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कीर्ति के दरभंगा सीट 'आजाद' करने के बाद अब गोपालजी और सिद्दीकी आमने-सामने

प्रदेश में मिथिलांचल की राजधानी दरभंगा हॉट सीट बनी हुई है. यहां से वर्तमान में कीर्ति झा आजाद सांसद हैं. लेकिन इस बार का समीकरण बदल गया है. बीजेपी से गोपालजी ठाकुर और राजद से अब्दुल बारी सिद्दीकी चुनावी मैदान में हैं.

अब्दुल बारी सिद्दीकी और गोपालजी ठाकुर
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Published : Apr 25, 2019, 12:23 PM IST

Updated : Apr 25, 2019, 4:41 PM IST

दरभंगा: दरभंगा लोकसभा सीट अपने आप में बेहद खास है. कई लोग इसे मिथिलांचल की राजधानी के नाम से भी पुकारते हैं. तभी तो यहां पर मुकाबला काफी दिलचस्प होता है.

वर्तमान में कीर्ति झा आजाद यहां से सांसद हैं. लेकिन उनका पत्ता कट गया है. भाजपा ने कीर्ति को निष्कासित किया था तो वह कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन ऐन मौके पर अब्दुल बारी सिद्दीकी ने उनका रील कट कर दिया और महागठबंधन के उम्मीदवार बन गए.

कुछ ऐसा ही हाल जदयू के संजय झा का है. वह चुनाव लड़ने के लिए फिल्डिंग कर रहे थे पर भाजपा के गोपालजी ठाकुर ने टिकट पाने में बाजी मार ली. कुल मिलाकर कहें तो महागठबंधन और एनडीए में वाइल्ड कार्ड उम्मीदवारों की एंट्री ने दरभंगा सीट को बेहद दिलचस्प बना दिया है.

दरभंगा से ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

दरभंगा में 6 विधानसभा सीटें
दरभंगा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटे हैं. इनमें गौरा बौरम और बेनीपुर विधानसभा की सीटें जेडीयू के पास है. अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण और बहादुरपुर पर आरजेडी का कब्जा है. वहीं बीजेपी के पास दरभंगा की सीट है. मतलब एनडीए और महागठबंधन के पास 3-3 सीटें हैं.

जातीय समीकरण
दरभंगा में यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण जाति के वोटर निर्णायक होते हैं. इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है. जबकि यादव और ब्राह्मण जाति के वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब है. सवर्ण जातियों में राजपूत और भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख है.

इलाके के मुद्दे
पूरा संसदीय क्षेत्र बाढ़, सूखा, बेरोजगारी और पलायन का दंश झेलता है. लोग ट्रेन भर-भर कर मजदूरी करने बाहर जाते हैं. यहां बंद पड़ी रैयाम और सकरी चीनी मिल, अशोक पेपर मिल, आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विवि, एयरपोर्ट और एम्स की स्थापना चुनावी मुद्दे हैं. बाढ़ का स्थायी निदान, दरभंगा शहर में जाम की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिये फ्लाई ओवर का निर्माण, बाईपास सड़क का निर्माण समेत कई मांगें लोगों की है.

सांसद ने क्या किया?
कीर्ति आजाद दरभंगा से भाजपा के टिकट पर तीन बार 1999, 2009 और 2014 में सांसद रहे हैं. इस बार वे कांग्रेस में चले गये हैं. उनका कहना है कि भाजपा का जो घोषणापत्र था उसके अनुसार नहीं के बराबर काम हुआ है. इसके लिये वे पार्टी को दोषी ठहराते हैं. हालांकि वे अपने तीन टर्म की उपलब्धियां भी गिनाते हैं.

कीर्ति आजाद ने कहा कि मैथिली को आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाना, आकाशवाणी दरभंगा से मैथिली कार्यक्रम की प्रस्तुति, इलाके में ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर सड़क का आना, दरभंगा-समस्तीपुर बड़ी रेल लाइन, एयरपोर्ट निर्माण की शुरुआत, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क का शिलान्यास उनकी ही उपलब्धियां हैं.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड
कीर्ति आज़ाद ने संसद में कुल 31 बार डिबेट में हिस्सा लिया. उन्होंने सदन में 449 सवाल पूछे और चार बार प्राइवेट मेम्बर बिल पेश किये. उन्होंने तीन बार पूरक प्रश्न भी किए. कीर्ति आज़ाद ने अलग मिथिला राज्य की मांग भी संसद में उठायी. इसके अलावा धान घोटाला, मिथिलांचल में रेल की सम्भावना जैसे सवाल संसद में रखे.

2014 का गणित क्या कहता है
2014 में कीर्ति आजाद ने राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी को 46,453 मतों से हराया था. कीर्ति आजाद को दो लाख 39 हजार 268 व राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी को एक लाख 92 हजार 815 मत मिले थे. एक लाख चार हजार 494 मत लाकर जदयू के संजय झा तीसरे स्थान पर रहे थे.

