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वर्षावास की समाप्ति के बाद पर्यटकों से गुलजार होगा बोधगया, देश-विदेश से आएंगे श्रद्धालु - बौद्ध भिक्षु

वर्षावास समापन के बाद एक माह तक बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को चीवर और दैनिक उपयोग का सामग्री दान किया जाता है. जिसे कठिन चीवर दान कहा जाता है. इसके बाद विभिन्न देशों का पूजा समारोह महाबोधि मंदिर में चलता है.

पर्यटकों से गुलजार होगा बोधगया
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Published : Oct 11, 2019, 10:14 AM IST

गया: बोधगया बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण धर्मस्थान है. बौद्ध अनुयायी अपने जीवन में एक बार यहां जरूर आते हैं. ऐसे तो पूरे साल श्रद्धालु और पर्यटकों की भीड़ रहती है. लेकिन वर्षावास समाप्त होने पर इनकी संख्या बढ़ जाती है. अक्टूबर माह से लेकर मार्च तक विदेशी पर्यटकों से बोधगया गुलजार रहता है. 13 अक्टूबर यानि कार्तिक पूर्णिमा से विदेशी पर्यटकों का बोधगया आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा.

महाबोधि मंदिर के पूर्व मुख्य पुजारी भंते सत्यानन्द बताते हैं कि बौद्ध भिक्षुओं के लिये वर्षावास बहुत महत्वपूर्ण है. बौद्ध भिक्षु वर्षावास में बौद्ध कुटिया या बौद्ध विहार में आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक रहते हैं. पूरे तीन माह तक एक वक्त भोजन कर साधना और अध्ययन में लगे रहते हैं. इस अवधि में बौद्ध भिक्षु ना तो किसी से ज्यादा मिलते हैं और ना ही विचरण करते हैं. भगवान बुद्ध ने भी विभिन्न स्थानों पर वर्षावास काल में समय व्यतीत किया था. यह बौद्ध धर्म ग्रंथों में वर्णित है. ढाई हजार साल पुरानी परंपरा को बौद्ध भिक्षु जीवित रखे हैं.

gaya
पर्यटकों से बोधगया गुलजार

बौद्ध भिक्षुओं के बीच होता है चीवर दान
वर्षावास समापन के बाद एक माह तक बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को चीवर और दैनिक उपयोग का सामग्री दान किया जाता है, जिसे कठिन चीवर दान कहा जाता है. महाबोधि मंदिर में बीटीएमसी की ओर से चीवर दान समारोह आयोजित किया जाता है. जिसके बाद विभिन्न मोनेस्ट्री में इसका आयोजन किया जाता है. इसके बाद विभिन्न देशों का पूजा समारोह महाबोधि मंदिर में चलता है.

रिपोर्ट देखिए

हजारों विदेशी श्रद्धालु आते हैं बोधगया
चीवरदान कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद विभिन्न देशों से हजारों विदेशी श्रद्धालु महाबोधि मंदिर में पूजा करने के लिये बोधगया आते हैं. बता दें कि बोधगया में सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुआ था तब से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाने लगे. गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विश्व के कोने-कोने गए. आज पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. इन अनुयायी अपने जीवनकाल मे एक बार बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष का दर्शन करने जरूर आते हैं.

गया: बोधगया बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण धर्मस्थान है. बौद्ध अनुयायी अपने जीवन में एक बार यहां जरूर आते हैं. ऐसे तो पूरे साल श्रद्धालु और पर्यटकों की भीड़ रहती है. लेकिन वर्षावास समाप्त होने पर इनकी संख्या बढ़ जाती है. अक्टूबर माह से लेकर मार्च तक विदेशी पर्यटकों से बोधगया गुलजार रहता है. 13 अक्टूबर यानि कार्तिक पूर्णिमा से विदेशी पर्यटकों का बोधगया आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा.

महाबोधि मंदिर के पूर्व मुख्य पुजारी भंते सत्यानन्द बताते हैं कि बौद्ध भिक्षुओं के लिये वर्षावास बहुत महत्वपूर्ण है. बौद्ध भिक्षु वर्षावास में बौद्ध कुटिया या बौद्ध विहार में आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक रहते हैं. पूरे तीन माह तक एक वक्त भोजन कर साधना और अध्ययन में लगे रहते हैं. इस अवधि में बौद्ध भिक्षु ना तो किसी से ज्यादा मिलते हैं और ना ही विचरण करते हैं. भगवान बुद्ध ने भी विभिन्न स्थानों पर वर्षावास काल में समय व्यतीत किया था. यह बौद्ध धर्म ग्रंथों में वर्णित है. ढाई हजार साल पुरानी परंपरा को बौद्ध भिक्षु जीवित रखे हैं.

