भुवनेश्वर: 16 साल की उम्र में प्रिया अपने माता-पिता की 'भविष्य को सुरक्षित करने' की इच्छा की वेदी पर थी. वे उसकी शादी करना चाहते थे. घर की रंगाई-पुताई हो चुकी थी, सजावट लगभग पूरी हो चुकी थी, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच दावत भी शुरू हो चुकी थी. रिश्तेदार उसे शादी के मंडप में देखने के लिए इंतजार कर रहे थे. अपनी उम्र में शादी करने के खिलाफ, उसने अपने माता-पिता को मनाने की कोशिश की, लेकिन वह उन्हें मानने में सफल नहीं हुई. वह अपने सपनों और आकांक्षाओं को छोड़ने वालों में से नहीं थी.
प्रिया शादी से कुछ घंटे पहले घर से फरार हो गई और अपनी शादी को रोकने के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन (एनजीओ) के दफ्तर पहुंच गई. एनजीओ ने हस्तक्षेप किया और उसकी शादी को रुकवा दिया. आज, प्रिया को समाज में बदलाव की अग्रदूत माना जाता है. फिलहाल वह अपनी शिक्षा जारी रखने के साथ साजी बाल विवाह जागरुकता (Saji Child Marriage Awareness) की ब्रांड एंबेसडर और ओडिशा भर की लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में भी काम कर रही है. वह बाल विवाह के बारे में लोगों को जागरूक कर रही हैं.
ओडिशा सहित भारत के कई हिस्सों में आज भी बाल विवाह होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में 23 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की कानूनी उम्र तक पहुंचने से पहले ही कर दी जाती है. हालांकि, ओडिशा में जागरुकता बढ़ी है, फिर भी राज्य में बाल विवाह दर की 20 प्रतिशत है. रायगड़ा (39 प्रतिशत) और नयागढ़ (36 प्रतिशत) जैसे जिलों में बाल विवाह के मामले चिंताजनक हैं. गरीबी, शिक्षा की कमी और वित्तीय बोझ या सामाजिक दबाव इस कुरीति को बढ़ावा देते हैं, जिससे बच्चे - खास तौर पर लड़कियां - अपना बचपन, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने के अवसर खो देते हैं.
प्रिया की कहानी लोगों के लिए रोल मॉडल
प्रिया की कहानी उन कई लड़कियों में से एक है, जिन पर 'बोझ' से छुटकारा पाने के लिए माता-पिता अपने फैसले थोप देते हैं. प्रिया के परिवार ने उसकी शादी एक डिलीवरी कंपनी के मैनेजर से तय कर दी थी, यह मानते हुए कि यह उसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है जो उसके भविष्य को सुरक्षित कर सकता है. लेकिन प्रिया अपनी शिक्षा पूरी करना चाहती थी और आत्मनिर्भर बनना चाहती थी. इसलिए उसने शादी से इनकार कर दिया. लेकिन माता-पिता ने उसके विरोध को नजरअंदाज कर दिया. इसके बाद प्रिया ने एक स्थानीय महिला अधिकार संगठन से संपर्क किया और उनकी मदद मांगी. एनजीओ के कार्यकर्ताओं और स्थानीय अधिकारियों के हस्तक्षेप से, समारोह से ठीक एक दिन पहले उसकी शादी रद्द कर दी गई.
प्रिया कहती हैं, "जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे लगता है कि मैं अपने सपनों को खोने के कितने करीब पहुंच गई थी. लेकिन अपने लिए खड़े होने से मुझे दूसरों के लिए लड़ने की ताकत मिली है. किसी भी लड़की को इस तरह अपने भविष्य को बर्बाद नहीं देना चाहिए."
इस संबंध में ओडिशा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (ओएससीपीसीआर) की प्रमुख मंदाकिनी कर (Mandakini Kar) ने कहा, "इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बाल विवाह नहीं हो रहे हैं. चूंकि स्कूल छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए बाल विवाह की दर भी उसी अनुपात में बढ़ रही है. हमने 2030 तक पूरे देश को बाल विवाह से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है."
