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चूल्हा-चौका तक सीमित गया की ये महिलाएं बनीं अपने गांवों की लीडर, 'जांता सत्तू' तैयार कर हो रहीं स्वावलंबी

साल 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार सरकार के जरिए शुरू की गई जीविका समूह योजना गरीब महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है. गया में जीविका समूह की महिलाओं ने जिले का पहला सत्तू उत्पादन केंद्र खोला है, जिससे महिलाओं के जीवन में खुशहाली आ गई है.

जीविका समूह की महिलाएं
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Published : Oct 13, 2019, 7:31 AM IST

Updated : Oct 13, 2019, 2:06 PM IST

गयाः बोधगया प्रखंड के मोरामर्दाना पंचायत के खरौना गांव में अशिक्षित महिलाओं ने स्वावलंबी बनने की बड़ी मिसाल पेश की है. इस गांव की 25 महिलाओं के समूह ने जिले का पहला सत्तू उत्पादन केंद्र खोला है. इस केंद्र पर घरेलू और परंपरागत तरीके से चना से सत्तू बनाकर बाजार में बेचा जाता है.

महिलाएं बना रहीं जांता सत्तू
गया शहर से दूर खरौना गांव में महिलाओं ने अपने पैरों पर खड़े होने के लिए एक बेहतरीन काम किया है. बोधगया प्रखंड के खरौना गांव की 25 महिलाओं के समूह ने जीविका से जुड़कर जांता सत्तू बनाने का काम शुरू किया है. घरेलू तरीके से बनाया गया सत्तू पंचायत के आस-पास बाजार में खूब पसंद किया जा रहा है. कम लागत में बिना मशीन से शुरू किया गया ये लघु व्यवसाय 25 महिलाओं के घर की गरीबी भी दूर कर रहा है.

सत्तू बनाकर गया की ये महिलाएं बनी स्वावलंबी

जांता से चना को पीसकर बनाया गया सत्तू
इस उद्योग से जुड़ी सविता देवी ने बताया कि हमलोग जीविका से जुड़े हुए थे. गांव में एक जीविका समूह काम करता था. इस समूह से आर्थिक मदद मिल रही थी. लेकिन रोजगार नहीं हो रहा था. जीविका से जुड़े लोगों ने पापड़, आचार और सत्तू बनाने के लिए कहा. हमलोगों ने जांता से सत्तू बनाने के लिए दो दिवसीय ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग लेने के बाद गांव में ही जांता से चना को पीसकर सत्तू बनाया गया. फिर इसकी पैकिंग करके बाजार में बेचने लगे. जिन लोगों ने इस सत्तू का उपयोग किया उनको अच्छा लगा. अब बाजार और होटल से आर्डर आता है.

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प्रशिक्षक रोशनी के साथ जीविका समूह की महिलाएं

सत्तू बनाने में नहीं होता मशीन का उपयोग
वहीं, बिंदा देवी ने बताया कि चना से सत्तू बनाने के लिए कही भी मशीन का उपयोग नहीं होता है. पूरी तरह से घरेलू और परंपरागत तरीके से सत्तू बनाया जाता है. चना को फुलाने के बाद सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर उसको साफ करके भून लिया जाता है. उसके बाद उसका छिलका जांता में पिसा जाता है. फिर वजन के अनुसार पैकिंग कर बाजार में बेच देते हैं.

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जांता सत्तू

उद्योग शुरू करने से दूर हो गई गरीबी
जांता सत्तू बनाने वाली कांति देवी बताती हैं कि पहले हमलोग घर से बाहर नहीं निकलते थे. घर के काम व्यस्त रहते थे. गरीबी भी बहुत थी. जब से सत्तू व्यवसाय से जुड़े हैं, तब से गरीबी भी कम हो गई है. घर बेठे अपना रोजगार मिल गया है. जब समय मिलता है, तब इस काम में लग जाते हैं. एक सप्ताह में 10 किलो सत्तू बना लेते हैं. 50 रुपये किलो चना खरीदते हैं. 5 किलो चना साढ़े तीन किलो सत्तू बनता है. जिसे 180 रुपये किलो भाव से बेचते हैं. उसी के हिसाब से पैसा आ जाता है.

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प्रसन्न मुद्रा में जीविका समूह की महिलाएं

जांता सत्तू में पाया गया 16 प्रतिशत प्रोटीन
जीविका से जुड़ी रोशनी बताती हैं कि स्टार्टअप विलेज एंटरप्रेनरशिप प्रोग्राम के तहत जय मां संतोषी ग्रुप की महिलाएं जांता से सत्तू बनाकर बेच रही हैं. जीविका के तहत हमारी टीम अशिक्षित महिलाओं के बीच जाकर उनको उद्यमी बनाकर स्वरोजगार देने का काम करती हैं. इनको जीविका के जरिए वित्तीय, आर्थिक और तकनीकी सहयोग दिया जाता है. शुरू में इन महिलाओं को बाजार तक मुहैया कराया जाता है. रोशनी ने बताया कि महिलाओं के जरीए तैयार किए गए सत्तू की जांच पटना लैब में कराई गई. जिसमें 16 प्रतिशत प्रोटीन पाया गया.

