कैमूर (भभुआ): बिहार के कैमूर में बाघ अभ्यारण के विरोध में कैमूर मुक्ति मोर्चा ने सोमवार को दूसरे दिन पद यात्रा निकाली. इसको लेकर भारी संख्या में ग्रामीण और भाकपा-माले के कार्यकर्ता जिला मुख्यालय भभुआ पहुंचे. यह पदयात्रा मुख्य मार्गों से होते हुए जिला मुख्यालय पहुंचकर सभा में परिवर्तित हो गई. पद यात्रा में हजारों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल थे. जो हाथों में बैनर और तख्ती लेकर अपनी मांगों के लिए नारेबाजी और प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने सरकार से बाघ अभ्यारण नहीं बनाने की मांग की और बात नहीं मानने पर बड़ा आन्दोलन करने की चेतावनी दी.
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प्रदर्शकारियों और प्रशासन के बीच नोकझोंक: पद यात्रा के जिला मुख्यालय पहुंचने पर पुलिस के जवानों ने प्रदर्शनकारियों को बिना अनुमति के सभा करने से रोक दिया. जिसको लेकर प्रदर्शकारियों और प्रशासन के बीच काफी देर तक नोक झोंक हुआ. वहीं, प्रदर्शनकारियों के तेवर को देखते हुए पुलिस पदाधिकारियों ने सभा की अनुमति दी. इसके बाद सभा को संबोधित करते हुए भाकपा माले के जिला सचिव अशोक बैठा ने कहा कि सरकार और वन विभाग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार आदिवासियों को उजाड़ना चाहती है.
आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है: अशोक बैठा ने कहा कि सरकार चाहती है कि आदिवासी अपने हक से वंचित रहे. वर्षो से रोहतास और कैमूर रह रहे आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है. बाघ अभ्यारण क्षेत्र के नाम पर आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है. जिससे वे पलायन कर जाएं. उन्होंने कहा कि वर्ष 2006 में भारत सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसमें आदिवासियों को रहने की बात कही गई थी. वन विभाग जंगली क्षेत्रो से आदिवासियों को हटा कर बाघ पालना चाहता है. जो होने नहीं दिया जाएगा.
बफर एरिया में रहने वाले लोगों को हटाने की तैयारी :वहीं, आदिवासी नेता राज लाल सिंह खरवार ने कहा कि वन अभ्यारण के तहत वन विभाग ने जंगल को दो भागों में बाट दिया है. जिसमें एक बफर एरिया और दूसरा कोर एरिया है. 1314 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैले इस जंगल को बाघ अभ्यारण क्षेत्र घोषित कर दिया गया है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बफर एरिया में रहने वाले लोगो को हटा कर उन्हें 10 -10 लाख रुपये का मुआवजा देकर दूसरी जगह विस्थापित कर दिया जाएगा और इन इलाकों में बाघ रहेंगे.
जान दे देंगे पर जंगल नहीं देंगे: वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोर एरिया के लोगों को नहीं हटाया जाएगा, लेकिन उनकी जैविक गतिविधि पर प्रतिबंध रहेगा. उन्होंने कहा कि वे आदिवासी अपनी पंरपरा के हिसाब से जीवन जीना चाहते हैं. वे अपने जंगल को बचाना चाहते हैं ताकि शुद्ध रूप से पर्यावरण संतुलित रह सके. अगर फिर भी उनकी लोगों की बात को सरकार नहीं मानती तो वे जान दे देंगे पर जंगल और जंगल की जमीन नहीं देंगे.
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