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सिर्फ नाम का एग्रीकल्चर स्कूल, कोर्स पढ़ाते हैं विज्ञान के टीचर, 6 साल से नियुक्ति नहीं - आईएससी एजी की पढ़ाई

हनुमाननगर ब्लॉक के प्लस टू कोलहंटा-पटोरी स्कूल का हाल बेहाल है. 33 एकड़ की जमीन पर बने स्कूल के एक कोने में शौचालय बनाना भी जरूरी नहीं समझा गया. वहीं आज तक यहां कृषि शिक्षकों की नियुक्ति भी नहीं हो सकी है.

स्कूलकोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.
स्कूलकोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.
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Published : Apr 13, 2021, 12:59 PM IST

Updated : Apr 13, 2021, 1:09 PM IST

दरभंगा: बिहार में सरकारी स्तर पर दी जाने वाली शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है. खासतौर पर यहां व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है. इसका एक उदाहरण देखना हो तो दरभंगा जिले के हनुमाननगर ब्लॉक के प्लस टू कोलहंटा-पटोरी स्कूल में देखा जा सकता है. यह बिहार के उन 13 स्कूलों में शामिल है, जहां वर्ष 2015 से इंटर स्तर पर कृषि विज्ञान अर्थात आईएससी एजी की पढ़ाई होती है. यह जिले का इकलौता स्कूल है, जहां इंटर में कृषि की पढ़ाई होती है. लेकिन आज तक यहां कृषि विज्ञान के शिक्षक की नियुक्ति ही नहीं हुई है. पिछले 6 साल से यह कोर्स लगातार बिना शिक्षक के चल रहा है. हर साल यहां छात्र नामांकन लेते हैं और यहां से पास होकर कृषि की डिग्री लेकर जाते हैं.

शिक्षा की स्थिति खराब.
शिक्षा की स्थिति खराब.
  • राजकीय उच्च विद्यालय तुर्की, मुजफ्फरपुर
  • त्रिभुवन उच्च विद्यालय नौबतपुर, पटना
  • उच्च विद्यालय भगवानपुर रत्ती, वैशाली
  • उच्च विद्यालय कुमार बाग, बेतिया
  • उच्च विद्यालय कोलहंटा पटोरी, दरभंगा
  • उच्च विद्यालय वीरपुर, सुपौल
  • उच्च विद्यालय श्रीनगर, पूर्णिया
  • उच्च विद्यालय कोढ़ा, कटिहार
  • उच्च विद्यालय लथलथ, जमुई
  • उच्च विद्यालय हवेली खड़गपुर, मुंगेर
  • उच्च विद्यालय जेठियन, गया
  • आरएसबी इंटर विद्यालय समस्तीपुर
  • गुदर जगदेव उच्च माध्यमिक विद्यालय, सोनौर सुल्तान, शिवहर

अभी तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में फिलहाल प्लस टू लेवल पर एग्रीकल्चर की पढ़ाई हो रही है. बिहार में इंटर लेवल पर एग्रीकल्चर की पढ़ाई शुरु होने के बाद उम्मीद है कि कृषि क्षेत्र को खासा फायदा मिलेगा.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल.

इसे भी पढ़ें: बेतिया: 10 वर्षों में भी नहीं बना स्कूल, पेड़ के नीचे बच्चे करते हैं पढ़ाई

60 सीटों पर होता था नामांकन
बता दें कि 2015 से 2018 तक यहां 60 सीटों पर नामांकन होता था. लेकिन 2018 के बाद यहां 40 सीटों पर नामांकन होने लगा. इस स्कूल में बिहार का कोई भी छात्र नामांकन ले सकता है. नामांकन की प्रक्रिया ऑनलाइन है. यहां कृषि विज्ञान के 2 शिक्षकों के पद स्वीकृत है, लेकिन नियुक्ति नहीं होने की वजह से यहां सामान्य शिक्षक कृषि पढ़ाने की खानापूर्ति करते हैं. बच्चे हर साल डिग्री लेकर निकलते हैं. इस स्कूल में कृषि विज्ञान का पाठ्यक्रम व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर मजाक तो है ही, वहीं साथ ही यह स्कूल कृषि विज्ञान की डिग्री बांटने का एक केंद्र बनकर रह गया है. कृषि विज्ञान के छात्रों लिए जो लैब बनाया गया था वह भी बेकार पड़ा है. क्योंकि लैब की देखभाल करने वाले टेक्नीशियन ही नहीं है.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.

