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बाढ़ तो आनी ही है... सरकार नहीं 'घरौंदा' पर है भरोसा! पीड़ितों का दर्द सुन आप दहल जाएंगे

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Published : Jun 17, 2021, 10:42 AM IST

भागलपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर सरकारी बगीचे में लोग घरौंदा बना रहे हैं. ताकि बाढ़ के समय वे इन घरौंदों में रहकर खुद को सुरक्षित रह सकें. वहीं, सरकारी राहत सामग्री को लेकर बगडेर निवासियों ने कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार की उचित सहायता बाढ़ के समय नहीं मिलती हैं.

भागलपुर
भागलपुर

भागलपुर: बिहार के लिए बाढ़ (Flood In Bihar ) हमेशा से काल साबित हुई है. सरकारी महकमे की उदासीनता के कारण अब लोग इसके साथ जीना सीख चुके हैं. बाढ़ आने से पहले ही वे उससे निपटने की तैयारी करने में लग जाते हैं. ऐसा ही एक तस्वीर भागलपुर शहर ( Bhagalpur City ) से 15 किलोमीटर दूर सबौर में देखने को मिली है. जहां बगडेर बगीचा के निवासी घरौंदा बनाने में जुट गए हैं. यह घरौंदा उन्होंने पक्षियों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए बनाया है. ताकि बाढ़ के समय वे इन बने घरौंदों पर रह कर अपनी जान बचा सकें.

बगडेर निवासी अखिलेश कुमार कहना है कि हर वर्ष यह पूरा इलाका बाढ़ की चपेट में आ जाता है. उस दौरान हम लोग पेड़ के ऊपर में मचान बनाकर रहते हैं, लेकिन कोई सरकारी राहत सामग्री (Government Relief Material) हम लोगों के लिए नहीं भेजी जाती हैं. एक दो बार पूर्व में सरकारी सामग्री मिली थी, लेकिन वह काफी नहीं था.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: Gopalganj Flood: बाढ़ के पानी से दो माह पहले बनी सड़क ध्वस्त, 15 गांवों के लोगों का आवागमन ठप

2016 में आयी थी भयानक बाढ़
2016 में आयी भयानक बाढ़ में बगडेर निवासियों ने जान बचाने के लिए घरौंदा बनाया था. जिस कारण उन्हें 'बगडेर का पंछी' कहा जाने लगा. उसके बाद से सरकारी उदासीनता के कारण वे हर साल बाढ़ से पहले ऐसे ही घरौंदे बनाते हैं, ताकि मानसून व बाढ़ के वक्त जब इन इलाकों में 10 फीट तक पानी पहुंच जाता है, तो वे किसी तरह अपनी जान बचा सकें.

घरौंदे बनाने लगे बगडेर निवासी
हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलने वाले बगडेर के पंछी पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं. उन्होंने इस बार उन्होंने अपनी झोपड़ी अलग तरीके की बनाई है. झोपड़ी का ऊपरी भाग कोणनुमा छप्पर न होकर छत की तरह समतल है. उसके ऊपरी छोर पर मचान नुमा छत बनाकर उसके ऊपर में प्लास्टिक का शेड दे दिया गया है. ताकि बाढ़ आने पर आसानी से उस छोटे मचान पर रह सकें.

बगडेर निवासियों का घरौंदा
बगडेर निवासियों का घरौंदा

यह भी पढ़ें: Video: बगहा में बारिश से भारी तबाही, देखिए उफनती नदी की धार में कैसे बहने लगा बोलेरो

बगडेर बगीचा पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं
जिस सड़क को सरकार सुशासन राज का मील का पत्थर मानती है. वह भी इस इलाके में आने से पहले कहीं खत्म हो जाती है. इस गांव जाने के लिए न तो कोई पक्की सड़क है, और न ही कोई कच्ची सड़क. एक छोटी पगडंडी के सहारे चलकर इस इलाके तक पहुंचा जा सकता है. जिस कारण सरकारी सहायता बाढ़ के दिनों में बीच में ही छूट जाती है.

'रजापुरा के रहने वाले हैं हम. 15 साल पहले रजपूरा गंगा में समा गई. तब से यहां आकर बस गये. यहां रहने और खाने की बहुत दिक्कत है. बाढ़ के समय यह परेशानी और बढ़ जाती है'.- मीरा देवी, बगडेर बगीचा

'बाढ़ के समय के सभी चीज की दिक्कत होती है. यहां मचान बना के रहते हैं. पशु-माल को लेकर भी बहुत दिक्कत होता है. सरकारी बाबू सब भी नहीं आया है'.- पाको देवी, बगडेर बगीचा

इलाके तक पहुंचने के लिए नहीं है सड़क
इलाके तक पहुंचने के लिए नहीं है सड़क

रजंदीपुर के मूल निवासी हैं बगडेर की पंछी
बगडेर बगीचा सरकारी है. इसमें रहने वाले कटाव से विस्थापित हैं. यहां अभी 116 परिवार रह रहे हैं. जबकि, अंचल को दिए गए विस्थापित भूमिहीनों की सूची में 350 परिवार के नाम हैं. वे लोग रजंदीपुर पंचायत के मूल निवासी है. 15 वर्ष पहले मोहदीनगर को गंगा निगल गई, तो ये सभी यहां आकर बस गए. अब सरकार से उम्मीद है कि वह यहीं पर बसा दे. इसी उम्मीद के चलते वे लोग बाढ़ में भी जगह छोड़कर कहीं नहीं जाते. क्योंकि यह जगह छूट जाएगी तो फिर वे लोग कहा जाएंगे.

