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Diwali 2023 : दीपावली में नीलाम होती है सोनारों के कारखाने की मिट्टी, बनारस से आते हैं खरीददार - Soil garbage from goldsmith factory

आज दीपावली है और आज के दिन स्वर्णकारों के कारखाने की मिट्टी भी नीलाम होती है. दीपावली के दिन इसे खरीदने के लिए खरीददार आते हैं. ये ऊंचे दामों में भी बिकती है. खरीदने के लिए खरीददार भी बनारस से आते हैं.

गया
ज्वैलर्स के कारखाने के कचरे की होती है नीलामी
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 12, 2023, 6:06 AM IST

स्वर्णकारों के कचरे की होती है दीपावली पर नीलामी

गया : बिहार के गया में सोनारों के कारखाने की मिट्टी बिकती है, जिसे 'न्यारा' कहा जाता है. न्यारा बेचे जाने की कहानी अजीबो गरीब है. इसका ताना-बाना सालों भर से जुड़ा है. साल भर ज्वैलर्स के कारखाने से जो मिट्टी-कचरा निकलता है, वह फेंका नहीं जाता है, बल्कि सुरक्षित रखा जाता है. यही कचरा फिर दीपावली में हजारों लाखों में नीलामी किया जाता है.

कचरे की होती है नीलामी : गया शहर में सोने के दुकानों के कचरे की नीलामी होती है. यह बिल्कुल सही है. हालांकि यह कचरा होता है, सुनारों के कारखाने का. सोने-चांंदी के कारोबार से जुड़े लोग सोने चांदी के जो जेवरात बनाते हैं, तो निर्माण में सोने-चांदी के कण कुछ न कुछ जरूर नीचे गिर जाता है. यही वजह है, कि जमीन पर गिरने वाले कण को आसानी से चुनना संभव नहीं होता, ऐसे में उस स्थान पर रहे कचरों के साथ सोने चांदी के धातु भी बुहार कर एकत्रित कर लिए जाते हैं और फिर इसके जमा करने के लिए बनाए गए स्पेशल डस्टबीन में डाल दिया जाता है.

दीपावली के दिनों में होती है बिक्री : आभूषण बनाने वाले ज्वेलरी कारोबारी के बीच आमतौर पर न्यारा शब्द का प्रचलन होता है. न्यारा शब्द का अर्थ है, सुनारों के कारखाने की मिट्टी, जिसमें सोने और चांदी के कण मौजूद होते हैं. गया शहर में सोने के कारोबारी को द्वारा न्यारा को साल भर इकट्ठा किया जाता है. न्यारा यानी की सुनारों के कारखाने की मिट्टी में रहे सोने चांदी के धातु दीपावली के दिनों से जमा करने शुरू कर दिए जाते हैं. फिर साल भर जमा करने के बाद दीपावली के दिनों में ही बेचे जाते हैं.

बनारस से आते हैं खरीददार : इस संबंध में आभूषण कारोबारी नीरज कुमार वर्मा बताते हैं, कि न्यारा जिसे आमतौर पर मिट्टी में मिला हुआ सोने चांदी का कण कहा जाता है. बताते हैं, कि जो हमारे लिए कचरे के रूप में होता है, उसकी भी कीमत लगती है, दीपावली के दिनों में इसकी कीमत लगती है और जो साल भर का कचरा जमा करके रखते हैं, इसकी खरीददारी करने के लिए बनारस तक से लोग आते हैं. हजारों- लाखों में नीलामी लगती है. नीलामी की राशि साल भर के जमा किए गए न्यारा को देखकर लगाई जाती है.

कचरे से वारा 'न्यारा' : नीरज कुमार बताते हैं कि उनके पास अभी भी थोड़ा न्यारा बचा हुआ है. कुछ न्यारा बेचे भी गए हैं. हजारों में बिक्री की गई है. बताते हैं, कि ''इस तरह से हमारे द्वारा आभूषण बनाने में जो काट पीट किया जाता है उससे ही यह कचरा निकलता है और इसे हमलोग न्यारा के रूप में जानते हैं. इसकी बिक्री हर साल दीपावली के दिनों में करते हैं. हम लोग कचरा माने जाने वाले न्यारा से भी अच्छी आमदनी कर लेते हैं. तकरीबन सभी आभूषण दुकानदार ऐसा करते हैं और साल भर न्यारा को जमा करके रखते हैं और फिर दीपावली के दिनों में बिक्री कर देते हैं.''

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कचरे की होती है नीलामी : गया शहर में सोने के दुकानों के कचरे की नीलामी होती है. यह बिल्कुल सही है. हालांकि यह कचरा होता है, सुनारों के कारखाने का. सोने-चांंदी के कारोबार से जुड़े लोग सोने चांदी के जो जेवरात बनाते हैं, तो निर्माण में सोने-चांदी के कण कुछ न कुछ जरूर नीचे गिर जाता है. यही वजह है, कि जमीन पर गिरने वाले कण को आसानी से चुनना संभव नहीं होता, ऐसे में उस स्थान पर रहे कचरों के साथ सोने चांदी के धातु भी बुहार कर एकत्रित कर लिए जाते हैं और फिर इसके जमा करने के लिए बनाए गए स्पेशल डस्टबीन में डाल दिया जाता है.

दीपावली के दिनों में होती है बिक्री : आभूषण बनाने वाले ज्वेलरी कारोबारी के बीच आमतौर पर न्यारा शब्द का प्रचलन होता है. न्यारा शब्द का अर्थ है, सुनारों के कारखाने की मिट्टी, जिसमें सोने और चांदी के कण मौजूद होते हैं. गया शहर में सोने के कारोबारी को द्वारा न्यारा को साल भर इकट्ठा किया जाता है. न्यारा यानी की सुनारों के कारखाने की मिट्टी में रहे सोने चांदी के धातु दीपावली के दिनों से जमा करने शुरू कर दिए जाते हैं. फिर साल भर जमा करने के बाद दीपावली के दिनों में ही बेचे जाते हैं.

बनारस से आते हैं खरीददार : इस संबंध में आभूषण कारोबारी नीरज कुमार वर्मा बताते हैं, कि न्यारा जिसे आमतौर पर मिट्टी में मिला हुआ सोने चांदी का कण कहा जाता है. बताते हैं, कि जो हमारे लिए कचरे के रूप में होता है, उसकी भी कीमत लगती है, दीपावली के दिनों में इसकी कीमत लगती है और जो साल भर का कचरा जमा करके रखते हैं, इसकी खरीददारी करने के लिए बनारस तक से लोग आते हैं. हजारों- लाखों में नीलामी लगती है. नीलामी की राशि साल भर के जमा किए गए न्यारा को देखकर लगाई जाती है.

कचरे से वारा 'न्यारा' : नीरज कुमार बताते हैं कि उनके पास अभी भी थोड़ा न्यारा बचा हुआ है. कुछ न्यारा बेचे भी गए हैं. हजारों में बिक्री की गई है. बताते हैं, कि ''इस तरह से हमारे द्वारा आभूषण बनाने में जो काट पीट किया जाता है उससे ही यह कचरा निकलता है और इसे हमलोग न्यारा के रूप में जानते हैं. इसकी बिक्री हर साल दीपावली के दिनों में करते हैं. हम लोग कचरा माने जाने वाले न्यारा से भी अच्छी आमदनी कर लेते हैं. तकरीबन सभी आभूषण दुकानदार ऐसा करते हैं और साल भर न्यारा को जमा करके रखते हैं और फिर दीपावली के दिनों में बिक्री कर देते हैं.''

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