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आखिरी सांसे गिन रहा दरभंगा राज के नरगौना पैलेस का ऐतिहासिक टर्मिनल

दरभंगा राज की देश को कई महत्वपूर्ण देन हैं. उनकी निशानियां पूरे देश मे मौजूद हैं, जो संरक्षण के अभाव में खस्ताहाल हैं. इन्हीं निशानियों में से एक है दरभंगा राज के नरगौना पैलेस का ऐतिहासिक टर्मिनल रेलवे स्टेशन जिसके अवशेष तक नहीं बचे हैं.

Darbhanga raj Historical railway terminal
Darbhanga raj Historical railway terminal
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Published : Apr 6, 2021, 3:03 PM IST

Updated : Apr 6, 2021, 4:06 PM IST

दरभंगा: विरासतों को सहेज के रखने की कोशिश की जाती है ताकि आने वाली पीढ़ी उसे देख सके. लेकिन दरभंगा में दरभंगा राज की सबसे महत्वपूर्ण देन की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा. दरभंगा राज के नरगौना पैलेस का ऐतिहासिक टर्मिनल रेलवे स्टेशन जिस पर पहलीं बार 17 अप्रैल 1874 को ट्रेन चल कर महाराजा के महल तक पहुंची थी, अब यह प्लेटफॉर्म आखिरी सांसे गिन रहा है.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- बिहार : दरभंगा महाराज के घर के अंदर चलती थी रेल, ऐसी थी शान-ओ-शौकत

प्लेटफॉर्म गिन रहा आखिरी सांसे
आज से 147 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के जमाने में उनके महल तक रेल लाइनें बिछाई गईं थीं. ट्रेनें आती-जाती थीं. 1874 में दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेलवे की शुरुआत की थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ऐतिहासिक टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर पहलीं बार 17 अप्रैल 1874 को चली थी ट्रेन

अकाल में राहत कार्य के लिए पहली ट्रेन
दरअसल इन रेल लाइनों की शुरुआत इसलिए की गई थी कि उस दौरान बिहार में भीषण अकाल पड़ा था. दरभंगा राज ने राहत कार्य चलाने के लिए और दाने-दाने को मोहताज मजदूरों को रोजगार दिलाने के लिए अंग्रेजों के साथ मिलकर रेल लाइन बिछाई थी. यह रेल लाइन सबसे पहले बरौनी के बाजितपुर से दरभंगा के लिए बिछाई गई थी और इस पर पहली बार मालगाड़ी चली थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
तिरहुत रेल के सलून के बाहर का दृश्य

मोकामा से लेकर दरभंगा तक रेल लाइन
महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी तिरहुत रेलवे बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया. महाराजा ने इसके लिए अपनी जमीन तक तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और 1 हजार मजदूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक रेल लाइन बिछाई थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
कई हस्तियों ने किया सफर

महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह का बड़ा योगदान
उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक आज हम जिस रेल रूट पर यात्रा करते हैं उस पर सबसे पहले रेल लाइन बिछाने में महाराजा का बड़ा योगदान है. महाराजा की कंपनी तिरहुत रेलवे ने 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की थी. इनमें दलसिंहसराय से समस्तीपुर, समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर से मोतिहारी, मोतिहारी से बेतिया, दरभंगा से सीतामढ़ी, हाजीपुर से बछवाड़ा, सकरी से जयनगर, नरकटियागंज से बगहा और समस्तीपुर से खगड़िया रेल लाइन प्रमुख रूप से गिनी जाती हैं.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ईटीवी भारत GFX

शान-ओ-शौकत का प्रतीक पैलेस ऑन व्हील
उस जमाने में महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील के नाम से एक ट्रेन भी चलाई थी जो आज के पैलेस ऑन व्हील से ज्यादा ठाट-बाट वाली ट्रेन थी. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें और पलंग थे. इसमें बैठकर देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ऐतिहासिक टर्मिनल के अवशेष तक नहीं बचे हैं

'ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल रेलवे प्लेटफार्म का संरक्षण बेहद जरूरी है. दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह अपने आखिरी सफर पर इसी प्लेटफॉर्म पर अपनी ट्रेन से उतरे थे. इस ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. यह एक ऐतिहासिक विरासत है जिसे सरकार, प्रशासन और विश्वविद्यालय को मिलकर संरक्षित करना चाहिए ताकि नई पीढ़ी इसके बारे में जान सके.'- श्रुतिकर झा,सीईओ, महाराजाधिराज कल्याणी फाउंडेशन

Darbhanga raj Historical railway terminal
महाराजा ने पैलेस ऑन व्हील के नाम से एक ट्रेन भी चलाई थी

कई हस्तियों ने किया सफर
पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, इंदिरा गांधी, कई रियासतों के राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारियों ने इसका सफर किया था. यहां तक कि महात्मा गांधी भी पैलेस ऑन व्हील के बजाए एक सामान्य यात्री ट्रेन पर सवार होकर दरभंगा पहुंचे थे. महाराजा की पैलेस ऑन व्हील ट्रेन उनकी मृत्यु के पहले अर्थात 1962 तक नरगौना टर्मिनल पर आती-जाती थी.

'दरभंगा राज का बिहार में रेलवे के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइनें बिछाने के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दे दी थी. दरअसल उस जमाने में बिहार में भीषण अकाल पड़ा था और लोग दाने-दाने के लिए मोहताज थे. महाराजा ने इसी को देखते हुए मजदूरों को रोजगार देने, राहत कार्य चलाने और उत्तर बिहार के औद्योगिकीकरण के लिए रेल लाइन बिछाई थी, ताकि मुसीबत में पड़े लोगों की तेजी से लोगों की मदद की जा सके.'- संतोष कुमार, सीनेटर, एलएनएमयू

Darbhanga raj Historical railway terminal
दरभंगा टर्मिनल रेलवे स्टेशन को जीर्णोद्धार की जरुरत

प्लेटफॉर्म के जीर्णोधार की जरुरत
महाराजा की मृत्यु के बाद 1972 में नरगौना परिसर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में आ गया. उसके बाद इस रेलवे प्लेटफार्म के बुरे दिन शुरू हो गए. आज की तारीख में ये ऐतिहासिक रेलवे प्लेटफॉर्म पूरी तरह से मिटने के कगार पर पहुंच चुका है.

यह भी पढ़ें- दरभंगा राज ने उत्तर बिहार में बिछाई थी रेलवे लाइनों का जा

दरभंगा: विरासतों को सहेज के रखने की कोशिश की जाती है ताकि आने वाली पीढ़ी उसे देख सके. लेकिन दरभंगा में दरभंगा राज की सबसे महत्वपूर्ण देन की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा. दरभंगा राज के नरगौना पैलेस का ऐतिहासिक टर्मिनल रेलवे स्टेशन जिस पर पहलीं बार 17 अप्रैल 1874 को ट्रेन चल कर महाराजा के महल तक पहुंची थी, अब यह प्लेटफॉर्म आखिरी सांसे गिन रहा है.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- बिहार : दरभंगा महाराज के घर के अंदर चलती थी रेल, ऐसी थी शान-ओ-शौकत

प्लेटफॉर्म गिन रहा आखिरी सांसे
आज से 147 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के जमाने में उनके महल तक रेल लाइनें बिछाई गईं थीं. ट्रेनें आती-जाती थीं. 1874 में दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेलवे की शुरुआत की थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ऐतिहासिक टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर पहलीं बार 17 अप्रैल 1874 को चली थी ट्रेन

अकाल में राहत कार्य के लिए पहली ट्रेन
दरअसल इन रेल लाइनों की शुरुआत इसलिए की गई थी कि उस दौरान बिहार में भीषण अकाल पड़ा था. दरभंगा राज ने राहत कार्य चलाने के लिए और दाने-दाने को मोहताज मजदूरों को रोजगार दिलाने के लिए अंग्रेजों के साथ मिलकर रेल लाइन बिछाई थी. यह रेल लाइन सबसे पहले बरौनी के बाजितपुर से दरभंगा के लिए बिछाई गई थी और इस पर पहली बार मालगाड़ी चली थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
तिरहुत रेल के सलून के बाहर का दृश्य

मोकामा से लेकर दरभंगा तक रेल लाइन
महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी तिरहुत रेलवे बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया. महाराजा ने इसके लिए अपनी जमीन तक तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और 1 हजार मजदूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक रेल लाइन बिछाई थी.

