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ग्राउंड रिपोर्ट: बाढ़ से सहमे दियरावासी अपने ही हाथों तोड़ रहे आशियाना - गोपालगंज में बाढ़ से जुड़ी खबर

गोपालगंज में बाढ़ से सहमें स्थानीय खुद ही अपना आशियाना तोड़ने को मजबूर हैं. बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बजाय लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं.

गोपालगंज
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Published : Jun 23, 2021, 6:31 PM IST

Updated : Jun 23, 2021, 7:07 PM IST

गोपालगंज: जिले में हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ (Bihar Flood ) ने कहर मचाया है. उत्तर बिहार की लाखों की आबादी सालों से बाढ़ का कहर झेल रही है. इसी कड़ी में जगीरी टोला गांव में बाढ़ से भयभीत लोग अपने ही आशियाने को तोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि बाढ़ एक बार फिर दस्तक देगी और हमारा मकान टूटेगा. लेकिन मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी इससे अच्छा है, कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें. जिससे कि इनमें से निकली सामग्री काम आ जाएगी. हालांकि, सरकार की ओर से राहत एवं बचाव कार्य के निर्देश दिए गए हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में हर साल क्यों तबाही मचाता है बाढ़, जानें वजह और उपाय

बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर
बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक पिछले दिनों वाल्मीकि नगर बराज से छोड़े गए 4 लाख 12 हजार क्यूसेक पानी और लगातार हुई भारी बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर थी. जिसकी वजह से जिले के 6 पंचायत के 21 गांव बाढ़ की चपेट में आये थे. कई घर बाढ़ के पानी में समा गए. हालांकि, नदी के जलस्तर में हुई कमी के कारण लोगों के घरों में लगे पानी निकल गए है. लेकिन दियरा इलाके के लोगों को अभी भी बाढ़ के खतरा बना हुआ है. जिसके कारण इन बाढ़ पीड़ित जिस मकान को अपने हाथों से संवारा उसी हाथों से अब तोड़ कर पलायन कर रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बाढ़ की त्रासदी से परेशान
वहीं, बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बाजाये लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं. अपना आशियाना उजाड़ते समय उन्हे परेशानी हो रही है, लेकिन उनके सामने अब दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. बाढ़ में होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च होता है. जिससे ग्रामीणों को बाढ़ और उसकी कटान से बचाया जा सके. लेकिन हर साल सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है. इस साल भी सरकार ने बाढ़ और नदी से होने वाली कटाव के समाधान के लिए करोड़ों का बजट दिया है.

खुद ही तोड़ रहे आशियाना
बाढ़ ग्रस्त गांवों के ग्रामीणों ने घर को नदी में समा जाने के डर से अपना आशियाना खुद ही तोड़ना शुरू कर दिया है. जिससे उसमें लगी ईंट का उपयोग बाद में किया जा सके. जगीरी टोला गांव निवासी बाढ़ पीड़ित महिमुद्दीन अंसारी ने बताया कि कौन चाहता है कि अपना बना बनाया मकान तोड़ कर पलायन करें, लेकिन मजबूरी में अपना ही घर तोड़ना पड़ रहा है. सरकार बाढ़ के रोकथाम के लिए कोई स्थाई निदान नहीं निकाल रही है और ना ही निकालेगी. इसलिए हम लोग यहां मरेंगे तो नहीं बल्कि अपना मकान तोड़कर हम पलायन कर रहे हैं.

Gopalganj
आशियाना तोड़ते बाढ़ पीड़ित

बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित
बता दें कि बिहार में हर साल बाढ़ (Flood in Bihar) से भारी तबाही होती है. जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. कई लोगों के घर बाढ़ में बह जाते हैं तो कई को जान से हाथ धोना पड़ता है. वहीं बाढ़ से बचाव के लिए जो तमाम उपाय केंद्र और बिहार सरकार ( Bihar Government ) की ओर से किए गए हैं, लेकिन मर्ज बढ़ता गया. अब स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में बाढ़ प्रभावित इलाके भले ही कम हो लेकिन बाढ़ से होने वाली तबाही सबसे ज्यादा है.

ईटीवी भारत GFX.
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ये भी पढ़ें- ऐसा ही है बिहार! बाढ़ के पानी से घिरा घर, अंदर गूंज रहे शादी के गीत,देखें वीडियो

हर साल क्यों आती है बाढ़?
बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है, इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.

ईटीवी भारत GFX.
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ये भी पढ़ें: डराने लगी नदियां: गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि, गंगा पथ-वे पर भी चढ़ा पानी

मिथिलांचल-सीमांचल सबसे ज्यादा प्रभावित
विशेष रूप से अगर कोसी नदी की बात करें तो लंबे समय से कोसी अपना रास्ता बदल रही है. अब तक कम से कम 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. जिसकी वजह से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल कोसी का कहर झेलने को मजबूर होता है. हर साल हजारों लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं और उनके पास सरकारी मदद मिलने तक कोई और उपाय नहीं होता.

