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नक्सलियों के गढ़ में स्वीटी का कमालः छोटी सी उम्र में कर रही PM के सपनों को साकार

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Published : Mar 7, 2019, 9:24 PM IST

स्वीटी खेल के क्षेत्र में भी जिले से लेकर राज्य तक का नाम रोशन कर रही है. समाज सेवा के हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है, लिहाजा ये जिले की महिलाओं के लिए एक अलग पहचान और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई है.

राज्य तक का नाम रोशन करने वाली स्वीटी

जमुईः कहते हैं कि खुली आंखों से जो सपना देखा जाता है. वह सपना साकार होता है. और ऐसा ही एक सपना साकार कर दिखाया है गांव की एक छोटी सी गरीब बच्ची स्वीटी ने. जो ना सिर्फ समाजसेवा में अपना योगदान दे रही है. बल्कि खेल की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बना रही है.

स्वीटी का घर

स्वास्थ्य मिशन में योगदान
दरअसल, जमुई के सिकंदरा ब्लॉक स्थित अति नक्सल प्रभावित फुलवरिया कोरासी गांव की मुशहरु कोड़ा की 18 वर्षीय बेटी स्वीटी स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने में लगी हुई है. पिछले कई वर्षों से स्वीटी इलाके के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है. स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कार्य, टीकाकरण अभियान, स्वच्छ भारत मिशन से लेकर सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य मिशन में अपना योगदान दे रही है.

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
साथ ही स्वीटी खेल के क्षेत्र में भी जिले से लेकर राज्य तक का नाम रोशन कर रही है. समाज सेवा के हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है, लिहाजा ये जिले की महिलाओं के लिए एक अलग पहचान और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई है. उसके माता-पिता अपनी बेटी पर फक्र महसूस करते हैं. गुरबत की जिंदगी जी रही स्वीटी का कहना है कि उन्हें समाज सेवा की प्रेरणा गांव में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और ग्रामीणों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी से मिली. यहीं से उसके मन में समाज सेवा का भाव जागृत हुआ.

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गरीबों की सेवा में जुटी
स्वीटी का कहना है कि यहां के लोगों को सर्दी हो या बुखार किसी भी सूरत में 6 किलोमीटर दूर सिकंदरा जाना पड़ता था. जिसके बाद स्वीटी ने प्रण लिया कि लोगों की सेवा किया जाए और आज भी वह अपने इलाके के गरीब लोगों की सेवा में जुटी है. इतना ही नहीं स्वीटी फुटबॉल में भी परचम लहरा रही है. नक्सल प्रभावित इलाके की रहने वाली ये बच्ची अब तक बिहार झारखंड के अलावा नेपाल में भी फुटबॉल खेल चुकी है. अपने परिवार के साथ-साथ जिले का नाम भी रोशन कर रही है.

स्वीटी की पहचान
स्वीटी की पहचान ग्रामीण डॉक्टर के रूप में हो गई है. हालांकि गुरबत की जिंदगी जी रही स्वीटी के परिवार को अभी तक जिला प्रशासन या फिर सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है. मालूम हो कि यह वही गांव है जहां 17 फरवरी 2010 को सैकड़ों की संख्या में आए नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया था और तकरीबन 12 लोगों को मौत के घाट घाट उतार दिया था. कई घरों में आग तक लगा दी थी. आज उसी गांव की एक गरीब की बेटी महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही है.

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जमुईः कहते हैं कि खुली आंखों से जो सपना देखा जाता है. वह सपना साकार होता है. और ऐसा ही एक सपना साकार कर दिखाया है गांव की एक छोटी सी गरीब बच्ची स्वीटी ने. जो ना सिर्फ समाजसेवा में अपना योगदान दे रही है. बल्कि खेल की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बना रही है.

स्वीटी का घर

स्वास्थ्य मिशन में योगदान
दरअसल, जमुई के सिकंदरा ब्लॉक स्थित अति नक्सल प्रभावित फुलवरिया कोरासी गांव की मुशहरु कोड़ा की 18 वर्षीय बेटी स्वीटी स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने में लगी हुई है. पिछले कई वर्षों से स्वीटी इलाके के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है. स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कार्य, टीकाकरण अभियान, स्वच्छ भारत मिशन से लेकर सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य मिशन में अपना योगदान दे रही है.

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
साथ ही स्वीटी खेल के क्षेत्र में भी जिले से लेकर राज्य तक का नाम रोशन कर रही है. समाज सेवा के हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है, लिहाजा ये जिले की महिलाओं के लिए एक अलग पहचान और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई है. उसके माता-पिता अपनी बेटी पर फक्र महसूस करते हैं. गुरबत की जिंदगी जी रही स्वीटी का कहना है कि उन्हें समाज सेवा की प्रेरणा गांव में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और ग्रामीणों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी से मिली. यहीं से उसके मन में समाज सेवा का भाव जागृत हुआ.