Darbhanga raj Historical railway terminal
कई हस्तियों ने किया सफर

महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह का बड़ा योगदान
उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक आज हम जिस रेल रूट पर यात्रा करते हैं उस पर सबसे पहले रेल लाइन बिछाने में महाराजा का बड़ा योगदान है. महाराजा की कंपनी तिरहुत रेलवे ने 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की थी. इनमें दलसिंहसराय से समस्तीपुर, समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर से मोतिहारी, मोतिहारी से बेतिया, दरभंगा से सीतामढ़ी, हाजीपुर से बछवाड़ा, सकरी से जयनगर, नरकटियागंज से बगहा और समस्तीपुर से खगड़िया रेल लाइन प्रमुख रूप से गिनी जाती हैं.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ईटीवी भारत GFX

शान-ओ-शौकत का प्रतीक पैलेस ऑन व्हील
उस जमाने में महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील के नाम से एक ट्रेन भी चलाई थी जो आज के पैलेस ऑन व्हील से ज्यादा ठाट-बाट वाली ट्रेन थी. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें और पलंग थे. इसमें बैठकर देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था.

Darbhanga raj Historical railway terminal
ऐतिहासिक टर्मिनल के अवशेष तक नहीं बचे हैं

'ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल रेलवे प्लेटफार्म का संरक्षण बेहद जरूरी है. दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह अपने आखिरी सफर पर इसी प्लेटफॉर्म पर अपनी ट्रेन से उतरे थे. इस ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. यह एक ऐतिहासिक विरासत है जिसे सरकार, प्रशासन और विश्वविद्यालय को मिलकर संरक्षित करना चाहिए ताकि नई पीढ़ी इसके बारे में जान सके.'- श्रुतिकर झा,सीईओ, महाराजाधिराज कल्याणी फाउंडेशन

Darbhanga raj Historical railway terminal
महाराजा ने पैलेस ऑन व्हील के नाम से एक ट्रेन भी चलाई थी

कई हस्तियों ने किया सफर
पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, इंदिरा गांधी, कई रियासतों के राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारियों ने इसका सफर किया था. यहां तक कि महात्मा गांधी भी पैलेस ऑन व्हील के बजाए एक सामान्य यात्री ट्रेन पर सवार होकर दरभंगा पहुंचे थे. महाराजा की पैलेस ऑन व्हील ट्रेन उनकी मृत्यु के पहले अर्थात 1962 तक नरगौना टर्मिनल पर आती-जाती थी.

'दरभंगा राज का बिहार में रेलवे के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइनें बिछाने के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दे दी थी. दरअसल उस जमाने में बिहार में भीषण अकाल पड़ा था और लोग दाने-दाने के लिए मोहताज थे. महाराजा ने इसी को देखते हुए मजदूरों को रोजगार देने, राहत कार्य चलाने और उत्तर बिहार के औद्योगिकीकरण के लिए रेल लाइन बिछाई थी, ताकि मुसीबत में पड़े लोगों की तेजी से लोगों की मदद की जा सके.'- संतोष कुमार, सीनेटर, एलएनएमयू

Darbhanga raj Historical railway terminal
दरभंगा टर्मिनल रेलवे स्टेशन को जीर्णोद्धार की जरुरत

प्लेटफॉर्म के जीर्णोधार की जरुरत
महाराजा की मृत्यु के बाद 1972 में नरगौना परिसर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में आ गया. उसके बाद इस रेलवे प्लेटफार्म के बुरे दिन शुरू हो गए. आज की तारीख में ये ऐतिहासिक रेलवे प्लेटफॉर्म पूरी तरह से मिटने के कगार पर पहुंच चुका है.

यह भी पढ़ें- दरभंगा राज ने उत्तर बिहार में बिछाई थी रेलवे लाइनों का जा

Last Updated : Apr 6, 2021, 4:06 PM IST
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