हालांकि, उनका कहना है कि ओडिशा में स्थिति काफी बेहतर है. वह बताती हैं, "आजकल लोग जागरूक हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं. पहले उन्हें कानून के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए अब वे सावधानी बरत रहे हैं."
मंदाकिनी आगे कहती हैं कि गरीबी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से माता-पिता अपनी बेटियों की शादी कम उम्र में ही कर देते हैं.
बाल विवाह के खिलाफ अलका साहू की याचिका
2017 में गंजम जिले में एक नाबालिग लड़की की शादी की घटना से स्तब्ध, ओडिशा की एक सामाजिक कार्यकर्ता अलका साहू ने बाल विवाह से निपटने के लिए सख्त उपायों की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. उनके इस प्रयास के कारण सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश बनाए, जिसमें बाल विवाह को रोकने के लिए सरपंचों से लेकर जिला मजिस्ट्रेट तक हर स्तर पर जवाबदेही अनिवार्य की गई. दिशा-निर्देशों में एक व्यवस्थित दृष्टिकोण पेश किया गया, जिसमें हर जिले में बाल विवाह निषेध अधिकारी (सीएमपीओ) की नियुक्ति, जिला एसपी के तहत विशेष किशोर पुलिस इकाइयां और स्कूलों और गांवों को लक्षित करके जागरुकता अभियान शामिल हैं.
अलका ने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है. अलका कहती हैं, "बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई न केवल कानूनी है, बल्कि सामाजिक भी है. यह मानसिकता बदलने और ऐसा माहौल बनाने के बारे में है, जहां हर बच्चा बिना किसी डर के सपने देख सके."
मंदाकिनी कर ने कहा कि महिला और बाल मामलों के मंत्रालय और गृह मंत्रालय को हर तीन महीने में एक बार राज्य में बाल विवाह की स्थिति का विवरण मिलेगा. कर ने कहा, "डेटा को वेबसाइट पर अपडेट किया जाएगा. जिला कलेक्टर और एसपी इस संबंध में जवाबदेह अधिकारी होंगे. बाल विवाह को रोकने के लिए एसपी की देखरेख में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना की जाएगी. इसके साथ ही, राज्य में एक बाल विवाह प्रावधान इकाई होगी जिसमें राज्य के सीएमपीओ, जिला स्तर पर दो महिलाओं सहित पांच सामाजिक कार्यकर्ता होंगे, जो बाल विवाह से संबंधित शिकायतों की निगरानी और जांच करेंगे."
सरकारी पहल और उपलब्धियां
पिछले तीन वर्षों में, देश भर में 1.7 लाख बाल विवाह रोके गए हैं और 50,000 से अधिक गांवों को बाल विवाह-मुक्त घोषित किया गया है. ओडिशा सरकार ने 2030 तक राज्य को बाल विवाह-मुक्त बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसके लिए सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है. सरकारी निगरानी के साथ-साथ कम उम्र में शादी से इनकार करने वाली लड़कियों को छात्रवृत्ति और वजीफा प्रदान करने के लिए बजट आवंटित किया जाता है, जिससे उन्हें अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए सशक्त बनाया जाता है. कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों और सरकार के सम्मिलित प्रयासों की बदौलत इस दिशा में प्रगति मिल रही है.
हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद चुनौतियां बनी हुई हैं. गरीबी और शिक्षा की कमी बड़ी बाधाएं हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में. सांस्कृतिक प्रथाएं और परंपराएं भी अपनी भूमिका निभाती हैं. हालांकि, जागरुकता कार्यक्रम कई जगहों पर बदलाव ला रहे हैं.
आशा की किरण
बाल कल्याण समिति (CWC) के सदस्य बेनुधर साहू निरंतर प्रयासों के महत्व पर जोर देते हैं. उन्होंने कहा, "बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं. लेकिन हर गांव को बाल विवाह-मुक्त घोषित करने के साथ, हम अपने बच्चों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने के एक कदम और करीब हैं."
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