कटिहारः कोरोना वायरस पूरे विश्व में अपना पांव पसार चुका है और इसको लेकर कई देशों ने पूरी तरह लॉकडाउन लगा दिया है. भारत में से 17 मई तक लाॅकडाउन है और आगे भी लाॅकडाउन की प्रक्रिया जारी रह सकती है. इस लाॅकडाउन में बाजार भी पूरी तरह बंद है. जिस कारण प्रतिदिन कमाने खाने वाले लोगों पर असर पड़ रहा है. बिक्री ठप होने के कारण लोगों की रोजी-रोटी पर समस्या आ गई है.
कोरोना वायरस का प्रकोप
आधुनिकता के इस दौड़ में पारंपरिक व्यवसाय को लोगों ने खत्म कर दिया है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो पारंपरिक रिवाज को मानते हैं. भारतीय संस्कृति में मिट्टी के बर्तनों का काफी महत्व है और मिट्टी के बर्तन का उपयोग शादी-ब्याह, पूजा-पाठ और अन्य चीजों में किया जाता है. लेकिन इस आधुनिकता के दौर में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार जातियों के व्यवसाय पर खतरा मंडराने लगा है.
दरअसल कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लाॅकडाउन है और ऐसे में कुम्हारों का मिट्टी का बर्तन बाजारों में नहीं पहुंच पा रहा है और घरों में लॉक हो गया है. दूसरी और आधुनिकता ने इन कुम्हारों के मेहनत पर पानी फेर दिया है.
लॉकडाउन की मार झेल रहे कुम्हार
लॉक डाउन का असर सभी वर्ग के लोगों पर पड़ा है. लेकिन सबसे ज्यादा इसकी मार कुम्हारों पर भी पड़ी है. दरअसल कुम्हारों के लिए यह पीक सीजन है, जिसमें उनकी खूब बिक्री होती है. मगर अब लॉकडाउन के कारण उनका कारोबार ठप हो गया है. इन दिनों मिट्टी की सुराही, चाय और लस्सी के कुल्हड़ो की बिक्री धड़ल्ले से होती थी, मगर अब सब कुछ बंद है. मई का महीना जो की शादी-ब्याह का महीना होता है और इस महीने में अन्य व्यवसाय की तरह उनके व्यवसाय भी काफी पूछ परख रखती है. लेकिन इस बार उनके व्यवसाय में सन्नाटा पसरा हुआ है. लॉक डाउन की वजह से शादियां रद्द होने के चलते उनके व्यवसाय को काफी नुकसान पहुंचा है. इतना ही नहीं इस चिलचिलाती धूप में पहले लोग जगह-जगह सुराही या मिट्टी के बर्तन में पानी रखते थे. जिनके लिए लोग कुम्हार से घड़े खरीदते थे. लेकिन बाजार बंद होने से बर्तनों की बिक्री पर पूरी तरह लगाम लग गया है.
संकट की घड़ी में कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी की समस्या
कटिहार शहरी क्षेत्र के कुम्हार टोली में करीब 50 परिवार अपना पुश्तैनी धंधा करके अपना घर परिवार चलाते हैं. लेकिन इस संकट की घड़ी में उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई है. कुम्हार बताते हैं कि इस कोरोना संकट में बाजार बंद है, बर्तन की बिक्री नहीं हो रही हैं, बाहर से मिट्टी नहीं आ रही है, तो इस स्थिति में घर परिवार कैसे चलाएं. कुम्हारों की माने तो बिहार सरकार की तरफ से इन्हें इलेक्ट्रिक चाक दिया जाए, तो इनका व्यवसाय और बढ़ेगा और उत्पादन भी अधिक होगा. ऐसे में उनका जीवन खुशहाल बनेगा.
संकट में कुम्हारों का जीवन
दूसरे के जीवन में खुशियां बिखेरने वाले, प्यासे कंठ की प्यास बुझाने वाले कुम्हार जाति अब अपने पुश्तैनी काम से काफी तंग आ चुके हैं, क्योंकि मशीनी युग ने उनके पुश्तैनी व्यवसाय को खत्म कर दिया है. इस आधुनिकता के दौर में लोग मिट्टी के घड़ों के जगह फ्रिज को अहमियत देना शुरू कर दिया है. कुल मिलाकर कहा जाए तो पुश्तैनी धंधे की दयनीय हालत के चलते कुम्हारों के जीवन संकट में है. ऐसे में कुम्हार जाति सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, ताकि इनकी पीड़ा को समझते हुए सरकार मदद के लिए आगे आए.