भोजपुर: आदर्श ग्राम (Adarsh Gram) नाम सुनते ही ऐसा लगता है जैसे गांव सारी सुविधाओं से परिपूर्ण होगा. लेकिन वास्तविक सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है. आदर्श ग्राम में आज भी सुविधाओं का टोटा है. भोजपुर के उदवंतनगर प्रखंड अंतर्गत सखुआ गांव की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है. ईटीवी भारत की टीम जब इस गांव में पहुंची तो पाया कि यहां नल जल योजना दम तोड़ चुकी है. सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने चार साल पहले सखुआ गांव (Dream Village Of CM) को जो सौगात दी थी वो सब काफूर हो चुका है.
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सखुआ गांव (Sakhua village) में 31 जनवरी 2017 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहुंचे थे. यहां जिले में होने वाले सात निश्चय योजना पार्ट 1 (Saat Nischay Yojana) की शुरुआत हुई थी. मनरेगा के काम को बढ़ावा देना था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आने के पहले सखुआ गांव को एक आदर्श ग्राम के रुप में जिला के आला अधिकारियों ने स्थनीय मुखिया के साथ मिलकर सथापित कर दिया था.
'जनप्रतिनिधि और सरकार को जो योजना देना था वह दिया गया. इसका संरक्षण करना गांव के लोगों का काम था. शरारती लोगों के द्वारा इसे तहस-नहस कर दिया गया. अब पार्क में कुछ बचा नहीं देखने के लिए.'-जितेंद्र सिंह, ग्रामीण
हर घर मे शौचालय का निर्माण कराया गया था. गांव में दो वार्ड हैं दोनो वार्डो में नल-जल योजना के तहत टंकी और मोटर लगा कर हर घर तक नल का जल पहुंचाया गया था. लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस गांव से निकले वैसे ही धीरे-धीरे गांव में सारी योजनाए दम तोड़नी लगी. और आज हालात ये हैं कि गांव की सारी योजनाएं दम तोड़ चुकी हैं.
'बरसात की बात अब छोड़ दीजिए किसी भी सीजन में आप आइए तो इस गांव में सड़क पर कीचड़ मिलेगा. पैदल अपने घर तक सही तरीके से नहीं जा सकते. सड़कों पर नाली का पानी बहता है.'- कुंती देवी,ग्रामीण
4 साल बीत जाने के बाद गांव में शुरू की गई सारी योजनाएं पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है. योजना के तहत सखुआ गांव में 44 लाख 80 हजार रुपये की लागत से व्यापक स्तर पर विकास हुआ था. जिसमें ग्रामीणों को टहलने और बैठने के लिए 7 लाख 12 हजार रुपये लगाकर हर्बल पार्क का निर्माण कराया गया था.
सखुआ गांव को आदर्श ग्राम बनाने के लिए नली-गली बनाए गए लेकिन आज की परिस्थिति ऐसी है कि गांव के अंदर सभी नालियां सड़क पर बहती हैं. गांव में लोगों का चलना मुश्किल हो गया है. नल-जल योजना के लिए सखुआ गांव में 33 लाख 30 हजार रुपये की लागत से वार्ड नम्बर 9 और 10 में पानी टंकी का मीनार बनवा कर टंकी बैठाया गया था. बिजली से चलने वाला मोटर लगाया गया. हर घर तक पाइप लगाकर नल पहुंचाया गया. लेकिन मौजूदा समय मे वार्ड नम्बर 10 की टंकी को आंधी उड़ा ले गया. वार्ड 10 का नल-जल योजना सालो से बंद है. वहीं वार्ड नम्बर नौ में मोटर जल जाने के कारण नल-जल योजना इस वार्ड में भी बंद पड़ा है.
'नीतीश कुमार के आने से पहले गांव में पदाधिकारियों का आने जाने का सिलसिला जारी था. उद्घाटन होने के बाद एक बार भी कोई पदाधिकारी देखने नहीं आया कि योजनाओं का क्या हाल है.'- जय मंगल कुमार, ग्रामीण
हर्बल पार्क बना चर्चा का केन्द्र : सखुआ गाव में मनरेगा द्वारा पहली बार हर्बल पार्क का निर्माण कराया गया, जो विशेष आकर्षण का केन्द्र बना. औषधीय पौधों एंव फूलों से सुसज्जित यह पार्क बड़ी नहर के किनारे बनाया गया था. पार्क में लोगो के तौर पर मुख्यमंत्री के सात निश्चय को रेखांकित किया गया था.
सीएम गांव का निरीक्षण 2017 में गए थे. उसके बाद से जिले का कोई भी अधिकारी इस गांव में दोबारा नहीं आया ना ही योजनाओं की समीक्षा ही की. हर्बल पार्क के लिए 7 लाख 12 हजार, वार्ड 9 और 10 व नल जल योजना के लिए 33 लाख 30 हजार और सूअर के शेड के लिए 4 लाख 37 हजार दिया गया था. गांव की कुल आबादी 4000 है. पार्क बनाने के लिए मनरेगा के तहत मजदूरों को लगाया गया था.काफी समय तक सखुआ गांव का नाम जिले में चर्चा का विषय बना रहा.
आज सखुआ गांव नाम का आदर्श ग्राम है. ग्रामीणों की परेशानी चरम पर है. कोई अधिकारी इस गांव का हाल देखने तक नहीं आता. ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम के सपनों के गांव के इस हाल का जिम्मेदार कौन है. क्यों आजतक किसी भी अधिकारी की इस पर नजर नहीं गई. सीएम के जाते ही लोगों का सपना चकनाचूर हो गया.
आदर्श गांव में उन्नत कृषि व्यवस्था, आवासीय सुविधाएं, पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं, शिक्षा व्यवस्था, परिवहन सविधाएं, संचार सुविधाएं, ऊर्जा एवं पर्यावरण जागरूकता, औद्योगिक विकास और वित्तीय सुविधा होनी चाहिए. तभी एक गांव आदर्श ग्राम कहलाता है. सखुआ गांव को यह सारी सुविधाएं दी गई थी. ग्रामीण इससे बेहद खुश भी थे. लेकिन ग्रामीणों की ये खुशी ज्यादा समय तक नहीं रही. अब यह गांव बुनियादी सुविधाओं के लिए बाट जोह रहा है.