मोतिहारी: वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के काल में राज्य के स्वास्थ व्यवस्था को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. पूर्वी चंपारण जिला भी इससे अछूता नहीं है. इन सबके बीच सीमित संसाधनों के साथ जिले में एम्बुलेंस चालक और कर्मी दिन रात अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. बावजूद इसके उनके समस्याओं की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है. एजेंसी के माध्यम से संचालित एम्बुलेंस के चालकों और इएमटी को पिछले छह माह से वेतन नहीं मिला है. बिना वेतन दिए हीं इन एम्बुलेंस चालकों से काम लिया जा रहा है. इनके परिवार के सामने भूखमरी की स्थिति आ गई है.
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सूखा चिवड़ा खाकर ड्यूटी कर रहे हैं एम्बुलेंस चालक
एम्बुलेंस के इएमटी संजय कुमार ने बताते हैं कि उनलोगों को पिछले छह माह से वेतन नहीं मिला है. एम्बुलेंस ड्राइवर और इएमटी से इस कोरोना संक्रमण के दौर में ड्यूटी ली जा रही है. लेकिन उन्हें खाने के लिए भी नहीं मिलता है. सूखा चिवड़ा खाकर किसी तरह वे ड्यूटी तो कर रहे हैं. लेकिन वेतन के अभाव में उनके परिवार के सामने भूखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
एजेंसी के माध्यम से होता है एम्बुलेंस संचालन
जिले के विभिन्न अस्पतालों में पशुपति डिस्ट्रीब्यूटर एवं सम्मान फाउंडेशन के माध्यम से एम्बुलेंस का संचालन होता है. एजेंसी के एम्बुलेंस कंट्रोलर आनंद कुमार ने बताया कि जिला स्वास्थ्य समिति ने दिसंबर महीने से संचालक एजेंसी को पैसा नहीं भेजा है. इसलिए एम्बुलेंस चालकों और इएमटी को वेतन नहीं मिल सका है.
कुछ टेक्निकल इश्यू थी,जो दूर हो गई है
वहीं सिविल सर्जन अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने इस बारे में बताया कि जिले में एजेंसी के 30 और सांसद के अलावा विधायक कोटा के 15 एम्बुलेंस संचालित हो रहे है. जिनका अलग-अलग पेमेंट मॉड्यूल है. उन्होंने बताया कि कुछ टेक्निकल इश्यू था, जिसे अब दूर कर लिया गया है. जल्द हीं एम्बुलेंस चालकों और इएमटी के वेतन मद का रुपया एजेंसी के खाते में भेज दिया जाएगा.
जिला में 45 एम्बुलेंस पर तैनात हैं 148 कर्मी
गौरतलब है कि जिला में सदर अस्पताल समेत सभी पीएचसी में कुल 45 एम्बुलेंस का संचालन एजेंसी के माध्यम से होता है. एम्बुलेंस पर ड्राइवर और इएमटी मिलाकर कुल 148 कर्मी तैनात हैं. कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में इन कर्मियों को सरकार ने फ्रटलाइन वर्कर भी माना है.
लेकिन इन कर्मियों को दिसंबर माह से वेतन नहीं मिला है. बावजूद इसके एम्बुलेंस कर्मी वेतन के अभाव में भी अपना काम कर रहे हैं. लेकिन अधिकारियों को सोचना चाहिए कि इन कर्मियों का अपना परिवार भी है और उनका पेट पालने की जिम्मेवारी भी इन्हीं के कंधों पर है.