बक्सर: त्रेतायुग से चली आ रही पंचकोशी परिक्रमा यात्रा के दूसरे पड़ाव में श्रद्धालु रविवार को नारद मुन्नी के आश्रम नदाव में पहुंचे थे. पूजा अर्चना के बाद लोगों ने खिचड़ी का भोग लगाया. इस दौरान नदांव गांव में नारद सरोवर पर लगे मेले को देखने पहुंचे युवकों के दो गुटों में देर शाम जमकर मारपीट हो गई. जिससे मेले में अफरातफरी मच गई. इस दौरान मेला समिति के सदस्यों के साथ स्थानीय लोगों ने बीच बचाव कर युवकों के दोनों गुटों को वहां से खदेड़ दिया. मेले में प्रशासन की बदइंतजामी को लेकर लोगों मे खासी नाराजगी देखने को मिली.
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?: स्थानीय सरपंच मनोज दूबे ने बताया कि त्रेतायुग से ही यह परंपरा चली आ रही है. अगहन मास में शुरू होनी वाली विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा यात्रा के दूसरे पड़ाव में हजारों श्रद्धालुओं के साथ आसपास के गांव हजारों लोग मेला देखने के लिए आते हैं. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक साल मजिस्ट्रेट के साथ ही साथ भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया जाता है लेकिन इस बार प्रशासन के द्वारा लोगों की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं किया गया था.
"देर शाम युवकों के दो गुट आपस मे भिड़ गए. पुलिस और मजिस्ट्रेट का कोई अता-पता नही था. स्थानीय लोग किसी तरह से मामले को संभाला, अन्यथा कोई अनहोनी हो जाती. प्रशासन की लापरवाही साफ देखी जा रही है"- मनोज दुबे, सरपंच
पंचकोशी परिक्रमा यात्रा की पौराणिक मान्यता: कहते हैं कि त्रेता युग में जब राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया तो महर्षि विश्वामित्र अयोध्या से प्रभु श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण को लेकर बक्सर पहुंचे. जहां श्रीराम ने तड़का, सुबाहु, मारीच आदि राक्षसों का वध करने के बाद नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए उत्तरायणी गंगा के तट रामरेखा घाट पर स्नान कर पांच कोष की यात्रा की थी, जिसे पंचकोशी परिक्रमा यात्रा के नाम से आज भी जाना जाता है. यह परंपरा त्रेता युग से ही चलती आ रही है.
लिट्टी-चोखा के भोग के साथ यात्रा का समापन: अगहन मास में शुरू होने वाली इस यात्रा के पहले पड़ाव में श्रद्धालु अहिल्या की उद्धार स्थली अहिरौली, दूसरे पड़ाव में नारद मुनि के आश्रम नदाव, तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, यात्रा के चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम उनवास एवं पांचवे और अंतिम पड़ाव में विश्वामित्र के आश्रम बक्सर के चरित्रवान में पहुंचकर लिट्टी-चोखा का भोग लगाने के साथ ही इस यात्रा की समापन करते हैं.
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