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200 साल पुराना नायाब कुरान शरीफ गया के खानकाह में सुरक्षित, दूर-दूर से देखने आते लोग

दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1158 पेज की है. दो तरजुमा (अनुवाद) और दो तफ्सीर वाली कुरान पहली बार 1882 में छपी थी.

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Published : May 31, 2019, 2:32 PM IST

कुरान शरीफ

गया: सन 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में छपी कुरान शरीफ दुनिया मे तीन जगह मौजूद है. पहली ब्रिटिश संग्रहालय में, दूसरी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में और तीसरी गया के रामसागर स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह में. रमजान के पाक माह में दो सौ साल पुराने इस कुरान शरीफ का दीदार करने दूर-दूर से लोग आते हैं.

दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1158 पेज की है. दो तरजुमा (अनुवाद) और दो तफ्सीर वाली कुरान पहली बार 1882 में छपी थी. जिसका अरबी से फारसी में अनुवाद हजरत शाह मोहद्दिस देहलवी ने किया था.

Gaya
कुरान शरीफ

सुरक्षा की दृष्टि से नहीं पढ़ सकते आम लोग
खानकाह के सज्जादा नशी हजरत मौलाना सबहुद्दीन मोनामी बताते हैं कि दो सौ वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया के राम सागर मोहल्ला स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है. सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं. आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं. ज्यादा छूने से इसकी जिल्द अलग होने लगती है. 1158 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है. बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

कुरान शरीफ के बारे में बताते खानकाह के सज्जादा

'मदीना से है इसका जुड़ाव'
खानकाह सज्जादा नशी के भाई सैयद फुजैल अहमद बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. मदीना से इसका जुड़ाव है. लगभग दो सौ साल पुराना ये खानकाह है. उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे. खानकाह की लाइब्रेरी में हजारों पुस्तक है इनमें 500 से अधिक हस्तलिखित पुस्तकें हैं.

गया: सन 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में छपी कुरान शरीफ दुनिया मे तीन जगह मौजूद है. पहली ब्रिटिश संग्रहालय में, दूसरी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में और तीसरी गया के रामसागर स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह में. रमजान के पाक माह में दो सौ साल पुराने इस कुरान शरीफ का दीदार करने दूर-दूर से लोग आते हैं.

दुनिया में तीन जगह और देश में दो जगहों पर मौजूद यह कुरान शरीफ 1158 पेज की है. दो तरजुमा (अनुवाद) और दो तफ्सीर वाली कुरान पहली बार 1882 में छपी थी. जिसका अरबी से फारसी में अनुवाद हजरत शाह मोहद्दिस देहलवी ने किया था.

Gaya
कुरान शरीफ

सुरक्षा की दृष्टि से नहीं पढ़ सकते आम लोग
खानकाह के सज्जादा नशी हजरत मौलाना सबहुद्दीन मोनामी बताते हैं कि दो सौ वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया के राम सागर मोहल्ला स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है. सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं. आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं. ज्यादा छूने से इसकी जिल्द अलग होने लगती है. 1158 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है. बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

कुरान शरीफ के बारे में बताते खानकाह के सज्जादा

'मदीना से है इसका जुड़ाव'
खानकाह सज्जादा नशी के भाई सैयद फुजैल अहमद बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. मदीना से इसका जुड़ाव है. लगभग दो सौ साल पुराना ये खानकाह है. उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे. खानकाह की लाइब्रेरी में हजारों पुस्तक है इनमें 500 से अधिक हस्तलिखित पुस्तकें हैं.

Intro:Gaya_Two_Hundred_years_old_kuran_relegion_book_khankah

सन 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में छपी कुरान शरीफ दुनिया मे तीन जगह मौजूद है। पहला ब्रिटिश संग्रहालय में है दूसरा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लाइब्रेरी में तीसरा गया के रामसागर स्थित चिश्तिया मोनामिया खानकाह में मौजूद है। रमजान के पाक माह में दो सौ साल पुराने कुरान शरीफ का दीदार करने आते हैं।





Body:दुनिया मे तीन जगह और देश मे दो जगहों पर मौजूद कुरान शरीफ में 1158 पेज की है। इस कुरान पाक में दो तरजुमा अनुवाद एवम दो तफ़्सीर वाली कुरान पहली बार 1882 मे छपी, अरबी से फ़ारसी में अनुवाद हजरत शाह मोहद्दिस देहलवी ने किया था।

खानकाह के सज्जाद नशी हजरत मौलाना सबहुद्दीन मोनामी बताते हैं दो वर्ष पुरानी कुरान शरीफ गया के राम सागर मोहल्ला स्थित खानकाह चिश्तिया मोनामिया में सुरक्षित है। सुरक्षा की दृष्टि कौन से वर्षों पुरानी कुरान को आम लोग नहीं पढ़ सकते हैं। आम लोग इसका दर्शन कर सकते हैं ज्यादा छूने से इसकी जिल्दअलग होने लगती है।1158 पेज वाली यह कुरान उनके बुजुर्गों द्वारा यहां पहुंची है बिस्मिल्लाह की लिखावट की खूबसूरती ही देखकर लगता है वर्षों पुरानी किताब है।

खानकाह सज्जादा नशी के भाई सैयद फ़ुजैल अहमद बताते हैं ये खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है। मदीना से इसका जुड़ाव है। लगभग दो सौ वर्ष पुराना खानकाह हैं। गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आता फानी आये थे। खानकाह की लाइब्रेरी में हजारो पुस्तक है। 500 से अधिक हस्तलिखित पुस्तके हैं।


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