गया: सन 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में छपी कुरान शरीफ दुनिया मे तीन जगह मौजूद है. पहली ब्रिटिश संग्रहालय में, दूसरी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में और तीसरी गया के रामसागर स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह में. रमजान के पाक माह में दो सौ साल पुराने इस कुरान शरीफ का दीदार करने दूर-दूर से लोग आते हैं.
दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1158 पेज की है. दो तरजुमा (अनुवाद) और दो तफ्सीर वाली कुरान पहली बार 1882 में छपी थी. जिसका अरबी से फारसी में अनुवाद हजरत शाह मोहद्दिस देहलवी ने किया था.
सुरक्षा की दृष्टि से नहीं पढ़ सकते आम लोग
खानकाह के सज्जादा नशी हजरत मौलाना सबहुद्दीन मोनामी बताते हैं कि दो सौ वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया के राम सागर मोहल्ला स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है. सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं. आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं. ज्यादा छूने से इसकी जिल्द अलग होने लगती है. 1158 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है. बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.
'मदीना से है इसका जुड़ाव'
खानकाह सज्जादा नशी के भाई सैयद फुजैल अहमद बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. मदीना से इसका जुड़ाव है. लगभग दो सौ साल पुराना ये खानकाह है. उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे. खानकाह की लाइब्रेरी में हजारों पुस्तक है इनमें 500 से अधिक हस्तलिखित पुस्तकें हैं.