बगैर शौचालय और पानी के स्कूल संचालन
यह जिले के सबसे बड़े रकबे वाले स्कूलों में से एक है. यह स्कूल 33 एकड़ की जमीन पर है, लेकिन आज तक स्कूल की बाउंड्री तक नहीं बन सका है. स्कूल में ढंग का शौचालय और पानी की व्यवस्था भी नहीं है. जिसकी वजह से छात्राओं और महिला शिक्षकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.
33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.

2015 में शुरू की गई थी पढ़ाई
ईटीवी भारत की टीम ने जब स्कूल में पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया तो जमीन हकीकत का पता लग सका. प्लस टू कोलहंटा-पटोरी स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य हेमंत कुमार ने कहा कि सरकार के विशेष आदेश से वर्ष 2015 में स्कूल में इंटर स्तर पर कृषि विज्ञान की पढ़ाई शुरू हुई थी. उन्होंने कहा कि तब सरकार की ओर से यह आश्वासन मिला था कि जल्द ही यहां दो कृषि शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी. लेकिन आज तक कृषि शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो सकी है. उन्होंने बताया कि विज्ञान के जो शिक्षक हैं वहीं कृषि भी पढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि उच्च स्तरीय बैठकों में वे सरकार से बार-बार इस स्कूल में कृषि विज्ञान के शिक्षकों की बहाली की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब तक बहाली नहीं हो सकी है.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: बेतिया: स्कूल में फैली अव्यवस्था के खिलाफ छात्रों में गुस्सा, मेन गेट पर जड़ा ताला

कृषि शिक्षकों की नियुक्ति की मांग
स्कूल की एक छात्रा हेमत परवीन ने कहा कि यहां इंटर में कृषि विज्ञान की पढ़ाई तो होती है, लेकिन कृषि विज्ञान के शिक्षक नहीं होने की वजह से विज्ञान के शिक्षक ही कृषि भी पढ़ाते हैं. उसने कहा कि इसकी वजह से यहां क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पाता है. छात्र-छात्राएं बस कृषि की डिग्री लेकर यहां से हर साल निकल जाते हैं. छात्रा ने कहा कि सरकार को इस विद्यालय में कृषि शिक्षकों की जल्द नियुक्ति करनी चाहिए.

बगैर शिक्षक के स्कूल.
बगैर शिक्षक के स्कूल.

छात्राएं और शिक्षिका होती हैं पेरशान
स्कूल की एक शिक्षिका निधि रानी ने कहा कि वे यहां पिछले 15 साल से नियुक्त हैं. स्कूल परिसर में ढंग का न तो कोई शौचालय बनाया गया और न ही यहां पानी की व्यवस्था की गई है. इसकी वजह से छात्राओं और महिला शिक्षकों को काफी परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि यहां अधिकारी और जनप्रतिनिधि आकर आश्वासन तो दे जाते हैं लेकिन ये आश्वासन कभी पूरा नहीं हो पाता है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस परेशानी को दूर करना चाहिए.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल.

ग्रामीणों ने दान दिया था जमीन
स्थानीय रणविजय शांडिल्य ने कहा कि ग्रामीणों की ओर से दान दी गई 33 एकड़ जमीन पर यह स्कूल बना है. यहां इंटर में कृषि विज्ञान की पढ़ाई शुरू हुई तो लोगों में काफी खुशी था. क्योंकि ग्रामीण स्तर के छात्र कृषि विज्ञान की पढ़ाई से बेहतर भविष्य बना सकते हैं. लेकिन आज तक यहां कृषि विज्ञान के शिक्षकों की नियुक्ति ही नहीं हुई तो समझा जा सकता है कि पढ़ाई क्या होती होगी? जो छात्र यहां से डिग्री लेकर जाते हैं उनका क्या भविष्य होता होगा? इसका भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है. उन्होंने सरकार से यहां जल्द शिक्षकों की नियुक्ति करने की मांग की है.

शिक्षकों की नियुक्ति के लिए लिखेंगे पत्र
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने दरभंगा प्रमंडल के क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक सत्येंद्र झा से बात की तो उन्होंने स्वीकार किया है कि विद्यालय में कृषि विज्ञान के शिक्षक नहीं होने की वजह से वहां गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से छात्र बेहतर कैरियर नहीं बना पाते होंगे. उन्होंने कहा कि वे जल्द ही शिक्षा विभाग और सरकार को इस स्कूल में कृषि शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए पत्र लिखेंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही विद्यालय में कृषि शिक्षकों की नियुक्ति होगी और इस समस्या का समाधान हो जाएगा.

