गयाः बोधगया में तिब्बतियों के 14 वें धर्मगुरू दलाईलामा के चार दिवसीय प्रवचन के पहले दिन का प्रवचन समाप्त हो गया है. पहले दिन के प्रवचन में दलाईलामा का करूणा-मैत्री और अहिंसा पर खास फोकस रहा. इसके साथ ही उन्होंने भारत की पाली सभ्यता और नालंदा की सभ्यता का भी जिक्र किया.
'भारत की तीन हजार साल पुरानी सभ्यता को धारण करें'
दलाईलामा के प्रवचन को हिंदी में ट्रांसलेट कर रहे कैलाश चन्द्र बौद्ध ने बताया कि बौद्ध धर्म के परिचय के रूप में उनका प्रवचन शुरू हुआ. बौद्ध का उदय में नालंदा परंपरा और पाली परंपरा का अहम रोल रहा. भारत की तीन हजार साल पुरानी सभ्यता जो है, उसे लोगो को धारण करना चाहिए. ये सभी धर्म के लिए कोई एक धर्म विशेष के लिए नहीं है.
बोधिसत्व के 37 अभ्यास के ग्रन्थ की दी जानकारी
आज के प्रवचन में दलाईलामा ने कहा कि जीवन में जो भी दुख आता है वह अपनी अज्ञानता और बुरे गुणों की वजह से आता है, इससे हमें बचना चाहिए, तभी हम सुखी रह पाएंगे. कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म का हो सुख और शांति चाहता है. उन्होंने बोधिसत्व के 37 अभ्यास के ग्रन्थ को आधार बनाकर प्रवचन दिया.
प्रवचन में दलाई लामा पर टिकी थी सबकी नजर
वहीं, देश और विदेश से आये हजारों श्रद्धालु की नजर कालचक्र मैदान में बने विशेष आसन पर बैठे दलाई लामा पर टिकी थी. दलाई लामा प्रवचन करते हुए अगर मुस्कराते तो पूरा बौद्ध हुजूम मुस्कराता. बौद्ध धर्म के अनुयायी शांत होकर विभिन्न भाषाओं के लिए अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर एफएम रेडियो ट्यून कर सुन रहे थे.
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दलाईलामा ने तिब्बती भाषा में दिया प्रवचन
तिब्बती धर्म गुरु दलाईलामा प्रवचन तिब्बती भाषा में दे रहे थे. उनके भाषण को 11 भषाओं में ट्रांसलेट किया जा रहा था. आपको बता दें कि इतने बड़े आयोजन के लिए सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम था, एक व्यक्ति भी बिना सुरक्षा चेक के अंदर नहीं जा सकता था. तिब्बती मठ से लेकर कालचक्र मैदान तक सात स्तर की सुरक्षा व्यवस्था की गई थी.
अनुयायियों के बीच बांटी गई 20 हजार लीटर चाय
दलाईलामा को सुनने के लिए लोग ठंड की भी परवाह नहीं कर रहे थे. जिन लोग को वाटर प्रूफ पंडाल में जगह नहीं मिली उन्होंने ठंड में खुले आसमान के नीचे बैठकर प्रवचन सुना. उनके लिए बड़े बड़े एलईडी स्क्रीन लगाया गया था. प्रवचन के बाद बौद्ध अनुयायियों को विशेष चाय वितरण की गई. लगभग 20 हजार लीटर चाय का वितरण किया गया.