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औरंगाबाद : बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन कर बेरोजगार युवा बने आत्मनिर्भर

औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड निवासी रवि मिश्रा और तीन दोस्तों ने आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से सीमेंटेड बायोफ्लॉक के जरिए मछली पालन की योजना बनाई. साथ ही आपस में पैसे इकट्ठा कर मछली पालन की शुरुआत की.

औरंगाबाद
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Published : Aug 4, 2020, 8:53 AM IST

औरंगाबाद: कोरोना काल में देश भर के लाखों मजदूरों ने घर वापसी की. इस दौरान सभी वर्ग के कर्मचारी समान रूप से प्रभावित हुए. इसी क्रम में जिले के कुटुंबा प्रखंड निवासी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे बेरोजगार युवकों ने अनोखी पहल की. स्थानीय युवकों ने सीमेंटेड बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन सम्मानजनक कमाई कर रहे हैं. साथ ही इस प्रोजेक्ट का विस्तार करते हुए युवकों ने बायो फ्लॉक की संख्या बढ़ाकर बड़े स्तर पर मछली उत्पादन करने का योजना भी बनाया है.

औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड निवासी रवि मिश्रा और तीन दोस्तों ने आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से सीमेंटेड बायोफ्लॉक के जरिए मछली पालन की योजना बनाई. साथ ही आपस में पैसे इकट्ठा कर मछली पालन की शुरुआत की. मछली पालन कर रहे रवि पांडे ने बताया कि वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वरोजगार करने का निर्णय लिया.

औरंगाबाद
रवि पांडेय द्वारा निर्मित बायोफ्लॉक टैंक

'नौजवानों को इससे जोड़ने की योजना'
रवि पांडे ने आगे बताया कि इस विधि द्वारा मछली पालन करके साल में चार बार मछली उत्पादन कर सकते हैं. इस काम में काफी आनंद आ रहा है. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाकर क्षेत्र के नौजवानों को इससे जोड़ने की योजना है. हालांकि, रवि ने सरकारी मदद नहीं मिलने पर निराशा जताते हुए कहा कि हमें सरकारी मदद मिलती तो जल्दी ही हम इस काम में पारंगत हो जाते साथ ही प्रोजेक्ट को विस्तारित रूप देने परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बायोफ्लॉक देता है कम जगह में ज्यादा उत्पादन'
वहीं जिला मत्स्य पदाधिकारी शिव शंकर चौधरी ने बताया कि सीमेंटेड टैंक में मछली पालन करने से कम जगह में ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है. इसे बायोफ्लॉक सिस्टम कहा जाता है. जिसके तहत मछली पालक टैंक के भीतर ऑक्सीजन की नालियां लगाकर रखते हैं. इससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम नहीं होती है. साथ ही इसमें टेंपरेचर के साथ ही कई अन्य तरह की सुरक्षाओं का समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है. इन सभी जांचों के लिए भी मशीन की आवश्यकता होती है. जांच के आधार पर कृत्रिम रूप से मछलियों को अनुकूल परिस्थिति उपलब्ध कराई जाती है.

औरंगाबाद
मछली पालन की शुरुआत करने वाले युवा

'कम जगह में ही अच्छा मुनाफा'

  • शिव शंकर चौधरी ने आगे बताया कि इसके लिए भी सरकार द्वारा सब्सिडी की व्यवस्था की गई है. इसमें चुने हुए मछली पालकों को सब्सिडी का भी प्रावधान है. साथ ही श्री चौधरी ने कहा कि बायोफ्लॉक विधि एक इजराइली तकनीक है. जिससे मछली पालक तालाब खोदने से बच जाते हैं. साथ ही कम जगह में ही अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं.

औरंगाबाद: कोरोना काल में देश भर के लाखों मजदूरों ने घर वापसी की. इस दौरान सभी वर्ग के कर्मचारी समान रूप से प्रभावित हुए. इसी क्रम में जिले के कुटुंबा प्रखंड निवासी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे बेरोजगार युवकों ने अनोखी पहल की. स्थानीय युवकों ने सीमेंटेड बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन सम्मानजनक कमाई कर रहे हैं. साथ ही इस प्रोजेक्ट का विस्तार करते हुए युवकों ने बायो फ्लॉक की संख्या बढ़ाकर बड़े स्तर पर मछली उत्पादन करने का योजना भी बनाया है.

औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड निवासी रवि मिश्रा और तीन दोस्तों ने आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से सीमेंटेड बायोफ्लॉक के जरिए मछली पालन की योजना बनाई. साथ ही आपस में पैसे इकट्ठा कर मछली पालन की शुरुआत की. मछली पालन कर रहे रवि पांडे ने बताया कि वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वरोजगार करने का निर्णय लिया.

औरंगाबाद
रवि पांडेय द्वारा निर्मित बायोफ्लॉक टैंक

'नौजवानों को इससे जोड़ने की योजना'
रवि पांडे ने आगे बताया कि इस विधि द्वारा मछली पालन करके साल में चार बार मछली उत्पादन कर सकते हैं. इस काम में काफी आनंद आ रहा है. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाकर क्षेत्र के नौजवानों को इससे जोड़ने की योजना है. हालांकि, रवि ने सरकारी मदद नहीं मिलने पर निराशा जताते हुए कहा कि हमें सरकारी मदद मिलती तो जल्दी ही हम इस काम में पारंगत हो जाते साथ ही प्रोजेक्ट को विस्तारित रूप देने परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बायोफ्लॉक देता है कम जगह में ज्यादा उत्पादन'
वहीं जिला मत्स्य पदाधिकारी शिव शंकर चौधरी ने बताया कि सीमेंटेड टैंक में मछली पालन करने से कम जगह में ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है. इसे बायोफ्लॉक सिस्टम कहा जाता है. जिसके तहत मछली पालक टैंक के भीतर ऑक्सीजन की नालियां लगाकर रखते हैं. इससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम नहीं होती है. साथ ही इसमें टेंपरेचर के साथ ही कई अन्य तरह की सुरक्षाओं का समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है. इन सभी जांचों के लिए भी मशीन की आवश्यकता होती है. जांच के आधार पर कृत्रिम रूप से मछलियों को अनुकूल परिस्थिति उपलब्ध कराई जाती है.

औरंगाबाद
मछली पालन की शुरुआत करने वाले युवा

'कम जगह में ही अच्छा मुनाफा'

  • शिव शंकर चौधरी ने आगे बताया कि इसके लिए भी सरकार द्वारा सब्सिडी की व्यवस्था की गई है. इसमें चुने हुए मछली पालकों को सब्सिडी का भी प्रावधान है. साथ ही श्री चौधरी ने कहा कि बायोफ्लॉक विधि एक इजराइली तकनीक है. जिससे मछली पालक तालाब खोदने से बच जाते हैं. साथ ही कम जगह में ही अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं.
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