गोपालगंज : कोरोना महामारी संकट के मद्देनजर सभी सरकारी और गैस सरकारी शिक्षण संस्थानों को बंद किया गया है. जिस कारण कई प्राईवेट स्कूल बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई उपलब्ध करा रहे हैं. वहीं इसके उलट सरकारी स्कूल के बच्चे इन सभी सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित हैं.
दरअसल, कोरोना संक्रमण के संभावित खतरे को देखते हुए देश में स्कूल-कॉलेज बंद हैं. बिहार में सरकारी स्तर पर बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देने की पहल की गई है. इसके बाद निजी विद्यालयों में भी इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया. वहीं सरकारी विद्यालयों में टेलीविजन और मोबाइल के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है. हालांकि, अति पिछड़े कस्बों के निर्धन परिवारों में टीवी और मोबाइल की सुविधा नहीं होने के कारण अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र ऑनलाइन शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. वहीं प्राइवेट विद्यालय के छात्रों को खराब मोबाइल नेटवर्क की वजह से पढ़ाई बाधित हो रही है.
विद्यालय खुलने के सवाल पर पशोपेश में सरकार
शिक्षा विभाग और सरकारी विद्यालयों द्वारा कोरोना काल में घर बैठे शिक्षा देने की पहल का कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है. इसलिए टीवी और मोबाइल विहिन निर्धन परिवार के बच्चे स्कूल खुलने के इंतजार में हैं. वहीं कोरोना संकट काल में विद्यालय खुलने की सवाल पर सरकार पशोपेश की स्थिति में है. शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से जिले के कुल 175 विद्यालय संचालित होते हैं. इनमें से 61 विद्यालयों में 11वीं और 12वीं की शिक्षा छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराई जाती है. इसके अलावा पूरे जिले में 1779 प्रारंभिक विद्यालय भी संचालित हो रहे हैं. वहीं कक्षा 9वीं से 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र-छात्राओं की अनुमानित संख्या करीब एक लाख 70 हजार है.
अधर में छात्रों का भविष्य
प्रारंभिक विद्यालयों में करीब साढ़े तीन लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. अप्रैल माह से कक्षा एक से लेकर 12वीं तक के लिए नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है. वहीं कोरोना काल में तमाम विद्यालय बंद पड़े हैं. अप्रैल माह की शुरुआत के बाद निजी विद्यालयों ने ऑनलाइन शिक्षा प्रारंभ कर दिया है. जबकि बंद सरकारी विद्यालयों में बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ने की व्यवस्था अब तक पूरी तरह से असफल साबित हुई है. ऐसे में सरकारी विद्यालयों में आयोजित स्मार्ट क्लास असफल होने से इन छात्रों का भविष्य अधर में है.
निर्धन परिवार के बच्चों की समस्या
कोरोना संकट काल में स्मार्ट क्लास की व्यवस्था लागू करने के पीछे सरकार की मंशा बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की थी. इसका उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से बच्चों को शिक्षा की ओर जोड़ना भी था. गौरतलब है कि माध्यमिक स्कूलों के 70 फीसद बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंध रखते हैं. जिनके पास टीवी, लैपटाप या स्मार्ट फोन जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं होती है. कुछ के पास स्मार्ट फोन होने के बावजूद डाटा पैक भरवाने की समस्या भी है.
सरकारी-निजी विद्यालय का हाल बेहाल
ऑनलाइन शिक्षा में डाटा खर्च अधिक होता है, इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई में इनके समक्ष व्यवहारिक कठिनाईयों की बात भी सामने आ रही है. दूसरी ओर निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले समर्थ परिवारों के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा मिल तो रहा है. वहीं यहां भी समस्या कम नहीं है. ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चे नेटवर्क और अन्य तकनीकी समस्याओं के कारण पूरी तरह ज्ञान अर्जित कर पाने में अक्षम है. यहां भी सिर्फ कोरम ही पूरा किया जा रहा है.
जिले में सरकारी स्कूलों का आंकड़ा | |
कुल 12वीं विद्यालयों की संख्या | 61 |
कुल हाईस्कूल की संख्या | 114 |
प्रारंभिक विद्यालयों की संख्या | 1779 |
12वीं में छात्र-छात्राओं कि संख्या | 70,000 |
हाईस्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या | 1,05,000 |
प्रारंभिक विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की संख्या | 3,50,000 |