33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.
33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.

दरभंगा: बिहार में सरकारी स्तर पर दी जाने वाली शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है. खासतौर पर यहां व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है. इसका एक उदाहरण देखना हो तो दरभंगा जिले के हनुमाननगर ब्लॉक के प्लस टू कोलहंटा-पटोरी स्कूल में देखा जा सकता है. यह बिहार के उन 13 स्कूलों में शामिल है, जहां वर्ष 2015 से इंटर स्तर पर कृषि विज्ञान अर्थात आईएससी एजी की पढ़ाई होती है. यह जिले का इकलौता स्कूल है, जहां इंटर में कृषि की पढ़ाई होती है. लेकिन आज तक यहां कृषि विज्ञान के शिक्षक की नियुक्ति ही नहीं हुई है. पिछले 6 साल से यह कोर्स लगातार बिना शिक्षक के चल रहा है. हर साल यहां छात्र नामांकन लेते हैं और यहां से पास होकर कृषि की डिग्री लेकर जाते हैं.

शिक्षा की स्थिति खराब.
शिक्षा की स्थिति खराब.
  • राजकीय उच्च विद्यालय तुर्की, मुजफ्फरपुर
  • त्रिभुवन उच्च विद्यालय नौबतपुर, पटना
  • उच्च विद्यालय भगवानपुर रत्ती, वैशाली
  • उच्च विद्यालय कुमार बाग, बेतिया
  • उच्च विद्यालय कोलहंटा पटोरी, दरभंगा
  • उच्च विद्यालय वीरपुर, सुपौल
  • उच्च विद्यालय श्रीनगर, पूर्णिया
  • उच्च विद्यालय कोढ़ा, कटिहार
  • उच्च विद्यालय लथलथ, जमुई
  • उच्च विद्यालय हवेली खड़गपुर, मुंगेर
  • उच्च विद्यालय जेठियन, गया
  • आरएसबी इंटर विद्यालय समस्तीपुर
  • गुदर जगदेव उच्च माध्यमिक विद्यालय, सोनौर सुल्तान, शिवहर

अभी तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में फिलहाल प्लस टू लेवल पर एग्रीकल्चर की पढ़ाई हो रही है. बिहार में इंटर लेवल पर एग्रीकल्चर की पढ़ाई शुरु होने के बाद उम्मीद है कि कृषि क्षेत्र को खासा फायदा मिलेगा.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल.

इसे भी पढ़ें: बेतिया: 10 वर्षों में भी नहीं बना स्कूल, पेड़ के नीचे बच्चे करते हैं पढ़ाई

60 सीटों पर होता था नामांकन
बता दें कि 2015 से 2018 तक यहां 60 सीटों पर नामांकन होता था. लेकिन 2018 के बाद यहां 40 सीटों पर नामांकन होने लगा. इस स्कूल में बिहार का कोई भी छात्र नामांकन ले सकता है. नामांकन की प्रक्रिया ऑनलाइन है. यहां कृषि विज्ञान के 2 शिक्षकों के पद स्वीकृत है, लेकिन नियुक्ति नहीं होने की वजह से यहां सामान्य शिक्षक कृषि पढ़ाने की खानापूर्ति करते हैं. बच्चे हर साल डिग्री लेकर निकलते हैं. इस स्कूल में कृषि विज्ञान का पाठ्यक्रम व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर मजाक तो है ही, वहीं साथ ही यह स्कूल कृषि विज्ञान की डिग्री बांटने का एक केंद्र बनकर रह गया है. कृषि विज्ञान के छात्रों लिए जो लैब बनाया गया था वह भी बेकार पड़ा है. क्योंकि लैब की देखभाल करने वाले टेक्नीशियन ही नहीं है.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल की स्थिति दयनीय.

बगैर शौचालय और पानी के स्कूल संचालन
यह जिले के सबसे बड़े रकबे वाले स्कूलों में से एक है. यह स्कूल 33 एकड़ की जमीन पर है, लेकिन आज तक स्कूल की बाउंड्री तक नहीं बन सका है. स्कूल में ढंग का शौचालय और पानी की व्यवस्था भी नहीं है. जिसकी वजह से छात्राओं और महिला शिक्षकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.
33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.