क्या है जीविका समूह प्रोजेक्ट?
साल 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार सरकार ने बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट यानी जीविका प्रोजेक्ट की शुरूवात की. 2010 में ये प्रोजेक्ट राज्य के 55 ब्लॉक में शुरू कर दिया गया. इस प्रोजेक्ट के तहत लघु उद्योग शुरू करने वाली महिलाओं की आर्थिक मदद भी की जाती है. इस प्रोजेक्ट के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती है. केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से बनी ये योजना बिहार की गरीब और अशिक्षित महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है.

गयाः बोधगया प्रखंड के मोरामर्दाना पंचायत के खरौना गांव में अशिक्षित महिलाओं ने स्वावलंबी बनने की बड़ी मिसाल पेश की है. इस गांव की 25 महिलाओं के समूह ने जिले का पहला सत्तू उत्पादन केंद्र खोला है. इस केंद्र पर घरेलू और परंपरागत तरीके से चना से सत्तू बनाकर बाजार में बेचा जाता है.

महिलाएं बना रहीं जांता सत्तू
गया शहर से दूर खरौना गांव में महिलाओं ने अपने पैरों पर खड़े होने के लिए एक बेहतरीन काम किया है. बोधगया प्रखंड के खरौना गांव की 25 महिलाओं के समूह ने जीविका से जुड़कर जांता सत्तू बनाने का काम शुरू किया है. घरेलू तरीके से बनाया गया सत्तू पंचायत के आस-पास बाजार में खूब पसंद किया जा रहा है. कम लागत में बिना मशीन से शुरू किया गया ये लघु व्यवसाय 25 महिलाओं के घर की गरीबी भी दूर कर रहा है.

सत्तू बनाकर गया की ये महिलाएं बनी स्वावलंबी

जांता से चना को पीसकर बनाया गया सत्तू
इस उद्योग से जुड़ी सविता देवी ने बताया कि हमलोग जीविका से जुड़े हुए थे. गांव में एक जीविका समूह काम करता था. इस समूह से आर्थिक मदद मिल रही थी. लेकिन रोजगार नहीं हो रहा था. जीविका से जुड़े लोगों ने पापड़, आचार और सत्तू बनाने के लिए कहा. हमलोगों ने जांता से सत्तू बनाने के लिए दो दिवसीय ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग लेने के बाद गांव में ही जांता से चना को पीसकर सत्तू बनाया गया. फिर इसकी पैकिंग करके बाजार में बेचने लगे. जिन लोगों ने इस सत्तू का उपयोग किया उनको अच्छा लगा. अब बाजार और होटल से आर्डर आता है.

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प्रशिक्षक रोशनी के साथ जीविका समूह की महिलाएं

सत्तू बनाने में नहीं होता मशीन का उपयोग
वहीं, बिंदा देवी ने बताया कि चना से सत्तू बनाने के लिए कही भी मशीन का उपयोग नहीं होता है. पूरी तरह से घरेलू और परंपरागत तरीके से सत्तू बनाया जाता है. चना को फुलाने के बाद सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर उसको साफ करके भून लिया जाता है. उसके बाद उसका छिलका जांता में पिसा जाता है. फिर वजन के अनुसार पैकिंग कर बाजार में बेच देते हैं.

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जांता सत्तू

उद्योग शुरू करने से दूर हो गई गरीबी
जांता सत्तू बनाने वाली कांति देवी बताती हैं कि पहले हमलोग घर से बाहर नहीं निकलते थे. घर के काम व्यस्त रहते थे. गरीबी भी बहुत थी. जब से सत्तू व्यवसाय से जुड़े हैं, तब से गरीबी भी कम हो गई है. घर बेठे अपना रोजगार मिल गया है. जब समय मिलता है, तब इस काम में लग जाते हैं. एक सप्ताह में 10 किलो सत्तू बना लेते हैं. 50 रुपये किलो चना खरीदते हैं. 5 किलो चना साढ़े तीन किलो सत्तू बनता है. जिसे 180 रुपये किलो भाव से बेचते हैं. उसी के हिसाब से पैसा आ जाता है.

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प्रसन्न मुद्रा में जीविका समूह की महिलाएं

जांता सत्तू में पाया गया 16 प्रतिशत प्रोटीन
जीविका से जुड़ी रोशनी बताती हैं कि स्टार्टअप विलेज एंटरप्रेनरशिप प्रोग्राम के तहत जय मां संतोषी ग्रुप की महिलाएं जांता से सत्तू बनाकर बेच रही हैं. जीविका के तहत हमारी टीम अशिक्षित महिलाओं के बीच जाकर उनको उद्यमी बनाकर स्वरोजगार देने का काम करती हैं. इनको जीविका के जरिए वित्तीय, आर्थिक और तकनीकी सहयोग दिया जाता है. शुरू में इन महिलाओं को बाजार तक मुहैया कराया जाता है. रोशनी ने बताया कि महिलाओं के जरीए तैयार किए गए सत्तू की जांच पटना लैब में कराई गई. जिसमें 16 प्रतिशत प्रोटीन पाया गया.

