बांका: "बेटी गर्व, बेटी स्वाभिमान, उसकी मुस्कान में छिपा है संसार का सम्मान, हर कदम पर बढ़ती जाए, दुनिया को दिखा दें अपनी पहचान." ये लाइन बिहार के बांका निवासी शांति देवी पर सटीक बैठती है. शांति देवी बांका के बभन गामा की पंचायत सदस्य समिति हैं. आज शांति देवी के कार्य की सराहना चारो ओर हो रही है.
काफी समय बाद बेटी का आगमन: दरअसल, शांति देवी के घर एक नन्ही परी आयी हैं. पोती के जन्म के बाद शाही अंदाज में उसका स्वागत किया. गाड़ी को फूल माला से सजाकर शान-शौकत से घर लायी. शांति देवी बतायी हैं कि उनके घर बेटी का आगमन 40 से 45 साल बाद हुआ है. इस बीच उनके घर बेटी ने जन्म नहीं लिया. इतने साल बाद घर में लक्ष्मी आने पर शांति देवी फूले नहीं समा रही है.
"यह मेरी पोती है. 40-45 साल बाद मेरे घर लक्ष्मी आयी है. बच्ची के जन्म से काफी खुश हैं, इसलिए गाड़ी को सजाकर पोती को घर लायी हूं." -शांति देवी
22 जनवरी को जन्म: शांति देवी के पुत्र संजीव कुमार शर्मा और पुत्रवधु खुशबू कुमारी है. 22 जनवरी को खुशबू ने एक पुत्री को जन्म दिया. इस पुत्री के जन्म से धर्म और आध्यात्म के लिए विश्व प्रसिद्ध मंदार प्रक्षेत्र में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का एक संदेश फैला.
पुत्री रत्न से खुश परिवार सदस्य और बच्ची की मां खुशबू कुमारी ने बताया कि उनकी बेटी का नाम सभी ने 'रितिका' रखा है. "रितिका" नाम का अर्थ है 'सत्य', 'न्याय' है. यह नाम संस्कृत शब्द "रिति" से लिया गया है. रिति मतलब नियम या प्रवृत्ति और "का" सूचक उपसर्ग है. रितिका का अर्थ भी 'धार्मिक या सत्य के मार्ग पर चलने वाली' के रूप में लिया जा सकता है. यह नाम भारत में बहुत प्रचलित है.
खुशबू कुमारी के सफल प्रसव में आंगनबाड़ी सेविका, रिंकू देवी आशा, देवकी कुमारी एएनएम, सुमन कुमारी सहित अन्य चिकित्सक का सहयोग रहा. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ दिवस पर एक पुत्री का सफल प्रसव कराया गया. इसके लिए इनके परिवार ने इन सभी को बधाई दी.
बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ के 10 साल: दरअसल, 22 जनवरी को ही बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ के 10 साल पूरा हो गए. इसी दिन इस योजना की शुरुआत की गयी थी. ऐसे में इस मौके पर बेटी का जन्म लेना सौभाग्य की बात है. जब शांति देवी पुत्रवधु के साथ अपनी पोती को घर लायी तो इस प्रेरणादायक दृश्य को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.
22 जनवरी योजना की शुरुआत: दरअसल, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को हुई थी. यह एक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल है. लड़कियों की अनुपात घटने के कारण इसकी शुरुआत की गयी थी.
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इस योजना का उद्येश्य लड़कियों के अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना है. इसके अलावे शिक्षा से जोड़ना, लड़कियों को शोषण से बचाना, सही/गलत के बारे में अवगत कराना, सामाजिक और वित्तीय रूप स्वतंत्र बनाना आदि इसका मुख्य उद्देश्य है.
जन्म दर में सुधार: रिपोर्ट के अनुसार इस योजना से लड़की के जन्म दर में काफी बदलाव आए. लिंगानुपात की बात करें तो 2014-15 में 1000 लड़के पर 918 लड़की थी लेकिन 2022-23 में एसआरबी 933 हो गया. बिहार की बात करें तो यहां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों को जोड़ा गया. 2015-16 में लड़कियों का नामांकन 10-15% तक बढ़ा. 2018-19 में भी सकारात्मक परिणाम मिले हैं. प्रारंभिक शिक्षा में सुधार और बाल विवाह की दर में भी कमी आई है.
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शिक्षा में सुधार: देश में माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों के नामांकन में वृद्धि देखने को मिली. यू डायस रिपोर्ट के अनुसार सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 2014-15 में 75.51% और 2021-22 में 79.4% रहा. संस्थागत प्रसव में वृद्धि आयी. 2014-15 में संस्थागत प्रसव 87% रहा. वहीं 2019-20 94% से अधिक हो गया.
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