गोपालगंज: गोपालगंज हमेशा से धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताओं में शामिल रहा है. यहां ऐसे कई ऐतिहासिक स्थल हैं जहां लोगों की आस्था जुडी है. गोपालगंज के हथुआ के गोपाल मंदिर पिछले 165 सालों से अस्था का केंद्र बना हुआ है. यह प्राचीन मंदिर हथुआ राज के गौरवशाली अतीत को समेटे हुए है.
यह मंदिर परिसर मव अद्भुत नाकाशी और आर्किटेक्चर का बोध कराता है. यहां आने वाले पर्यटक और श्रद्धालुओं को यहां की खूबसूरती खूब लुभाती है. बता दें कि गोपालगंज जिले का नामकरण गोपाल मंदिर के नाम पर ही हुआ था. इस मंदिर की नींव हथुआ राज के महाराजा राजेंद्र प्रताप शाही की पत्नी महारानी श्यामसुंदर कुंवर ने साल1850 में रखी थी.
इतने में फैली मंदिर
कुल 13 बीघा, 3 कट्ठा और14 धूर में फैले इस मंदिर को बनाने में 10 साल लगे थे. लंबे समय के बाद 15 अप्रैल 1866 को इस मंदिर में श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति स्थापित की गई थी. मंदिर को बनाने में कुल 4 लाख 50 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए थे. वर्तमान समय में आंकलन करें तो कुल लागत करीब 54 करोड़ आएगी.
महारानी ने किया मंदिर ने किया
परिसर में मंदिर के अलावा तीन कोठी, विशाल चबूतरा और तालाब के अलावा मुख्य द्वार है. मुख्य द्वार के छत पर कभी शहनाई बजती थी. इस मंदिर का निर्माण महारानी की ओर से स्त्री धन से किया था. महारानी मंदिर के बगल में स्थित कोठी में रहती थी. वह 1878 में महारानी के निधन के बाद हथुआ राज ने इस मंदिर को टेकओवर किया था.
बेल्जियम से मंगाए थे शीशे
मंदिर के ऊपर छोटे-छोटे 108 गुंबजों में लगे सोने के कलश गुंबज की चोरी साल1984 में हो गई थी. मंदिर के परिसर में तालाब में गंगा यमुना-सरयू सहित विभिन्न नदियों के जल को डालकर भरा गया था. गोपाल मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति का निर्माण हुआ था, वह मंदिर के दरवाजे और खिड़कियों के शीशे को बेल्जियम से मंगाया गया था. इन शीशे पर इचिंग विधि की ओर से काफी खूबसूरती से कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है, जो अभी भी जीवंत लगते हैं.