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पर्यटकों से बोधगया गुलजार

बौद्ध भिक्षुओं के बीच होता है चीवर दान
वर्षावास समापन के बाद एक माह तक बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को चीवर और दैनिक उपयोग का सामग्री दान किया जाता है, जिसे कठिन चीवर दान कहा जाता है. महाबोधि मंदिर में बीटीएमसी की ओर से चीवर दान समारोह आयोजित किया जाता है. जिसके बाद विभिन्न मोनेस्ट्री में इसका आयोजन किया जाता है. इसके बाद विभिन्न देशों का पूजा समारोह महाबोधि मंदिर में चलता है.

रिपोर्ट देखिए

हजारों विदेशी श्रद्धालु आते हैं बोधगया
चीवरदान कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद विभिन्न देशों से हजारों विदेशी श्रद्धालु महाबोधि मंदिर में पूजा करने के लिये बोधगया आते हैं. बता दें कि बोधगया में सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुआ था तब से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाने लगे. गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विश्व के कोने-कोने गए. आज पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. इन अनुयायी अपने जीवनकाल मे एक बार बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष का दर्शन करने जरूर आते हैं.

Intro:गया के बोधगया बौद्ध धर्म के लिए मक्का मदीना जैसा है बौद्ध अनुयायी अपने जीवन का एक बार जरूर आते हैं। बोधगया ऐसे तो सालो श्रदालु और पर्यटक आते हैं लेकिन वर्षावास समाप्त होने पर इनकी संख्या में इजाफा हो जाता है। अक्टूबर माह से लेकर मार्च तक विदेशी पर्यटको से बोधगया गुलजार रहता है। 13 अक्टूबर कार्तिक पूर्णिमा से विदेशी पर्यटकों का जत्था बोधगया आने लगेगा।


Body:बिहार के अंतराष्ट्रीय स्थल बोधगया 13 अक्टूबर के बाद गुलजार हो जाएगा। बौद्ध धर्म के वर्षावास समाप्ति के बाद विदेशी पर्यटकों का आने का सिलसिला जारी हो जाता है। गया के बोधगया में सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुआ था तब से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाने लगे। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विश्व के कोने कोने गए। आज पूरे विश्व मे बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। इन अनुयायी अपने जीवनकाल मे एक बार बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष का दर्शन करना चाहते हैं।

महाबोधि मंदिर के पूर्व मुख्य पुजारी भंते सत्यानन्द ने बताया बौद्ध भिक्षुओं के वर्षावास बहुत महत्वपूर्ण हैं। बौद्ध भिक्षु वर्षावास में बौद्ध कुटिया या बौद्ध विहार में आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक रहते है। पूरे तीन माह तक एक वक्त भोजन कर साधना और अध्ययन कार्य मे लगे रहते हैं। इस अवधि में बौद्ध भिक्षु ना तो किसी से ज्यादा मिलते हैं और ना ही विचरण करते हैं। भगवान बुद्ध ने भी विभिन्न स्थानों पर वर्षावास काल में व्यतीत किया था बौद्ध धर्म ग्रंथों में वर्णित है। ढाई हजार साल पुरानी परंपरा को बौद्ध भिक्षु जीवित रखे हैं।

वर्षावास समापन के बाद एक माह तक बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को चीवर और दैनिक उपयोग का सामग्री दान किया जाता है जिसे कठिन चीवर दान कहा जाता है। महाबोधि मंदिर में बीटीएमसी द्वारा कठिन जीवर दान समारोह आयोजित किया जाता है उसके बाद विभिन्न मोनोस्ट्री में इसका आयोजन किया जाता है। उसके बाद विभिन्न देशों का पूजा समारोह महाबोधि मंदिर में चलता है।

चीवरदान कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद विभिन्न देशों का महाबोधि मंदिर में पूजा क्रम हजारो विदेशी श्रदालु बोधगया आते हैं। इस वर्ष वर्षावास 13 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। इसके बाद चिवरदान कार्यक्रम चलेगा इस कार्यक्रम से देश- विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों से गुलजार रहेगा बोधगया।


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