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संस्कृत विवि की दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा संरक्षण, राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के साथ चल रही बात - पांडुलिपि संरक्षण केंद्र

प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि संस्कृत विवि से इस संबंध में बातचीत चल रही है. विवि इनका संरक्षण अपने परिसर में चाहता है. लेकिन बिना प्रयोगशाला में लाए पांडुलिपियों का संरक्षण जोखिम भरा हो सकता है. उम्मीद है कि जल्द बातचीत पूरी होगी और इसका काम शुरु हो जाएगा.

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संस्कृत विवि की दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा संरक्षण
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Published : Jan 26, 2020, 5:47 AM IST

दरभंगा: कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि की सैकड़ों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण शुरू होने जा रहा है. विश्वविद्यालय ने इसके लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली के साथ बात शुरू कर दी है. प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि बातचीत चल रही है जल्द ही काम शुरु कर दिया जाएगा.

'जल्द शुरु होगा पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य'
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सामाजिक विज्ञान संस्थान और शोध पुस्तकालय स्थित एनएमएम के पांडुलिपि संरक्षण केंद्र के निदेशक प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि संस्कृत विवि से इस संबंध में बातचीत चल रही है. विवि इनका संरक्षण अपने परिसर में चाहता है. लेकिन बिना प्रयोगशाला में लाए पांडुलिपियों का संरक्षण जोखिम भरा हो सकता है. उम्मीद है कि जल्द बातचीत पूरी होगी और इसका काम शुरु हो जाएगा. इसके बाद उनकी पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के दरभंगा स्थित पांडुलिपि संरक्षण केंद्र में शुरू हो जाएगा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संरक्षण के अभाव में खराब हो रही पांडुलिपियां
बता दें कि मिथिला में ग्रंथ लेखन की परंपरा सातवीं सदी में शुरू हुई थी. यहां आदि कवि विद्यापति, वाचस्पति मिश्र और मुरलीधर झा जैसे विद्वानों के ताड़पत्र, भोजपत्र और बांसपत्र पर लिखे मूल ग्रंथों की प्रतियां मिलती है. इनमें से कई दुर्लभ पांडुलिपियां संस्कृत विवि में हैं जो संरक्षण के अभाव में खराब हो रही हैं. जिसके संरक्षण की बात की जा रही है.

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संस्कृत विवि की दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा संरक्षण

दरभंगा: कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि की सैकड़ों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण शुरू होने जा रहा है. विश्वविद्यालय ने इसके लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली के साथ बात शुरू कर दी है. प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि बातचीत चल रही है जल्द ही काम शुरु कर दिया जाएगा.

'जल्द शुरु होगा पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य'
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सामाजिक विज्ञान संस्थान और शोध पुस्तकालय स्थित एनएमएम के पांडुलिपि संरक्षण केंद्र के निदेशक प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि संस्कृत विवि से इस संबंध में बातचीत चल रही है. विवि इनका संरक्षण अपने परिसर में चाहता है. लेकिन बिना प्रयोगशाला में लाए पांडुलिपियों का संरक्षण जोखिम भरा हो सकता है. उम्मीद है कि जल्द बातचीत पूरी होगी और इसका काम शुरु हो जाएगा. इसके बाद उनकी पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के दरभंगा स्थित पांडुलिपि संरक्षण केंद्र में शुरू हो जाएगा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संरक्षण के अभाव में खराब हो रही पांडुलिपियां
बता दें कि मिथिला में ग्रंथ लेखन की परंपरा सातवीं सदी में शुरू हुई थी. यहां आदि कवि विद्यापति, वाचस्पति मिश्र और मुरलीधर झा जैसे विद्वानों के ताड़पत्र, भोजपत्र और बांसपत्र पर लिखे मूल ग्रंथों की प्रतियां मिलती है. इनमें से कई दुर्लभ पांडुलिपियां संस्कृत विवि में हैं जो संरक्षण के अभाव में खराब हो रही हैं. जिसके संरक्षण की बात की जा रही है.

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संस्कृत विवि की दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा संरक्षण
Intro:दरभंगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि की सैकड़ों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों का जल्द संरक्षण शुरू होगा। विवि ने इसके लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली के साथ बात शुरू की है।


Body:महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सामाजिक विज्ञान संस्थान एवं शोध पुस्तकालय स्थित एनएमएम के पांडुलिपि संरक्षण केंद्र के निदेशक प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि संस्कृत विवि से इस संबंध में बातचीत चल रही है। विवि इनका संरक्षण अपने परिसर में चाहता है लेकिन बिना प्रयोगशाला में लाए पांडुलिपियों का संरक्षण जोखिम भरा हो सकता है। उम्मीद है कि जल्द बातचीत पूरी होगी और इसका करार हो जाएगा। इसके बाद उनकी पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के दरभंगा स्थित पांडुलिपि संरक्षण केंद्र में शुरू हो जाएगा।


Conclusion:बता दें कि मिथिला में ग्रंथ लेखन की परंपरा सातवीं सदी में शुरू हुई थी। यहां आदि कवि विद्यापति, वाचस्पति मिश्र और मुरलीधर झा जैसे विद्वानों के ताड़पत्र, भोजपत्र और बांसपत्र पर लिखे मूल ग्रंथों की प्रतियां मिलती हैं। इनमें से कई दुर्लभ पांडुलिपियां संस्कृत विवि में हैं जो संरक्षण के अभाव में खराब हो रही हैं।

बाइट 1- प्रो. भवेश्वर सिंह, निदेशक, एमकेआईएसएसआरएल.

विजय कुमार श्रीवास्तव
ई टीवी भारत
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