के लोग उड़ाते हैं मजाक'
एक दो बार हम लोग जब दूसरे गांव भोज पत्तों की बिक्री करने ये पत्ते वाले मास्क पहनकर गए तो ग्रामीण हम लोगों का मजाक उड़ाने लगे. इस कारण हम लोग कोरोना महामारी से बचने के लिए गांव में ही सखुआ के पत्तों का मास्क बनाकर पहन लेते हैं और जंगल पत्ता चुनने के लिए चले जाते हैं.

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''ग्रामीणों का कहना है कि हमें जब कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो लगा कि खुद ही उपाय करना पड़ेगा, क्योंकि गांव से आसपास के सारे इलाके बहुत दूर है. प्रखंड से दूर होने के कारण हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पाती.''- पीपा टुड्डू, ग्रामीण

पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना
पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना

सरकारी सुविधाएं दूर की कौड़ी
ग्रामीणों से सरकारी स्तर पर मास्क, सेनिटाइजर उपलब्ध कराने के साथ ही सभी ग्रामीणों की कोरोना जांच कराने की बात कही. जिस पर आदिवासी लोगों का कहना है कि सरकार के द्वारा कोरोना से बचने के लिए जो टीका लगाया जा रहा है, वो टीका यहीं शिविर लगाकर दिया जाए. गांव से प्रखंड की दूरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इस कारण हम सभी ग्रामीणों को सभी चीज यहीं गांव में ही उपलब्ध करा दी जाय.

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गांव के लोगों की सेनिटाइजर और मास्क खरीदने की क्षमता नहीं है. यहां के आदिवासी जंगल पर निर्भर हैं और सखुआ के पत्तों का उपयोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी करते हैं. ग्रामीण पत्तों का मास्क बनाकर उसे किसी तरह मुंह पर लगाकर अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि. ये निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि ये पत्ते कितने असरदार हैं. पत्तों के इस्तेमाल से स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कोरोना वायरस की खबर आधे अधूरे ज्ञान के रूप में गांवों में पहुंच रही है.

Last Updated : Apr 27, 2021, 6:19 PM IST
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