यह भी पढ़ें: बाढ़ का खतरा: नेपाल में हो रही बारिश से उफनाई नदियां, गंडक खतरे के निशान के करीब

भागलपुर: बिहार के लिए बाढ़ (Flood In Bihar ) हमेशा से काल साबित हुई है. सरकारी महकमे की उदासीनता के कारण अब लोग इसके साथ जीना सीख चुके हैं. बाढ़ आने से पहले ही वे उससे निपटने की तैयारी करने में लग जाते हैं. ऐसा ही एक तस्वीर भागलपुर शहर ( Bhagalpur City ) से 15 किलोमीटर दूर सबौर में देखने को मिली है. जहां बगडेर बगीचा के निवासी घरौंदा बनाने में जुट गए हैं. यह घरौंदा उन्होंने पक्षियों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए बनाया है. ताकि बाढ़ के समय वे इन बने घरौंदों पर रह कर अपनी जान बचा सकें.

बगडेर निवासी अखिलेश कुमार कहना है कि हर वर्ष यह पूरा इलाका बाढ़ की चपेट में आ जाता है. उस दौरान हम लोग पेड़ के ऊपर में मचान बनाकर रहते हैं, लेकिन कोई सरकारी राहत सामग्री (Government Relief Material) हम लोगों के लिए नहीं भेजी जाती हैं. एक दो बार पूर्व में सरकारी सामग्री मिली थी, लेकिन वह काफी नहीं था.

देखें रिपोर्ट

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2016 में आयी थी भयानक बाढ़
2016 में आयी भयानक बाढ़ में बगडेर निवासियों ने जान बचाने के लिए घरौंदा बनाया था. जिस कारण उन्हें 'बगडेर का पंछी' कहा जाने लगा. उसके बाद से सरकारी उदासीनता के कारण वे हर साल बाढ़ से पहले ऐसे ही घरौंदे बनाते हैं, ताकि मानसून व बाढ़ के वक्त जब इन इलाकों में 10 फीट तक पानी पहुंच जाता है, तो वे किसी तरह अपनी जान बचा सकें.

घरौंदे बनाने लगे बगडेर निवासी
हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलने वाले बगडेर के पंछी पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं. उन्होंने इस बार उन्होंने अपनी झोपड़ी अलग तरीके की बनाई है. झोपड़ी का ऊपरी भाग कोणनुमा छप्पर न होकर छत की तरह समतल है. उसके ऊपरी छोर पर मचान नुमा छत बनाकर उसके ऊपर में प्लास्टिक का शेड दे दिया गया है. ताकि बाढ़ आने पर आसानी से उस छोटे मचान पर रह सकें.

बगडेर निवासियों का घरौंदा
बगडेर निवासियों का घरौंदा

यह भी पढ़ें: Video: बगहा में बारिश से भारी तबाही, देखिए उफनती नदी की धार में कैसे बहने लगा बोलेरो

बगडेर बगीचा पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं
जिस सड़क को सरकार सुशासन राज का मील का पत्थर मानती है. वह भी इस इलाके में आने से पहले कहीं खत्म हो जाती है. इस गांव जाने के लिए न तो कोई पक्की सड़क है, और न ही कोई कच्ची सड़क. एक छोटी पगडंडी के सहारे चलकर इस इलाके तक पहुंचा जा सकता है. जिस कारण सरकारी सहायता बाढ़ के दिनों में बीच में ही छूट जाती है.

'रजापुरा के रहने वाले हैं हम. 15 साल पहले रजपूरा गंगा में समा गई. तब से यहां आकर बस गये. यहां रहने और खाने की बहुत दिक्कत है. बाढ़ के समय यह परेशानी और बढ़ जाती है'.- मीरा देवी, बगडेर बगीचा

'बाढ़ के समय के सभी चीज की दिक्कत होती है. यहां मचान बना के रहते हैं. पशु-माल को लेकर भी बहुत दिक्कत होता है. सरकारी बाबू सब भी नहीं आया है'.- पाको देवी, बगडेर बगीचा

इलाके तक पहुंचने के लिए नहीं है सड़क
इलाके तक पहुंचने के लिए नहीं है सड़क

रजंदीपुर के मूल निवासी हैं बगडेर की पंछी
बगडेर बगीचा सरकारी है. इसमें रहने वाले कटाव से विस्थापित हैं. यहां अभी 116 परिवार रह रहे हैं. जबकि, अंचल को दिए गए विस्थापित भूमिहीनों की सूची में 350 परिवार के नाम हैं. वे लोग रजंदीपुर पंचायत के मूल निवासी है. 15 वर्ष पहले मोहदीनगर को गंगा निगल गई, तो ये सभी यहां आकर बस गए. अब सरकार से उम्मीद है कि वह यहीं पर बसा दे. इसी उम्मीद के चलते वे लोग बाढ़ में भी जगह छोड़कर कहीं नहीं जाते. क्योंकि यह जगह छूट जाएगी तो फिर वे लोग कहा जाएंगे.

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