मोतिहारी(रक्सौल): भारत-नेपाल सीमा के नो-मेंस लैंड के पास नेपाली प्रशासन द्वारा कोरोना संक्रमित शवों को दफनाए जाने के मामले में रक्सौल बीडीओ कुमार प्रशांत ने जांच रिपोर्ट सौंप दी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो शव नेपाली प्रशासन द्वारा दफनाए गये थे, वह नेपाल की सीमा में दफनाए गये हैं, जो कि नो-मेंस लैंड से एकदम सटा हुआ भाग है.
बता दें कि शनिवार को नेपाली सेना के जवानों ने चार कोरोना संक्रमितों के शवों को बॉर्डर के पास लाकर दफना दिया था. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. इस मामले में अनुमंडल पदाधिकारी आरती ने बीडीओ रक्सौल, अंचल अधिकारी रक्सौल व थानाध्यक्ष रक्सौल को एक पत्र जारी किया था. पत्र जारी कर 24 घंटे में जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था. जिसके बाद जांच पदाधिकारी रक्सौल बीडीओ ने जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपी.
स्थानीय लोगों में आक्रोश
शवों के दफनाये जाने के बाद से स्थानीय लोगों में आक्रोश है. रविवार को लोगों ने इसके विरोध में प्रदर्शन भी किया था. जिस क्षेत्र में शवों को दफनाया गया, वहां दोनों देशों के आमजनों का आवागमन का मुख्य नाका है. फिलहाल नेपाल में लॉकडाउन के कारण बॉर्डर सील है. लेकिन भविष्य में बॉर्डर खुलने के बाद लोगों के आवागमन शुरू होने के साथ दोनों देशों के नागरिकों को महामारी फैलने का डर सता रहा है. नेपाल में सबसे ज्यादा कोरोना मरीज बीरगंज उप महानगर पालिका में ही हैं. ऐसे में यह जिला पहले से रेड जोन में है.
2015 में बना दिया गया था डंपिंग यार्ड
बता दें कि साल 2015 में मधेशी आंदोलन के बाद बीरगंज उप महानगर पालिका के कर्मियों ने नेपाली सेना और प्रशासन के सहयोग से भारतीय कस्टम से शंकराचार्य गेट तक नो मेंस लैंड को कचरा डंपिंग एरिया बना दिया था, जो दोनों देशों के वातावरण और पर्यावरण के लिहाज से चिंताजनक विषय था. इस पूरे प्रकरण को लेकर भारतीय सीमा क्षेत्र के गांव अहिरवा टोला, पनटोका, सिवान टोला, महादेवा के ग्रामीणों में काफी आक्रोश व्याप्त है. इसका विरोध करते हुए ग्रामीणों ने नेपाल के प्रधानमंत्री और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की.