कैमूर: कोरोना वायरस को लेकर किए गए लॉक डाउन की वजह से कई लोग बेरोजगार हो गए हैं. इससे सबसे अधिक प्रभावित दैनिक मजदूर हुए हैं. ऐसे में जब एक गरीब मजदूर बेरोजगार हो गया, तो उसकी पत्नी ने अपने दो नाबालिग बेटों की मदद से परिवार का गुजारा करने के लिए यूपी-बिहार कर्मनाशा बॉर्डर पर अंडा दुकान खोल दिया.
बॉर्डर पर दूसरे प्रदेश से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर बिहार लौट रहे हैं. लेकिन पेट के आगे मजबूर यह परिवार अपनी जान हथेली पर रखकर दुकान चलाने को मजबूर हैं.
संक्रमण बढ़ने का खतरा
इनके पास ना तो मास्क है और ना हैंड ग्ल्व्स है और ना ही सेनेटाइजर है. फिर भी जान जोखिम में डालकर ये लोग दुकान चलाने को मजबूर है. बता दें बिहार में तेजी से बढ़ते कोरोना के पीछे एक कारण दूसरे राज्यों से पहुंच रहे लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर भी हैं.
ऐसे में हजारों की संख्या में मजदूर एनएच 2 स्थित यूपी-बिहार कर्मनाशा बॉर्डर आते हैं. जहां से उन्हें उनके गृह जिला भेजा जाता है. जिसकी वजह से बॉर्डर पर कोरोना संक्रमण बढ़ने का सबसे अधिक खतरा भी है. लेकिन गरीबी और लाचारी से मजबूर दैनिक मजदूर आखिरकार करें भी तो क्या करें.
रोजाना 100-200 रुपये का लाभ
सरकारी मदद ऊंट के मुंह मे जीरा के समान है. ऐसे में गरीबी के कारण घर परिवार चलाने के लिए एक महिला ने अपने दो नाबालिग बच्चों के साथ अंडा दुकान खोल दिया है. महिला ने बताया कि पति दैनिक मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करते हैं. लेकिन लॉक डाउन में कोई काम नहीं मिल रहा है. इसलिए बॉर्डर पर बच्चों के साथ मिलकर अंडा दुकान चला रही हैं. ताकि परिवार का पालन पोषण किया जा सके. महिला ने बताया कि रोजाना 100-200 रुपये का लाभ कमा लेती है.
मां की मदद कर रहे बेटे
अपनी मां की मदद कर रहे बेटों ने बताया कि स्कूल बंद है. ऐसे में मां की हर संभव मदद करते हैं. ताकि उन्हें कोई परेशानी ना हो और उनका परिवार खुशी-खुशी दो वक्त की रोटी खा सके. हालांकि बॉर्डर पर कैसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपनी नौकरी जाने के बाद दुकान खोल ली है. कोई चाय तो कोई ठेला लगाकर रोजी रोटी कमा रहा है.
सीएम नीतीश कुमार ने तो प्रवासियों के लिए रोजगार की घोषणा की है. इसके साथ ही दावा किया है कि सभी को बिहार में रोजगार मिलेगा. लेकिन तब तक देखना यह होगा कि आखिरकार मजदूर और गरीब परिवार के लोग अपनाी रोजी-रोजगार कैसे चलाते हैं और सरकार उनकी कितनी मदद करती है.