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8वें दिन गया जी में विष्णुपद की 16 वेदियों पर चल रहा है पिंडदान, शिवलोक की होती है प्राप्ति

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Published : Sep 20, 2019, 8:43 AM IST

पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं.

पिंडदान

गया: मोक्ष की नगरी गया में आठवें दिन का महत्व 16 वेदियों पर है. विष्णुपद स्थित 16 वेदियों पर आखिर दिन पिंडदान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है. गया में श्राद्ध करने से सात गोत्र और 101 कुल का उद्धार होता है.

क्रोध और लोभ का त्याग
कहा जाता है कि दूसरे स्थानों पर पितर आह्वान करने पर आते हैं, लेकिन गया में अपने पुत्र को आया हुआ देखकर वह स्वयं आ जाते हैं. गया तीर्थ पिंडदान करने का फल हर कोई चाहता है. इस क्रिया को क्रोध और लोभ को त्याग कर करना चाहिए.

gaya
सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म

पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान
पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं.

शिवलोक की प्राप्ति होती
पिंडदान के आठवें दिन 16 वेदी नामक तीर्थ पर अवस्थित अगस्त पद, क्रौंच पद, मतंगपद, चंद्रपद, सूर्यपद, कार्तिकपद में श्राद्ध करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है. वहीं,16 वेदी के अंतिम कर्मकांड में रोगग्रस्त श्रद्धालुओं को शास्त्र ने कुछ खाकर करने का आदेश दिया है.

पेश है एक रिपोर्ट

16 वेदियों का स्थल
आठवां दिन पिंडदान करने से पहले नित्यकर्म कर, पूर्वजों को मन में रखकर 16 वेदियों के पास स्थल पर बैठकर पिंडदान आरंभ करना चाहिए. 16 वेदी का स्थल देव स्थल है, जहां 16 देवता स्थान ग्रहण करते हैं. पिंडवेदी स्तंभ पर पिंड साटने का परंपरा नहीं है. यहां सभी पिंडों के भांति पिंड अर्पित कर सकते हैं.

सात गोत्र इस प्रकार है:

  • पिता का गोत्र
  • माता का गोत्र
  • पत्नी का गोत्र
  • बहन का गोत्र
  • बेटी के पति का गोत्र
  • बुआ का गोत्र
  • मौसी का गोत्र
    gaya
    पिंडदान करते पिंडदानी

101 कुल इस प्रकार है:

  • पिता के 24
  • माता के 20
  • पत्नी के 16
  • बहन के 12
  • बेटी के पति के11
  • बुआ के 10
  • मौसी के 8

गया: मोक्ष की नगरी गया में आठवें दिन का महत्व 16 वेदियों पर है. विष्णुपद स्थित 16 वेदियों पर आखिर दिन पिंडदान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है. गया में श्राद्ध करने से सात गोत्र और 101 कुल का उद्धार होता है.

क्रोध और लोभ का त्याग
कहा जाता है कि दूसरे स्थानों पर पितर आह्वान करने पर आते हैं, लेकिन गया में अपने पुत्र को आया हुआ देखकर वह स्वयं आ जाते हैं. गया तीर्थ पिंडदान करने का फल हर कोई चाहता है. इस क्रिया को क्रोध और लोभ को त्याग कर करना चाहिए.

gaya
सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म

पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान
पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं.

शिवलोक की प्राप्ति होती
पिंडदान के आठवें दिन 16 वेदी नामक तीर्थ पर अवस्थित अगस्त पद, क्रौंच पद, मतंगपद, चंद्रपद, सूर्यपद, कार्तिकपद में श्राद्ध करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है. वहीं,16 वेदी के अंतिम कर्मकांड में रोगग्रस्त श्रद्धालुओं को शास्त्र ने कुछ खाकर करने का आदेश दिया है.

पेश है एक रिपोर्ट

16 वेदियों का स्थल
आठवां दिन पिंडदान करने से पहले नित्यकर्म कर, पूर्वजों को मन में रखकर 16 वेदियों के पास स्थल पर बैठकर पिंडदान आरंभ करना चाहिए. 16 वेदी का स्थल देव स्थल है, जहां 16 देवता स्थान ग्रहण करते हैं. पिंडवेदी स्तंभ पर पिंड साटने का परंपरा नहीं है. यहां सभी पिंडों के भांति पिंड अर्पित कर सकते हैं.

सात गोत्र इस प्रकार है:

  • पिता का गोत्र
  • माता का गोत्र
  • पत्नी का गोत्र
  • बहन का गोत्र
  • बेटी के पति का गोत्र
  • बुआ का गोत्र
  • मौसी का गोत्र
    gaya
    पिंडदान करते पिंडदानी

101 कुल इस प्रकार है:

  • पिता के 24
  • माता के 20
  • पत्नी के 16
  • बहन के 12
  • बेटी के पति के11
  • बुआ के 10
  • मौसी के 8
Intro:गया जी मे पिंडदान का आठवां दिन का महत्व 16 वेदियों पर है।16 पिंडवेदी के आखिर के सभी पिंडवेदी पर आज पिंडदान हो रहा है। विष्णुपद स्थित 16 वेदियो पर आखिर दिन पिंडदान करने से शिवलोक की प्राप्ति होता हैं।


Body:गया श्राद्ध करने में सात गोत्र 101 कुल का उद्धार होता है वह सात गोत्र और एक सौ कुल इस प्रकार है पिता का गोत्र,माता का गोत्र, पत्नी का गोत्र,बहन का गोत्र,बेटी के पति का गोत्र,बुआ का गोत्र, मौसी का गोत्र,यह सात गोत्र तथा पिता के 24 ,माता के 20,पत्नी के 16, बहन के 1, बेटी के पति के11,बुआ के 10 और मौसी के आठ इस प्रकार 101 कुल हुए।

दूसरे स्थानों पर पितर आह्वान करने से आते हैं किंतु गया में अपने पुत्र को आया हुआ देखकर स्वयं आ जाते हैं। गया तीर्थ पिंडदान करने का फल आदि कोई चाहता है तो काम ,क्रोध तथा लोभ को त्याग कर इस क्रिया को करना चाहिए।पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए ,एक बार भोजन करना चाहिए ,पृथ्वी पर सोना चाहिए,सच बोलना चाहिए तथा पवित्र रहना चाहिए इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा। जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नही करते हैं।

पिंडदान के आठवें दिन 16 वेदी नामक तीर्थ पर अवस्थित अगस्त पद,क्रौंच पद,मतंगपद, चंद्रपद, सूर्यपद, कार्तिकप में श्राद्ध करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

16 वेदी के अंतिम कर्मकांड में रोगग्रस्त श्रद्धालुओं को शास्त्र ने कुछ खाकर करने का आदेश दिया है।


Conclusion:आठवां दिन पिंडदान करने से पहले नित्यकर्म कर, पूर्वजो के मन मे रखकर 16 वेदियो के समीप स्थल पर बैठकर पिंडदान आरंभ करना चाहिए। 16 वेदी का स्थल देव स्थल है जहां 16 देवता स्थान ग्रहण किये हो। पिंडवेदी स्तंभ पर पिंड साटने का परंपरा नही है , यहां सभी पिंडो के भांति पिंड अर्पित कर सकते हैं। य
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