भोजपुरः कोईलवर के सोन नदी पर ब्रिटिश सरकार के बनाए हुए ऐतिहासिक अब्दुलबारी पुल की नींव अब खतरे में है. सही रखरखाव और मरम्मत नहीं होने के कारण पुल की नींव कहे जाने वाले खंभे के कई चबूतरे ध्वस्त हो चुके हैं. इस पुल से रोजाना दर्जनों छोटी-बड़ी ट्रेनें गुजरती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पुल पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.
सालों से नहीं हुई पुल के नींव की मरम्मती
कोईलवर ब्लाक के सोन नदी पर बने इस ऐतिहासिक पुल के लंबे-चौड़े खंभे की स्थिति जर्जर हो गई है. दिल्ली-हावड़ा को जोड़ने वाला यह एकमात्र पुल है. इस रेल सह सड़क मार्ग पर रोजाना हजारों छोटे बड़े वाहनों का आवागमन होता है.वहीं, ऊपरी मंजिल पर दानापुर मंडल के अंतर्गत आने वाले कोइलवर पुल पर अप-डाउन दो रेल लाइनों से रोजाना दर्जनों ट्रेनें गुजरती हैं. दशकों बीत जाने के बाद भी पुल के नींव की मरम्मती पर ध्यान नहीं रखा गया. इसका नतीजा ये हुआ कि आज पुल के चबूतरे पूरी तरह टूटकर बिखर चुके हैं.
जर्जर हो चुके हैं कोईलवर पुल के खंभे
रेलवे के जरिए समय-समय पर पुल की मरम्मती तो कराई जाती है. लेकिन विभागीय कर्मचारियों को पुल के खंभे की जर्जरता दिखाई नहीं देती . वहीं, सोन नदी में हो रहे लगातार बालू उत्खनन के कारण भी लाइफ लाइन के जाने वाले इस पुल को नुकसान पहुंच रहा है. पुल के खंभे को सहारा देने वाले चारों तरफ बने चबूतरे पूरी तरह से टूट कर बिखर चुके हैं. कुछ जानकारों की मानें तो अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस ऐतिहासिक पुल को बड़ा नुकसान हो सकता है.
पटना और आरा के बीच सोन नदी पर 1862 में बना पुल
1857 में देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ और उसके ठीक पांच साल बाद पटना और आरा के बीच सोन नदी पर 1862 में कोईलवर पुल का उद्घाटन हुआ. ये एक रेल सह सड़क पुल है. संभवतः ये देश का सबसे पुराना रेल पुल हो जो 157 साल बाद भी शान से अपनी सेवाएं दे रहा है. नई दिल्ली से कोलकाता जाने वाली कई सुपर फास्ट और राजधानी एक्सप्रेस इस पर से सरपट गुजर जाती है.
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1856 में शुरू हुआ था निर्माण का काम
बता दें कि देश में इसके कई सालों बाद बने कई पुल जर्जर हाल में पहुंच चुके हैं. लेकिन कोईलवर पुल सफल इंजिनियरिंग का अदभुत नमूना है. उन्नीसवीं सदी का ये पुल इक्कीसवीं सदी में भी गर्व से अपनी सेवाएं दे रहा है. 1851 में सोन नदी पर ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने रेल पुल बनाने के लिए सर्वे काराया. 1856 में निर्माण का काम शुरू हो गया. पांच साल बाद 1862 में पुल बनकर तैयार हो गया और उसी साल यह रेल सह सड़क पुल को यातायात के लिए खोल दिया गया.
फिल्म गांधी में दिखाई गई थी इस पुल की झलक
2012 में इस पुल ने शानदार 150 साल पूरा किए. 1,440 मी॰ लंबे इस पुल का उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड एल्गिन ने किया था. इस पुल का डिजाइन जेम्स मिडोज रेनडेल और सर मैथ्यु डिग्बी वाइट ने किया था. रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में इस पुल की छोटी सी झलक देखी जा सकती है. राजधानी पटना से भोजपुर और बक्सर जिले को जोड़ने वाले इस महत्वपूर्ण सड़क पुल पर हमेशा जाम की समस्या बनी रहती है. लगन और पर्व त्योहार के मौके पर तो इस पुल से गुजरना और मुश्किल हो जाता है. कई बार तो यहां सुबह से शाम तक जाम लगा रह जाता है. सोन नदी से बालू के अवैध उत्खनन कर आने जाने वाले ट्रक भी जाम का मुख्य कारण हैं.
कोईलवर पुल के समानांतर बन रहा है छह लेन पुल
हालांकि नीतीश सरकार इस ऐतिहासिक कोईलवर पुल के समानांतर छह लेन पुल का निर्माण करा रही है. जिसके तीन लेन का उद्घाटन जुलाई 2020 में होने की उम्मीद है. 282 करोड़ की लागत से पुल का निर्माण सिंगला कंस्ट्रक्शन कंपनी और पीएनसी इंफ्राटेक के माध्यम से कराया जा रहा है. इस पुल में कुल 72 पिलर होंगे, जिसमें 07 पिलर बन चुका है. इसके निर्माण के बाद कोईलवर सड़क पुल पर जाम की स्थिति से कुछ निजात जरूर मिलेगी.
लोगों ने उठाए पुल के अस्तित्व पर सवाल
अब सवाल ये है कि बिहार सरकार छः लेन पुल का निर्माण तो करा रही है. लेकिन अंग्रेजों के जमाने के बने इस पुल की देखभाल कैसे होगी. स्थानीय लोगों ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि सरकार को इस पुल के टूट रहे पाए के बारे में में सोचना चाहिए . कहीं ऐसा ना हो कि भोजपुर-पटना और हावड़ा-दिल्ली को जोड़ने वाले इस पुल को खतरा बढ़ने के कारण बंद करना पड़े.