2015 में शुरू की गई थी पढ़ाई
ईटीवी भारत की टीम ने जब स्कूल में पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया तो जमीन हकीकत का पता लग सका. प्लस टू कोलहंटा-पटोरी स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य हेमंत कुमार ने कहा कि सरकार के विशेष आदेश से वर्ष 2015 में स्कूल में इंटर स्तर पर कृषि विज्ञान की पढ़ाई शुरू हुई थी. उन्होंने कहा कि तब सरकार की ओर से यह आश्वासन मिला था कि जल्द ही यहां दो कृषि शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी. लेकिन आज तक कृषि शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो सकी है. उन्होंने बताया कि विज्ञान के जो शिक्षक हैं वहीं कृषि भी पढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि उच्च स्तरीय बैठकों में वे सरकार से बार-बार इस स्कूल में कृषि विज्ञान के शिक्षकों की बहाली की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब तक बहाली नहीं हो सकी है.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: बेतिया: स्कूल में फैली अव्यवस्था के खिलाफ छात्रों में गुस्सा, मेन गेट पर जड़ा ताला

कृषि शिक्षकों की नियुक्ति की मांग
स्कूल की एक छात्रा हेमत परवीन ने कहा कि यहां इंटर में कृषि विज्ञान की पढ़ाई तो होती है, लेकिन कृषि विज्ञान के शिक्षक नहीं होने की वजह से विज्ञान के शिक्षक ही कृषि भी पढ़ाते हैं. उसने कहा कि इसकी वजह से यहां क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पाता है. छात्र-छात्राएं बस कृषि की डिग्री लेकर यहां से हर साल निकल जाते हैं. छात्रा ने कहा कि सरकार को इस विद्यालय में कृषि शिक्षकों की जल्द नियुक्ति करनी चाहिए.

बगैर शिक्षक के स्कूल.
बगैर शिक्षक के स्कूल.

छात्राएं और शिक्षिका होती हैं पेरशान
स्कूल की एक शिक्षिका निधि रानी ने कहा कि वे यहां पिछले 15 साल से नियुक्त हैं. स्कूल परिसर में ढंग का न तो कोई शौचालय बनाया गया और न ही यहां पानी की व्यवस्था की गई है. इसकी वजह से छात्राओं और महिला शिक्षकों को काफी परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि यहां अधिकारी और जनप्रतिनिधि आकर आश्वासन तो दे जाते हैं लेकिन ये आश्वासन कभी पूरा नहीं हो पाता है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस परेशानी को दूर करना चाहिए.

कोलहंटा-पटोरी स्कूल.
कोलहंटा-पटोरी स्कूल.

ग्रामीणों ने दान दिया था जमीन
स्थानीय रणविजय शांडिल्य ने कहा कि ग्रामीणों की ओर से दान दी गई 33 एकड़ जमीन पर यह स्कूल बना है. यहां इंटर में कृषि विज्ञान की पढ़ाई शुरू हुई तो लोगों में काफी खुशी था. क्योंकि ग्रामीण स्तर के छात्र कृषि विज्ञान की पढ़ाई से बेहतर भविष्य बना सकते हैं. लेकिन आज तक यहां कृषि विज्ञान के शिक्षकों की नियुक्ति ही नहीं हुई तो समझा जा सकता है कि पढ़ाई क्या होती होगी? जो छात्र यहां से डिग्री लेकर जाते हैं उनका क्या भविष्य होता होगा? इसका भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है. उन्होंने सरकार से यहां जल्द शिक्षकों की नियुक्ति करने की मांग की है.

शिक्षकों की नियुक्ति के लिए लिखेंगे पत्र
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने दरभंगा प्रमंडल के क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक सत्येंद्र झा से बात की तो उन्होंने स्वीकार किया है कि विद्यालय में कृषि विज्ञान के शिक्षक नहीं होने की वजह से वहां गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से छात्र बेहतर कैरियर नहीं बना पाते होंगे. उन्होंने कहा कि वे जल्द ही शिक्षा विभाग और सरकार को इस स्कूल में कृषि शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए पत्र लिखेंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही विद्यालय में कृषि शिक्षकों की नियुक्ति होगी और इस समस्या का समाधान हो जाएगा.

33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.
33 एकड़ में बनाया गया स्कूल.
Last Updated : Apr 13, 2021, 1:09 PM IST
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