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लगातार बढ़ती जा रही टीबी के मरीजों की संख्या, लोगों में जागरूकता की कमी

सिविल सर्जन बीके सिंह ने बताया कि वर्ष 2017 में 2155 मरीजों में से 103 मरीज एमडीआर स्टेज में थे. जिन्हे टीबी की शुरुआती स्टेज की दवा दी जाती है.

लगातार बढ़ रही मरीजों की संख्या
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Published : Mar 26, 2019, 11:52 AM IST

मोतिहारीः पूर्वी चंपारण जिले में टीबी मरीजों के संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अनुसार वर्ष 2017 में जिले में कुल 2155 टीबी के मरीज थे, वर्ष 2018 में ये संख्या बढ़कर 2246 हो गई. इसके बाद से टीबी के मरीजों की संख्या में लगातर इजाफा होता जा रहा है.

सिविल सर्जन वीके सिंह ने बताया कि वर्ष 2017 में 2155 मरीजों में से 103 मरीज एमडीआर स्टेज में थे. जिन्हे टीबी की शुरुआती स्टेज की दवा दी जाती है. बाकी के मरीज एमडीआर स्टेज से आगे के स्टेज पर पहुंच चुके थे. जबकि वर्ष 2018 में 2246 टीबी के मरीज चिन्हित किए गए. जिसमें से मात्र160 ही एमडीआर स्टेज के मरीज थे.

शुरुआती स्टेज में बरती जाती है लापरवाही
बीके सिंह के मुताबिक टीबी के मरीजों का सरकारी स्तर पर होने वाला इलाज खर्चिला नहीं होता है. साथ ही सरकार ने अप्रैल 2018 से प्रत्येक टीबी मरीज को उनके खान पान के लिए 500 रुपया देना भी शुरु कर दिया था. जो जिले के 1700 टीबी मरीजों को दी जाती है. बावजूद इसके मरीज शुरुआत में नीम हकीम से इलाज कराते हैं. जिसके कारण उनकी बीमारी काफी जटिल रुप ले लेती है.

जागरूकता का अभाव

सिविल सर्जन के अनुसार, लोग इस बीमारी के प्रति जागरुक नहीं हुए तो आने वाले समय में यह महामारी का रुप ले लेगी. इधर दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण भी निजी नर्सिंग होम में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों की सूची मौजूद नहीं है. जबकि सभी निजी क्लिनिकों के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें सभी टीबी के मरीजों की सूची विभाग को देनी है.

मोतिहारीः पूर्वी चंपारण जिले में टीबी मरीजों के संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अनुसार वर्ष 2017 में जिले में कुल 2155 टीबी के मरीज थे, वर्ष 2018 में ये संख्या बढ़कर 2246 हो गई. इसके बाद से टीबी के मरीजों की संख्या में लगातर इजाफा होता जा रहा है.

सिविल सर्जन वीके सिंह ने बताया कि वर्ष 2017 में 2155 मरीजों में से 103 मरीज एमडीआर स्टेज में थे. जिन्हे टीबी की शुरुआती स्टेज की दवा दी जाती है. बाकी के मरीज एमडीआर स्टेज से आगे के स्टेज पर पहुंच चुके थे. जबकि वर्ष 2018 में 2246 टीबी के मरीज चिन्हित किए गए. जिसमें से मात्र160 ही एमडीआर स्टेज के मरीज थे.

शुरुआती स्टेज में बरती जाती है लापरवाही
बीके सिंह के मुताबिक टीबी के मरीजों का सरकारी स्तर पर होने वाला इलाज खर्चिला नहीं होता है. साथ ही सरकार ने अप्रैल 2018 से प्रत्येक टीबी मरीज को उनके खान पान के लिए 500 रुपया देना भी शुरु कर दिया था. जो जिले के 1700 टीबी मरीजों को दी जाती है. बावजूद इसके मरीज शुरुआत में नीम हकीम से इलाज कराते हैं. जिसके कारण उनकी बीमारी काफी जटिल रुप ले लेती है.

जागरूकता का अभाव

सिविल सर्जन के अनुसार, लोग इस बीमारी के प्रति जागरुक नहीं हुए तो आने वाले समय में यह महामारी का रुप ले लेगी. इधर दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण भी निजी नर्सिंग होम में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों की सूची मौजूद नहीं है. जबकि सभी निजी क्लिनिकों के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें सभी टीबी के मरीजों की सूची विभाग को देनी है.

Intro:मोतिहारी।आने वाले समय में यक्ष्मा (टीबी) रोग महामारी का रुप ले सकता है।जागरुकता के अभाव में मरीजों के शरीर दवाओं के अभ्यस्त होते जा रहे हैं और मरीजों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता खराब स्थिति में पहुंचती जा रही है।


Body:पूर्वी चंपारण जिला के टीबी मरीजों के सरकारी आंकड़ों की तस्वीर जो सामने आ रही है।वह साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।जबकि निजी क्लिनिकों में ईलाज कराने वालों के आंकड़े जिले के स्वास्थ्य महकमा के पास नहीं है।सरकारी आंकड़ो के अनुसार बर्ष 2017 में जिले में कुल 2155 टीबी के मरीज थे।जिसमे से 103 मरीज एमडीआर स्टेज में थे।जिन्हे टीबी का शुरुआती स्टेज की दवा दी जाती है।बाकी के मरीज एमडीआर स्टेज से आगे के स्टेज पर पहुंच चुके थे।जबकि बर्ष 2018 में 2246 टीबी के मरीज चिन्हित किए गए।जिसमें से मात्र 160 हीं एमडीआर स्टेज के मरीज थे।


Conclusion:गौरतलब है कि टीबी मरीजों की सरकारी स्तर पर होने वाला ईलाज खर्चिला नहीं होता है।साथ ही सरकार ने अप्रैल 2018 से प्रत्येक टीबी मरीज को उनके खान पान के लिए 500 रुपया देना शुरु किया गया है।जो जिले के 1700 टीबी मरीजों को दी जाती है।दरअसल,जागरुकता के अभाव में टीबी के मरीज शुरुआत में नीम हकीम से ईलाज कराते हैं।जिस कारण उनकी बिमारी काफी जटिल रुप धारण कर लेती है।जो मरीज के मौत का कारण बन जाती है।सिविल सर्जन के अनुसार अगर लोग इस बिमारी के प्रति जागरुक नहीं हुए तो आने वाले समय में यह महामारी का रुप ले लेगा।इधर दूसरी ओर स्वास्थ्य विहाग की लापरवाही के कारण भी निजी नर्सिंग होम में ईलाज कराने वाले टीबी मरीजों की सूची उसके पास नहीं है।जबकि सभी निजी क्लिनिकों के चिकित्सकों को उनके यहां ईलाज कराने आने वाले टीबी मरीजों की जानकारी जिले के स्वास्थ्य महकमा को देना है।लेकिन जिले में संचालित किसी भी नर्सिंग होम से जानकारी साझा नहीं किया जाता है।

बाईट....बीके सिंह.....सिविल सर्जन,पूर्वी चंपारण
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