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गरीबों की सेवा में जुटी
स्वीटी का कहना है कि यहां के लोगों को सर्दी हो या बुखार किसी भी सूरत में 6 किलोमीटर दूर सिकंदरा जाना पड़ता था. जिसके बाद स्वीटी ने प्रण लिया कि लोगों की सेवा किया जाए और आज भी वह अपने इलाके के गरीब लोगों की सेवा में जुटी है. इतना ही नहीं स्वीटी फुटबॉल में भी परचम लहरा रही है. नक्सल प्रभावित इलाके की रहने वाली ये बच्ची अब तक बिहार झारखंड के अलावा नेपाल में भी फुटबॉल खेल चुकी है. अपने परिवार के साथ-साथ जिले का नाम भी रोशन कर रही है.

स्वीटी की पहचान
स्वीटी की पहचान ग्रामीण डॉक्टर के रूप में हो गई है. हालांकि गुरबत की जिंदगी जी रही स्वीटी के परिवार को अभी तक जिला प्रशासन या फिर सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है. मालूम हो कि यह वही गांव है जहां 17 फरवरी 2010 को सैकड़ों की संख्या में आए नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया था और तकरीबन 12 लोगों को मौत के घाट घाट उतार दिया था. कई घरों में आग तक लगा दी थी. आज उसी गांव की एक गरीब की बेटी महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही है.

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Intro:स्वीटी लोगों को दे रही है स्वास्थ्य सेवाएं

जमुई जिले के सिकंदरा ब्लॉक स्थित फुलवरिया कोरासी गांव का अतीत का ऑफिस से आ रहा है गांव में 17 फरवरी 2010 को सैकड़ों की संख्या में आए नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया था नक्सलियों ने करीब 12 लोगों की मौत को मौत के घाट उतार दिए थे लेकिन कहते हैं ना कि अगर हौसले में दम और चट्टान इरादे हो तो कोई भी काम मुमकिन हो जाता है और यह कर दिखाया है गांव की एक छोटी सी बच्ची स्वीटी जिसने ना सिर्फ छोटी सी उम्र में समाज सेवा में जुट गई है बल्कि खेल के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई है


Body:नक्सलियों के घर में छोटी सी बच्ची स्वीटी का कमाल

vo- कहते हैं खुली आंखों से जो सपना देखता है वह सपना साकार होता है और यह सपना साकार कर दिखाया है गांव की एक छोटी सी गरीब बच्ची स्वीटी जिसने ना सिर्फ समाज सेवा में अपना योगदान दे रही है बल्कि खेल की दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बना रही है। दरअसल अति नक्सल प्रभावित फुलवरिया को राशि गांव की मुशहरु कोड़ा की 18 वर्षीय बेटी स्विटी जन जन तक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने में लगी हुई है ।पिछले कई वर्षों से स्वीटी इलाके के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है ,स्वास्थ्य सेवा से जुड़े टीकाकरण अभियान, स्वच्छ भारत मिशन से लेकर तमाम सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य मिशन में अपना योगदान दे रही है। साथ ही खेल के क्षेत्र में भी जिले से लेकर राज्य तक का नाम रोशन कर रही है आलम यह है कि को आसपास के लोगों के नाम से जानते हैं या फिर समाज सेवा का काम हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है लिहाजा जिले के महिलाओं के लिए एक अलग पहचान बन गई है और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई है उनके माता-पिता फक्र महसूस करते हैं ।
byte-स्विटी की माँ
vo- गुरबत की जिंदगी जी रही स्वीटी का कहना है कि उन्हें समाज सेवा की प्रेरणा गांव में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और ग्रामीणों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी को लेकर उनके मन में समाज सेवा की भाव जागृत हुई स्वीटी का कहना है कि यहां के लोगों को सर्दी हो या बुखार किसी भी सूरत में 6 किलोमीटर दूर सिकंदर जाना पड़ता था। जिसके बाद स्वीटी ने प्रण लिया कि लोगों की सेवा किया जाए और आज भी थी अपने इलाके की निस्सहाय गरीब लोगों की सेवा की आकृति है इतना ही नहीं हुई थी फुटबॉल में भी परचम लहरा रही है नक्सल प्रभावित इलाके की रहने वाली थी अब तक बिहार झारखंड के अलावा नेपाल में भी फुटबॉल खेल चुके हैं और अपने परिवार के साथ साथ जिले का नाम रोशन कर रही हैं
byte स्विटी,समाज सेवी




Conclusion:संघर्ष ने स्वीटी को दिलाया एक अलग पहचान

श्रुति को ग्रामीणों का संघर्ष और गांव में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था में समाज सेवा की ओर प्रेरित किया और आज स्वीटी की पहचान ग्रामीण डॉक्टर के रूप में इलाके में हो गई है हालांकि गुरबत की जिंदगी जी रहे स्वीटी के परिवार को अभी तक जिला प्रशासन या फिर सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्वीटी के इस जज्बे ईटीवी भारत सलाम करता है ई टीवी भारत के लिए जमुई से ब्रजेंद्र नाथ झा
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