गया: बिहार का गया सूर्य उपासना के लिए प्रसिद्ध (Sun Temple In Gaya) है. यहां भगवान भास्कर प्रातः, मध्याह्न और संध्या देव के रूप में विराजमान हैं. सूर्यदेव का ऐसा रूप शायद ही कहीं देखने के लिए मिलता है. गया में सतयुग काल से ही सूर्य उपासना का इतिहास मिल जाता है. इसका पुराण और शास्त्रों में वर्णन मिलता है. सूर्य देव की तीनों स्वरूप मानपुर सूर्य पोखरा और शीतला माई मंदिर में स्थित है.
तीनों काल में भगवान की पूजाः गया सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर की प्रतिमा को प्रातः कालीन भगवान सूर्य देव के रूप में पूजा की जाती है. अपराह्न कालीन के रूप में ब्राह्मणी घाट में विरंची भगवान की पूजा होती है. संध्या कालीन भगवान भास्कर के रूप में सुर्यकुंड स्थित सूर्य मंदिर में प्रतिमा स्थापित है. तीनों ही प्रतिमाएं सतयुग काल की बताई जाती है. सूर्यकुंड में दक्षिणायन सूर्य हैं, इसलिए यहां संध्या और प्रातः दोनों काल में भक्तों द्वारा छठ में अर्घ्य दिया जाता है.
राजा मानसिंह ने की थी सूर्य की उपासनाः ब्राह्मणी घाट में मध्यान के सूर्य देवता के कारण प्रातः और संध्या दोनों काल में अर्घ्य दिया जाता है. सूरज पोखरा और शीतला माई मंदिर में प्रातः कालीन भगवान भास्कर के रूप में सूर्य देवता विराजमान हैं. यहां की कहानी राजा मानसिंह से भी जुड़ी हुई है. बताया जाता है कि राजा ने संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगी थी. मन्नत पूर्ण हुई तो मानसिंह ने दंडवत होकर भगवान सूर्य की उपासना की थी.
मंदिर के पिलर में नासिंह का जिक्रः यहां एक शिलालेख लगा हुआ है, उससे पता चलता है, कि राजा मानसिंह द्वारा बाद के काल में यहां सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था. मानसिंह निःसंतान थे. ज्योतिषाचार्य की राय से उन्होंने सूर्य की उपासना की. इसका जिक्र पिलर एडिट में किया गया है. कालचक्र में यह धीरे-धीरे धूमिल होने के कगार पर आ गया है.
सूर्य की पहली किरण भगवान भास्कर पर पड़ती हैः गया के मानपुर सूर्य पोखरा और शीतला माई में भगवान भास्कर की प्राचीन कालीन प्रतिमा है. इन दोनों प्रतिमाओं को लेकर मान्यता है कि उनकी प्रातः कालीन सूर्य के देवता के रूप में पूजा होती है. शीतला माई मंदिर में मान्यता है कि सूर्य की जब पहली किरण निकलती है तो सीधे यहां शीतला माई में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा पर पड़ती है. इस तरह शीतला माई मंदिर में स्थित भगवान भास्कर की छठ में आराधना करने से मन्नत पूरी होती है.
एशिया की यह सबसे विशाल सूर्य प्रतिमाः विरंची भगवान की प्रतिमा अद्भुत है. यहां मध्याह्न के सूर्य देवता होने के कारण छठ में प्रथम और संध्या दोनों कालीन के अर्घ्य देने की परंपरा है. माना जाता है कि एशिया की यह सबसे विशाल सूर्य प्रतिमा है. यहां भगवान भास्कर सपरिवार मौजूद हैं. भगवान भास्कर की प्रतिमा में सात घोड़े और एक चक्का पर विराजमान है, जो की सात रश्मि का प्रतीक बताए जाता है. पत्नी संज्ञा, पुत्र शनि और यम, सारथी अरुण, अंधकार भगाने वाली देवियां उषा और प्रत्यूषा हैं.
गयासुर ने प्रतिमा स्थापित किया थाः भगवान की इस प्रतिमा में दोनों हाथ में श्वेत कमल है. भगवान सूर्य तुरकिया कला की मुकुट पहने घुंघराले बाल के साथ विराजमान हैं. ऐसी अद्भुत भगवान सूर्य की प्रतिमा और कहीं नहीं देखने को मिलती है. इस सूर्य प्रतिमा को लेकर कई मान्यताएं भी है. कहा जाता है कि गयासुर द्वारा इन प्रतिमा को स्थापित किया गया था. 12 पिलर और काले पत्थर से निर्मित इस मंदिर में अष्टदल कमल है. सूर्य पुराण में भी इस प्रतिमा का जिक्र है.
"यह एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है. भगवान भास्कर सपरिवार विराजमान हैं. तीनों प्रहर के भगवान सूर्य की उपासना से शारीरिक, आर्थिक, मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं. सफेद दाग की बीमारी दूर हो जाती है. धन्य धान की वृद्धि होती है. दरिद्रता का नाश हो जाता है. छठ के अवसर पर यहां काफी भीड़ उमड़ती है. राजा मानसिंह ने भी मन्नत मांगी थी." -मनोज कुमार मिश्रा, पुजारी
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