कैसे रुक सकती है बर्बादी
बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बर्बादी को रोका जा सकता है. एक और रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी जा सकती है. अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया सके, लेकिन यह तभी संभव है जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए. विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है. यही वजह है कि बांध बिहार में बर्बादी का एक बड़ा सबब है.

गोपालगंज: जिले में हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ (Bihar Flood ) ने कहर मचाया है. उत्तर बिहार की लाखों की आबादी सालों से बाढ़ का कहर झेल रही है. इसी कड़ी में जगीरी टोला गांव में बाढ़ से भयभीत लोग अपने ही आशियाने को तोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि बाढ़ एक बार फिर दस्तक देगी और हमारा मकान टूटेगा. लेकिन मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी इससे अच्छा है, कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें. जिससे कि इनमें से निकली सामग्री काम आ जाएगी. हालांकि, सरकार की ओर से राहत एवं बचाव कार्य के निर्देश दिए गए हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में हर साल क्यों तबाही मचाता है बाढ़, जानें वजह और उपाय

बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर
बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक पिछले दिनों वाल्मीकि नगर बराज से छोड़े गए 4 लाख 12 हजार क्यूसेक पानी और लगातार हुई भारी बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर थी. जिसकी वजह से जिले के 6 पंचायत के 21 गांव बाढ़ की चपेट में आये थे. कई घर बाढ़ के पानी में समा गए. हालांकि, नदी के जलस्तर में हुई कमी के कारण लोगों के घरों में लगे पानी निकल गए है. लेकिन दियरा इलाके के लोगों को अभी भी बाढ़ के खतरा बना हुआ है. जिसके कारण इन बाढ़ पीड़ित जिस मकान को अपने हाथों से संवारा उसी हाथों से अब तोड़ कर पलायन कर रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बाढ़ की त्रासदी से परेशान
वहीं, बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बाजाये लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं. अपना आशियाना उजाड़ते समय उन्हे परेशानी हो रही है, लेकिन उनके सामने अब दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. बाढ़ में होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च होता है. जिससे ग्रामीणों को बाढ़ और उसकी कटान से बचाया जा सके. लेकिन हर साल सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है. इस साल भी सरकार ने बाढ़ और नदी से होने वाली कटाव के समाधान के लिए करोड़ों का बजट दिया है.

खुद ही तोड़ रहे आशियाना
बाढ़ ग्रस्त गांवों के ग्रामीणों ने घर को नदी में समा जाने के डर से अपना आशियाना खुद ही तोड़ना शुरू कर दिया है. जिससे उसमें लगी ईंट का उपयोग बाद में किया जा सके. जगीरी टोला गांव निवासी बाढ़ पीड़ित महिमुद्दीन अंसारी ने बताया कि कौन चाहता है कि अपना बना बनाया मकान तोड़ कर पलायन करें, लेकिन मजबूरी में अपना ही घर तोड़ना पड़ रहा है. सरकार बाढ़ के रोकथाम के लिए कोई स्थाई निदान नहीं निकाल रही है और ना ही निकालेगी. इसलिए हम लोग यहां मरेंगे तो नहीं बल्कि अपना मकान तोड़कर हम पलायन कर रहे हैं.

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आशियाना तोड़ते बाढ़ पीड़ित

बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित
बता दें कि बिहार में हर साल बाढ़ (Flood in Bihar) से भारी तबाही होती है. जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. कई लोगों के घर बाढ़ में बह जाते हैं तो कई को जान से हाथ धोना पड़ता है. वहीं बाढ़ से बचाव के लिए जो तमाम उपाय केंद्र और बिहार सरकार ( Bihar Government ) की ओर से किए गए हैं, लेकिन मर्ज बढ़ता गया. अब स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में बाढ़ प्रभावित इलाके भले ही कम हो लेकिन बाढ़ से होने वाली तबाही सबसे ज्यादा है.

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हर साल क्यों आती है बाढ़?
बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है, इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.

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मिथिलांचल-सीमांचल सबसे ज्यादा प्रभावित
विशेष रूप से अगर कोसी नदी की बात करें तो लंबे समय से कोसी अपना रास्ता बदल रही है. अब तक कम से कम 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. जिसकी वजह से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल कोसी का कहर झेलने को मजबूर होता है. हर साल हजारों लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं और उनके पास सरकारी मदद मिलने तक कोई और उपाय नहीं होता.

कैसे रुक सकती है बर्बादी
बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बर्बादी को रोका जा सकता है. एक और रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी जा सकती है. अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया सके, लेकिन यह तभी संभव है जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए. विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है. यही वजह है कि बांध बिहार में बर्बादी का एक बड़ा सबब है.

Last Updated : Jun 23, 2021, 7:07 PM IST
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