क्या है जीविका समूह प्रोजेक्ट?
साल 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार सरकार ने बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट यानी जीविका प्रोजेक्ट की शुरूवात की. 2010 में ये प्रोजेक्ट राज्य के 55 ब्लॉक में शुरू कर दिया गया. इस प्रोजेक्ट के तहत लघु उद्योग शुरू करने वाली महिलाओं की आर्थिक मदद भी की जाती है. इस प्रोजेक्ट के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती है. केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से बनी ये योजना बिहार की गरीब और अशिक्षित महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है.

Intro:गया के बोधगया प्रखंड के मोरामर्दाना पंचायत का खरौना गांव में अशिक्षित महिलाओं ने मिसाल कायम किया है। इस गांव के 25 महिलाओं के समूह ने जिले का पहला सत्तू उत्पादन केंद्र को खोला है। इस केंद्र पर घरेलू और परंपरागत तरीके से चना से सत्तू बनाकर बाजार मे बेचा जाता है।


Body:गया शहर से सुदूर गांव में महिलाओं ने खुद से स्वालबन होने के लिए एक बेहतरीन कदम बढ़ाया है। बोधगया प्रखंड के खरौना गांव के 25 महिलाओ के समूह जीविका से जुड़कर जांता सत्तू बनाने का काम शुरू किया है। घरेलू तरीके से बनाया गया सत्तू पंचायत के आसपास बाजार में खूब पसंद किया जा रहा है। कम लागत में बिना मशीन से शुरू किया गया ये लघु व्यवसाय 25 महिलाओं के घर की गरीबी भी दूर कर रहा है।

सविता देवी ने बताया हमलोग जीविका से जुड़े हुए थे गांव में एक जीविका समूह काम करता था। ये समूह से आर्थिक मदद मिल रहा था लेकिन रोजगार नही हो रहा था। जीविका से जुड़े लोगों ने पापड़ बनाने के लिए ,आचार बंनाने के लिए और सत्तू बनाने के लिए बोले हमलोग सभी जांता से सत्तू बनाने के लिए दो दिवसीय ट्रेनिंग लिए। ट्रेनिंग लेने के बाद गांव में ही जांता से चना को पीसकर सत्तू बनाकर पैकिंग करके बाजार में बेचने लगे। जो लोग इस सत्तू का उपयोग किया उनको अच्छा लगा अब बाजार और होटल से आर्डर आता है उनको आपूर्ति करवाते हैं।

बिंदा देवी ने बताया चना से सत्तू बनाने के लिए कही भी मशीन का उपयोग नही होता है। पूरी तरह से घरेलू और परंपरागत तरीके से सत्तू बनाया जाता है। हमलोग चना को आगे फुला देते हैं फिर उसको सूखने के लिए छोड़ देते हैं फिर उसको साफ करते हैं। उसके बाद उसको भुजंते हैं फिर एक जांता में उसे छिलका हटाया जाता है फिर उसके बाद दूसरे जांता उसको पिसा जाता है। फिर वजन अनुसार पैकिंग किया जाता है। गांव के बगल के बाजार चेरकी ,दुमुहान के बाजारों में बेच देते हैं।

कांति देवी ने बताया पहले हमलोग घर से बाहर नही निकलते थे। घर के काम व्यस्त रहते थे। गरीबी भी बहुत था। जब से सत्तू व्यवसाय से जुड़े तब से गरीबी कम हुआ है। घर मे बेठे अपना रोजगार मिल गया है जब समय मिलता है तब इस काम मे लग जाते हैं। एक सप्ताह में 10 किलो सत्तू बना लेते हैं। 50 रुपये किलो चना खरीदते हैं अगर 5 किलो चना खरीदेगे उसे सत्तू बनायेगे तो साढ़े तीन किलो सत्तू बनेगा। 180 रुपये किलो भाव से बेचते हैं उसी के हिसाब से पैसा आ जाता है।


Conclusion:जीविका से जुड़ी रौशनी बताती है जीविका में चल रहे स्टार्टअप विलिज एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम के तहत बोधगया प्रखंड के खरौना गांव में जय माँ संतोषी ग्रुप की महिलाएँ जांता से सत्तू बनाकर बेच रही है। जीविका के तहत हमलोग अशिक्षित महिलाओं के बीच जाकर उनको उद्यमी बनाकर स्वरोजगार देने का काम करते हैं। इनको जीविका के द्वारा प्रशिक्षण, वित्तिय, आर्थिक और तकनीकी सहयोग दिया जाता है। प्रारंभिक चरण में इन महिलाओं को बाजार तक मुहैया कराया जाता है। महिलाओं द्वारा तैयार सत्तू को पटना के लैब में जांच करवाया गया है। जांज में जांता से तैयार हुआ सत्तू में 16 प्रतिशत प्रोटीन पाया गया है।
Last Updated : Oct 13, 2019, 2:06 PM IST
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