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अन्नदाताओं की पीड़ा- गेहूं के भूसे से भी सस्ता बिक रहा मक्का, नहीं मिल रहे खरीदार

मक्का की लगातार गिरती कीमतों के कारण यह अब गेहूं के भूसे से भी सस्ता हो गया है. इससे मक्का में रखे-रखे कीड़े लग रहे हैं.

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Published : Aug 19, 2020, 5:45 PM IST

कटिहार: कोरोना संकट और लॉकडाउन ने जिले के किसानों का जीना दूभर कर दिया है. वहीं 'पीली धातु' के नाम से मशहूर मक्का किसानों के सामने काफी परेशानी खड़ी हो गई है. मक्का की लगातार गिरती कीमतों के कारण यह अब गेहूं के भूसे से भी सस्ता हो गया है. वहीं कीमतों में भारी गिरावट के बाबजूद मक्का खरीददारी में व्यापारी अपनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इससे मक्का में रखे-रखे कीड़े लग रहे हैं.

जिले के मनिहारी इलाके के किसान मक्का की तैयार फसल को कीड़े लगने से बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. किसानों ने बताया कि मार्च के महीने में मक्के की फसल पकने को थी. उसी समय सरकार ने देशभर में कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लॉकडाउन लागू कर दिया. जिसके कारण किसी तरह किसानों के फसल कटकर घरों तक पहुंच तो गए लेकिन बाजार बन्द होने की वजह से कोई व्यापारी मक्का खरीदने नहीं आया. वहीं किसान भी अपने फसल को कहीं और नहीं बेच पाए.

सड़क पर मक्का सुखाते किसान
सड़क पर मक्का सुखाते किसान

बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रहा मक्का
बता दें कि लॉकडाउन से पहले जिले के व्यापारी मक्का की बड़े पैमाने पर खरीद कर ट्रेनों के जरिए एक जगह से दूसरे जगह भेजते थे. लेकिन इस बार यह भी नहीं हुआ. सवारी रेलगाड़ियों के बंद होने के साथ साथ गुड्स ट्रेनों के रैकें भी कम लगी. नतीजा यह हुआ कि अब तक मक्का किसानों के घरों में पड़ा हुआ हैं. घर मे पड़े-पड़े मक्के के दानों में कीड़े लग रहे हैं और अनाज बर्बाद हो रहे हैं.

खराब हो रहा मक्का
खराब हो रहा मक्का

नहीं मिल रहे खरीदार
किसान दिनेश सिंह ने बताया कि मक्का की फसलों का कोई खरीददार नहीं है. व्यापारी नहीं आ रहे हैं, जिससे अनाज बिक नहीं पा रहा है. उन्होने बताया कि मक्के के फसलों से ज्यादा गेहूं के भूसे की कीमत है. अभी गेहूं का भूसा 1,400 से 1,500 रुपया प्रति क्विंटल बिक रहा है. जबकि मक्के की फसल को 800 रुपये प्रति क्विंटल भी कोई पूछ भी नहीं रहा है. कोई व्यापारी यहा फटकते तक नहीं है.

जानकारी देते किसान
जानकारी देते किसान

लॉकडाउन के कारण हुआ सबकुछ चौपट
बता दें कि सीमांचल में मक्का की खेती किसानों की रीढ़ मानी जाती है. बड़े पैमाने पर होने वाले मक्का की खेती की वजह से यह इलाका 'मेज हब' के रूप में जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर मक्का की आमदनी से किसान अपने सालों भर के जीवन यापन का खांका तैयार करते हैं. लेकिन लॉकडाउन ने जिले के किसानों की कमर तोड़ दी है. किसान सुरेश ने बताया कि इस बार सबकुछ चौपट हो गया. मक्का का कोई लेने वाला नहीं हैं और यह बर्बाद हो रहा है. उन्होंने बताया कि मक्का लगाने की खेतों में लागत तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल आती है. जबकि आधा यानि 1,500 रुपया भी नहीं निकल पा रहा हैं.

कटिहार: कोरोना संकट और लॉकडाउन ने जिले के किसानों का जीना दूभर कर दिया है. वहीं 'पीली धातु' के नाम से मशहूर मक्का किसानों के सामने काफी परेशानी खड़ी हो गई है. मक्का की लगातार गिरती कीमतों के कारण यह अब गेहूं के भूसे से भी सस्ता हो गया है. वहीं कीमतों में भारी गिरावट के बाबजूद मक्का खरीददारी में व्यापारी अपनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इससे मक्का में रखे-रखे कीड़े लग रहे हैं.

जिले के मनिहारी इलाके के किसान मक्का की तैयार फसल को कीड़े लगने से बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. किसानों ने बताया कि मार्च के महीने में मक्के की फसल पकने को थी. उसी समय सरकार ने देशभर में कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लॉकडाउन लागू कर दिया. जिसके कारण किसी तरह किसानों के फसल कटकर घरों तक पहुंच तो गए लेकिन बाजार बन्द होने की वजह से कोई व्यापारी मक्का खरीदने नहीं आया. वहीं किसान भी अपने फसल को कहीं और नहीं बेच पाए.

सड़क पर मक्का सुखाते किसान
सड़क पर मक्का सुखाते किसान

बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रहा मक्का
बता दें कि लॉकडाउन से पहले जिले के व्यापारी मक्का की बड़े पैमाने पर खरीद कर ट्रेनों के जरिए एक जगह से दूसरे जगह भेजते थे. लेकिन इस बार यह भी नहीं हुआ. सवारी रेलगाड़ियों के बंद होने के साथ साथ गुड्स ट्रेनों के रैकें भी कम लगी. नतीजा यह हुआ कि अब तक मक्का किसानों के घरों में पड़ा हुआ हैं. घर मे पड़े-पड़े मक्के के दानों में कीड़े लग रहे हैं और अनाज बर्बाद हो रहे हैं.

खराब हो रहा मक्का
खराब हो रहा मक्का

नहीं मिल रहे खरीदार
किसान दिनेश सिंह ने बताया कि मक्का की फसलों का कोई खरीददार नहीं है. व्यापारी नहीं आ रहे हैं, जिससे अनाज बिक नहीं पा रहा है. उन्होने बताया कि मक्के के फसलों से ज्यादा गेहूं के भूसे की कीमत है. अभी गेहूं का भूसा 1,400 से 1,500 रुपया प्रति क्विंटल बिक रहा है. जबकि मक्के की फसल को 800 रुपये प्रति क्विंटल भी कोई पूछ भी नहीं रहा है. कोई व्यापारी यहा फटकते तक नहीं है.

जानकारी देते किसान
जानकारी देते किसान

लॉकडाउन के कारण हुआ सबकुछ चौपट
बता दें कि सीमांचल में मक्का की खेती किसानों की रीढ़ मानी जाती है. बड़े पैमाने पर होने वाले मक्का की खेती की वजह से यह इलाका 'मेज हब' के रूप में जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर मक्का की आमदनी से किसान अपने सालों भर के जीवन यापन का खांका तैयार करते हैं. लेकिन लॉकडाउन ने जिले के किसानों की कमर तोड़ दी है. किसान सुरेश ने बताया कि इस बार सबकुछ चौपट हो गया. मक्का का कोई लेने वाला नहीं हैं और यह बर्बाद हो रहा है. उन्होंने बताया कि मक्का लगाने की खेतों में लागत तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल आती है. जबकि आधा यानि 1,500 रुपया भी नहीं निकल पा रहा हैं.

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