गोपालगंज: जिला मुख्यालय स्थित शिक्षा विभाग के परिसर में वर्षों पहले स्थापित केंद्रीय पुस्तकालय प्रशासनिक उपेक्षा की भेंट चढ़ गया है. इसके निर्माण के समय से ही इस पुस्तकालय में कर्मियों और संसाधन की कमी है. इस पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1965 में हुई थी. बिहार सरकार ने पुस्तकालय कक्ष का निर्माण कराया था. जिस पर लाखों रुपये खर्च किए गए थे. लेकिन इसके बावजूद जिले का केंद्रीय पुस्तकालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.
बिहार का दूसरा सबसे पुराना पुस्तकालय है
सामाजिक कार्यकर्ता और पुस्तकालय के सदस्य विमल कुमार ने बताया कि इस पुस्तकालय को फिर से सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कई अधिकारियों, पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर इसके संचालन के लिए गुहार लगाई गई. लेकिन आज तक किसी ने भी इस ओर ध्यान देने की कोशिश नहीं की.
उन्होंने बताया कि ये बिहार का दूसरा सबसे पुराना पुस्तकालय है, जहां 30 हजार पुस्तकें मौजूद हैं. इसके बावजूद छात्रों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. उन्होंने प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासनिक उपेक्षा और निरंकुशता के कारण ये केंद्रीय पुस्तकालय चालू नहीं हो सका है.
बाहर से खरीदनी पड़ती है पुस्तकें
एक छात्र ने कहा कि ये सौभाग्य की बात है कि हमारे जिले में केंद्रीय पुस्तकालय है. जिसमें 30 हजार पुस्तकें हैं. इसके बावजूद हम लोगों को बाहर से पुस्तक खरीद कर पढ़ना पड़ता है. कई ऐसी महंगी किताबे हैं, जिन्हें हम लोग खरीदने में सक्षम नहीं हैं. अमन कुमार ने कहा कि अगर पुस्तकालय सुचारू रूप से चलती तो हम लोगों को पढ़ाई करने में सहुलियत होती. बता दें कि साल 1990 के बाद राज्य सरकार ने पुस्तकालय के विकास के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया है.
अधूरे भवन का कराया निर्माण
वर्ष 1993-94 में आंशिक रूप में पुस्तकों की खरीदारी के लिए 39 हजार रुपये आवंटित किए गए. इसी क्रम में पुस्तकालय के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन और राजा राम मोहन राय द्वारा समय-समय पर पुस्तकें दान के रूप में दी जाने लगी. इसके साथ ही शहर के कुछ प्रबुद्ध लोगों की ओर से पुस्तकें और समाचार पत्र दान के रूप में दी जाती रही. साल 1990 में तत्कालीन जिलाधिकारी आर डी शर्मा ने पुस्तकालय के अधूरे भवन का निर्माण कार्य कराया. उनके प्रयास से ही सांसद और विधायक मद से पुस्तकों को खरीदने के लिए रैक पाठकों के बैठने के लिए फर्नीचर बनाया गया.
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2005 में हुई थी पुस्तकालय अधिनियम की घोषणा
साल 2005 में राज्य सरकार ने पुस्तकालय अधिनियम की घोषणा की थी. लेकिन यह आंशिक रूप में लागू नहीं हो सका. इसके बाद साल 2012 में जिला शिक्षा पदाधिकारी की अध्यक्षता में नई पुस्तकालय समिति का निर्वाचन हुआ. इसमें पदाधिकारियों के अलावा 10 पाठकों को निर्वाचित किया गया. वर्ष 2013 में प्रबंध समिति की बैठक हुई. इसमें पुस्तकालय के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. पुस्तकालय की चारदीवारी और टूटे हुए भवन की मरम्मत कराने आदि निर्णय लिए गए थे. इसके बावजूद यह पुस्तकालय आज भी बदहाल है.