'सुशासन बाबू' कितने असरदार
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू यहां कोई खास प्रभाव नहीं दिखाती है. नीतीश कुमार यहां कभी भी अकेले असरदार नहीं रहे. इस बार वे फिर से भाजपा के साथ एनडीए में हैं. ऐसे में कितना असर दिखेगा, यह कहना मुश्किल है.

दरभंगा: दरभंगा लोकसभा सीट अपने आप में बेहद खास है. कई लोग इसे मिथिलांचल की राजधानी के नाम से भी पुकारते हैं. तभी तो यहां पर मुकाबला काफी दिलचस्प होता है.

वर्तमान में कीर्ति झा आजाद यहां से सांसद हैं. लेकिन उनका पत्ता कट गया है. भाजपा ने कीर्ति को निष्कासित किया था तो वह कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन ऐन मौके पर अब्दुल बारी सिद्दीकी ने उनका रील कट कर दिया और महागठबंधन के उम्मीदवार बन गए.

कुछ ऐसा ही हाल जदयू के संजय झा का है. वह चुनाव लड़ने के लिए फिल्डिंग कर रहे थे पर भाजपा के गोपालजी ठाकुर ने टिकट पाने में बाजी मार ली. कुल मिलाकर कहें तो महागठबंधन और एनडीए में वाइल्ड कार्ड उम्मीदवारों की एंट्री ने दरभंगा सीट को बेहद दिलचस्प बना दिया है.

दरभंगा से ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

दरभंगा में 6 विधानसभा सीटें
दरभंगा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटे हैं. इनमें गौरा बौरम और बेनीपुर विधानसभा की सीटें जेडीयू के पास है. अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण और बहादुरपुर पर आरजेडी का कब्जा है. वहीं बीजेपी के पास दरभंगा की सीट है. मतलब एनडीए और महागठबंधन के पास 3-3 सीटें हैं.

जातीय समीकरण
दरभंगा में यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण जाति के वोटर निर्णायक होते हैं. इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है. जबकि यादव और ब्राह्मण जाति के वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब है. सवर्ण जातियों में राजपूत और भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख है.

इलाके के मुद्दे
पूरा संसदीय क्षेत्र बाढ़, सूखा, बेरोजगारी और पलायन का दंश झेलता है. लोग ट्रेन भर-भर कर मजदूरी करने बाहर जाते हैं. यहां बंद पड़ी रैयाम और सकरी चीनी मिल, अशोक पेपर मिल, आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विवि, एयरपोर्ट और एम्स की स्थापना चुनावी मुद्दे हैं. बाढ़ का स्थायी निदान, दरभंगा शहर में जाम की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिये फ्लाई ओवर का निर्माण, बाईपास सड़क का निर्माण समेत कई मांगें लोगों की है.

सांसद ने क्या किया?
कीर्ति आजाद दरभंगा से भाजपा के टिकट पर तीन बार 1999, 2009 और 2014 में सांसद रहे हैं. इस बार वे कांग्रेस में चले गये हैं. उनका कहना है कि भाजपा का जो घोषणापत्र था उसके अनुसार नहीं के बराबर काम हुआ है. इसके लिये वे पार्टी को दोषी ठहराते हैं. हालांकि वे अपने तीन टर्म की उपलब्धियां भी गिनाते हैं.

कीर्ति आजाद ने कहा कि मैथिली को आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाना, आकाशवाणी दरभंगा से मैथिली कार्यक्रम की प्रस्तुति, इलाके में ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर सड़क का आना, दरभंगा-समस्तीपुर बड़ी रेल लाइन, एयरपोर्ट निर्माण की शुरुआत, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क का शिलान्यास उनकी ही उपलब्धियां हैं.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड
कीर्ति आज़ाद ने संसद में कुल 31 बार डिबेट में हिस्सा लिया. उन्होंने सदन में 449 सवाल पूछे और चार बार प्राइवेट मेम्बर बिल पेश किये. उन्होंने तीन बार पूरक प्रश्न भी किए. कीर्ति आज़ाद ने अलग मिथिला राज्य की मांग भी संसद में उठायी. इसके अलावा धान घोटाला, मिथिलांचल में रेल की सम्भावना जैसे सवाल संसद में रखे.

2014 का गणित क्या कहता है
2014 में कीर्ति आजाद ने राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी को 46,453 मतों से हराया था. कीर्ति आजाद को दो लाख 39 हजार 268 व राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी को एक लाख 92 हजार 815 मत मिले थे. एक लाख चार हजार 494 मत लाकर जदयू के संजय झा तीसरे स्थान पर रहे थे.

'सुशासन बाबू' कितने असरदार
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू यहां कोई खास प्रभाव नहीं दिखाती है. नीतीश कुमार यहां कभी भी अकेले असरदार नहीं रहे. इस बार वे फिर से भाजपा के साथ एनडीए में हैं. ऐसे में कितना असर दिखेगा, यह कहना मुश्किल है.

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Last Updated : Apr 25, 2019, 4:41 PM IST
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