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Lockdown में बांस कारीगरों के सामने भुखमरी की नौबत, नाकाफी साबित हो रही सरकारी मदद - राष्ट्रीय बांस मिशन

लॉकडाउन का खासा असर बांस कारीगरों पर देखने को मिल रहा है. बांस के सामानों की बिक्री नहीं होने के कारण घर-परिवार चलाने में उन्हें काफी परेशानी हो रही है.

बांस कारीगरों का हाल बेहाल
बांस कारीगरों का हाल बेहाल
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Published : Aug 16, 2020, 7:19 PM IST

कटिहार: बिहार सरकार की ओर से बांस के कारीगरों के लिए कई तरह के योजनाएं चलाई जा रही हैं. जिससे इन परंपरागत कारीगरों को आर्थिक मदद मिल सके. लेकिन जिले में आज भी कई ऐसे बांस के कारीगर हैं, जिन्हें बंबू मिशन का प्रशिक्षण लेने के बाद भी उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाई है.

कोरोना महामारी की रोकथाम के कारण लॉकडाउन और सामाजिक दूरी ने सभी को एक दूसरे से अलग कर दिया है. काम धंधे ठप पड़ गए हैं. कारीगर बेकार पड़े हुए हैं. सभी कुटीर उद्योग ठप पड़े हैं. हजारों कारीगर जल्द स्थिति सुधरने के इंतजार में हैं.

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बांस से टोकरी बनाती महिला

आन पड़ा है आर्थिक संकट
परंपरागत कारीगर बांस से निर्मित सामानों को बनाने में जुटे हैं लेकिन उनके पास कोई खरीदार नहीं हैं. जिस कारण बांस की सामग्री बनाने वाले कारीगरों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है. हसनगंज प्रखंड क्षेत्र में बांस की सामग्री बनाने वाले कारीगर एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. उनके बनाए गए बांस की टोकरी, दौरा, सूप सब बेकार पड़े हैं.

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बांस कारीगरों का हाल बेहाल

नहीं हो रही सामानों की बिक्री
कारीगरों की मानें तो लाॅकडाउन के कारण बाजार नहीं लगने से सामानों की बिक्री नहीं हुई. आर्थिक संकट झेलने वाले यह परंपरागत कारीगर को खरीदार नहीं मिल रहा है जिस कारण उनके सामने भुखमरी की नौबत आन पड़ी है. इलाके के लोग सुबह उठते ही बांस के सामान बनाने में जुट जाते हैं. पुरुष बांस खरीद कर लाते हैं और महिलाएं तमाम तरह की टोकरी, दौरा, पंखा बनाती हैं.

सरकार से मदद की आस
पिछले 6 महीने से लॉकडाउन होने से बाजार बंद हो गए हैं. पूजा-पाठ, शादी-ब्याह और अन्य कार्य बंद होने की वजह से बांस की सामग्रियों की बिक्री बंद हो चुकी है. ऐसे में बांस की सामग्री बनाकर बेचने वाले कारीगर अपने परिवार का पालन-पोषण जैसे तैसे करने को विवश हैं. किसी से पैसे उधार लेकर तो कोई दुकान में उधार लेकर अपना दिन काट रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से इन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है.

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बांस कारीगरों को नहीं मिल रही सरकार की मदद

कारीगरों ने बताई आपबीती
बांस के परंपरागत कारीगर कुंदन महली बताते हैं कि पूजा-पाठ में प्रयोग होने वाले बांस का सामान बना रहे हैं. लेकिन इसकी बिक्री नहीं हो पा रही है. पिछले 6 महीने से लॉकडाउन लगा हुआ है और बाजार बंद पड़े हैं. उन्होंने बताया बंबू मिशन के तहत त्रिपुरा में प्रशिक्षण भी लिया. लेकिन प्रशिक्षण के बाद भी जिले में अभी तक हम लोगों को कोई रोजगार नहीं मिल सका है. हालांकि प्रखंड क्षेत्र में फैक्ट्री बनाने की बात चल रही है. जिसमें हम लोगों को काम देने की बात कही जा रही है.

कटिहार: बिहार सरकार की ओर से बांस के कारीगरों के लिए कई तरह के योजनाएं चलाई जा रही हैं. जिससे इन परंपरागत कारीगरों को आर्थिक मदद मिल सके. लेकिन जिले में आज भी कई ऐसे बांस के कारीगर हैं, जिन्हें बंबू मिशन का प्रशिक्षण लेने के बाद भी उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाई है.

कोरोना महामारी की रोकथाम के कारण लॉकडाउन और सामाजिक दूरी ने सभी को एक दूसरे से अलग कर दिया है. काम धंधे ठप पड़ गए हैं. कारीगर बेकार पड़े हुए हैं. सभी कुटीर उद्योग ठप पड़े हैं. हजारों कारीगर जल्द स्थिति सुधरने के इंतजार में हैं.

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बांस से टोकरी बनाती महिला

आन पड़ा है आर्थिक संकट
परंपरागत कारीगर बांस से निर्मित सामानों को बनाने में जुटे हैं लेकिन उनके पास कोई खरीदार नहीं हैं. जिस कारण बांस की सामग्री बनाने वाले कारीगरों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है. हसनगंज प्रखंड क्षेत्र में बांस की सामग्री बनाने वाले कारीगर एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. उनके बनाए गए बांस की टोकरी, दौरा, सूप सब बेकार पड़े हैं.

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बांस कारीगरों का हाल बेहाल

नहीं हो रही सामानों की बिक्री
कारीगरों की मानें तो लाॅकडाउन के कारण बाजार नहीं लगने से सामानों की बिक्री नहीं हुई. आर्थिक संकट झेलने वाले यह परंपरागत कारीगर को खरीदार नहीं मिल रहा है जिस कारण उनके सामने भुखमरी की नौबत आन पड़ी है. इलाके के लोग सुबह उठते ही बांस के सामान बनाने में जुट जाते हैं. पुरुष बांस खरीद कर लाते हैं और महिलाएं तमाम तरह की टोकरी, दौरा, पंखा बनाती हैं.

सरकार से मदद की आस
पिछले 6 महीने से लॉकडाउन होने से बाजार बंद हो गए हैं. पूजा-पाठ, शादी-ब्याह और अन्य कार्य बंद होने की वजह से बांस की सामग्रियों की बिक्री बंद हो चुकी है. ऐसे में बांस की सामग्री बनाकर बेचने वाले कारीगर अपने परिवार का पालन-पोषण जैसे तैसे करने को विवश हैं. किसी से पैसे उधार लेकर तो कोई दुकान में उधार लेकर अपना दिन काट रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से इन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है.

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बांस कारीगरों को नहीं मिल रही सरकार की मदद

कारीगरों ने बताई आपबीती
बांस के परंपरागत कारीगर कुंदन महली बताते हैं कि पूजा-पाठ में प्रयोग होने वाले बांस का सामान बना रहे हैं. लेकिन इसकी बिक्री नहीं हो पा रही है. पिछले 6 महीने से लॉकडाउन लगा हुआ है और बाजार बंद पड़े हैं. उन्होंने बताया बंबू मिशन के तहत त्रिपुरा में प्रशिक्षण भी लिया. लेकिन प्रशिक्षण के बाद भी जिले में अभी तक हम लोगों को कोई रोजगार नहीं मिल सका है. हालांकि प्रखंड क्षेत्र में फैक्ट्री बनाने की बात चल रही है. जिसमें हम लोगों को काम देने की बात कही जा रही है.

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