कटिहारः जिले के किसान अब नए किस्म की खेती करके कामयाबी हासिल कर रहे हैं. इसमें अब काला गेहूं की फसल का नाम भी जुड़ गया है. पहले काला गेहूं का नाम बिहार में गिने चुने किसान ही जानते थे, लेकिन इसकी गुणवत्ता और मुनाफे को जानकर पहली बार कटिहार में काले गेहूं की खेती शुरू की गई है. जिले में दो-तीन किसान काला गेहूं लगा चुके हैं. काले गेहूं के उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही होते हैं. इस गेहूं का अपेक्षाकृत ना सिर्फ उत्पादन अधिक होता है, बल्कि यह गेहूं सेहत के लिए भी अच्छा होता है. यह किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है और बाजारों में इसकी कीमत सामान्य गेहूं से दोगुनी है.
खाने में होता है स्वादिष्ट
काला गेहूं खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ कई गंभीर बीमारियों में लाभदायक भी होता है. काला गेहूं डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है. किसान काले गेहूं से अच्छी कमाई कर रहे हैं. बताया जाता है कि काले गेहूं में एंथ्रोसाइनीन प्रचुर मात्रा में होता है और यह एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक भी है. जो हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द और एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है. यह गेहूं रंग और स्वाद में सामान्य गेहूं से थोड़ा अलग होता है, लेकिन बेहद पौष्टिक होता है.
काला गेहूं इन बीमारियों में है कारगर
- हार्ट अटैक को रोकता है
- कैंसर से बचाता है
- डायबिटीज में है कारगर
- मानसिक तनाव को दूर करता है
- घुटनों का दर्द में देता है राहत
- एनीमिया में भी है कारगर
काला होता है इस गेहूं का दाना
इस गेहूं की बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती है, लेकिन पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है. सामान्य गेहूं की तुलना में एंथ्रोसाइनिन 140%, पीपीएम जिंक 35% और आयरन 60% की अधिकता के साथ एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन बी, फोलिक एसिड, मैग्निशियम, मैंगनीज, जिंक, कैलशियम, कॉपर, फाइबर और एमिनो एसिड भी काफी मात्रा में रहती है.
मनिहारी अनुमंडल में हो रही इसकी खेती
जिले के मनिहारी अनुमंडल स्थित नवाबगंज गांव के किसान और नवाबगंज पंचायत के किसान सलाहकार उर्मिलेश कुमार सिंह ने 2 एकड़ में काले गेहूं की खेती की शुरुआत की है. उन्होंने बताया कि कटिहार में काले गेहूं की खेती के लिए मौसम अनुकूल है. इस गेहूं में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. जिसके सेवन से कई बीमारियों से निजात मिल सकता है. उन्होंने बताया कि सामान्य गेहूं की तरह इस गेहूं में भी उतना ही पटवन और खाद की जरूरत पड़ती है.
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सेहत के लिए लाभदायक
उर्मिलेश सिंह की माने तो अपने खेतों में जैविक और रासायनिक दोनों खाद का प्रयोग कर रहे हैं. ताकि फसल बेहतर हो सके. काले गेहूं का बीज बिहार में अब धीरे-धीरे उपलब्ध होने लगा है और किसानों का रुझान इस ओर बढ़ रहा है. उन्होंने जिले के किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि अपने और अपने बच्चों का सेहत का ख्याल रखना चाहते हैं तो जैविक खेती को बढ़ावा दें.