दरभंगा: शहर के लक्ष्मीसागर मोहल्ले के प्रणव ठाकुर और उनकी पत्नी वसुधा रानी ने समाज और रिश्तेदारों की नाराजगी की परवाह किए बिना देहदान कर दिया है. पिछले 27 मार्च को वसुधा रानी का निधन हो गया. इसके बाद उनका शरीर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के छात्रों को पढ़ाई के लिए दे दिया गया. साथ ही उनकी आंखें पटना के आईजीआईएमएस को दान दे दी गईं, जिससे उनके दुनिया में नहीं होने के बाद भी उनकी आंखों से कोई दुनिया देख सकेगा.
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'हम दोनों ने 2018 में ही अपने शरीर को दान देने का फैसला कर लिया था. जब हम किसी मृतक के दाह संस्कार में जाते थे तो शरीर को जलते हुए देखकर अफसोस होता था कि अगर इसके अंग किसी को दान दिए जाते तो कोई जरूरतमंद व्यक्ति दुनिया में जिंदा रह सकता था. लेकिन शव को जलाकर उसके सभी अंगों को नष्ट कर दिया जाता है. इसलिए मैंने और वसुधा ने फैसला किया कि किसी और की जिंदगी को जीने लायक बनाएंगे और देहदान का निर्णय लिया.'- प्रणव ठाकुर, वसुधा रानी के पति
वसुधा रानी ने दूसरों को दी नई जिंदगी
वसुधा रानी मिथिलांचल की पहली और बिहार की ऐसी चौथी शख्स हैं जिन्होंने अपने देह का दान किया है और मृत्यु के बाद उनका शरीर दाह संस्कार के बजाए समाज के काम आ रहा है. समाज में इस दंपत्ति के महान काम की सराहना हो रही है. इस दंपत्ति की दोनों बेटियों ने भी माता-पिता से प्रेरणा लेते हुए अपने शरीर का दान करने का फैसला किया है.
'हमारे मन में यह धारणा बनती गई कि इस मूल्यवान शरीर को दान दिया जाना चाहिए ताकि दुनिया छोड़कर जाने के बाद भी यह किसी के काम आ सके. आज भी इस फैसले का समाज में बहुत से लोग विरोध कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद हम अपने फैसले पर अडिग रहे.'- प्रणव ठाकुर, स्व.वसुधा रानी के पति
'मझे खुशी है कि मेरी मां की आंखों से कोई जरूरतमंद व्यक्ति दुनिया देखेगा और उनके शरीर से मेडिकल के छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. मैंने भी अपने शरीर का दान करने का फैसला कर लिया है.'- मालिनी, वसुधा की छोटी बेटी
प्रणव जी और उनकी पत्नी वसुधा जी ने जो किया है वह बहुत ही नेक काम है. इस परिवार ने एक मिसाल पेश की है जिसका समाज को अनुसरण करना चाहिए. भगवान कुमार झा, स्थानीय
'एनजीओ दधिचि देहदान समिति से मिली प्रेरणा'
प्रणव बताते हैं कि बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक एनजीओ दधिचि देहदान समिति के संरक्षक हैं जिसकी प्रेरणा से उन दोनों पति-पत्नी ने देहदान किया था. साथ ही प्रणव का कहना है कि दरभंगा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में एक आई बैंक की स्थापना का काम काफी समय से लटका पड़ा है अगर उसकी स्थापना हो जाती है तो जरूरतमंद लोगों को काफी मदद मिलेगी. देहदान को महादान माना जाता है. प्रणव दूसरों से भी देहदान करने की अपील कर रहे हैं.
'मुझे मेरी मां के इस कदम पर गर्व है. समाज को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. मां से प्रेरित होकर मैंने भी देहदान करने का फैसला कर लिया है'- अदिति, वसुधा रानी की बड़ी बेटी
देहदान व अंगदान
सामान्यत शरीर के किसी भी हिस्से को डोनेट किया जा सकता है. बशर्ते वे दानदाता के जीवन को प्रभावित न करें और वे हिस्से किसी गंभीर बीमारी से प्रभावित न हों. हालांकि शरीर के किडनी, लीवर का कुछ पार्ट और कॉर्निया की ज्यादा मांग होती है. ब्रेन डैड होने पर शरीर के सारे अंग दान किए जा सकते हैं. शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख के कॉर्निया का दान हो सकता है. औसतन तीन घंटे के अंदर ही बॉडी डोनेशन किया जा सकता है.
'वसुधा रानी मिथिलांचल की पहली और बिहार की चौथी ऐसी शख्स हैं जिन्होंने अपनी देह का दान किया है. उनकी आंखें पटना के आईजीआईएमएस को दान दी गई हैं जो किसी जरूरतमंद को लगाई जाएंगी. साथ ही उनका शरीर डीएमसी के एनाटॉमी विभाग में रखा गया है जिस पर यहां पढ़ाई के लिए आने वाले छात्र रिसर्च कर सकेंगे.'- डॉ. केएन मिश्रा, प्रिंसिपल, दरभंगा मेडिकल कॉलेज
अंगदान की प्रक्रिया
- एक निश्चित समय में देहदान की प्रक्रिया करनी होती है पूरी.
- ज्यादा समय होने पर खराब होने शुरू हो जाते हैं शरीर के अंग.
- अंग निकालने की प्रक्रिया में लग जाता है आधा दिन.
- ब्रेन डेथ की पुष्टि होने पर घरवालों की इजाजत पर निकाले जाते हैं अंग.
- अंग निकाले जाने से पहले पूरी करनी होती है कानूनी प्रक्रिया.