भागलपुर: बिहार सरकार और शिक्षा विभाग भले ही सरकारी स्कूलों (Goverment School In Bihar) में बेहतर शिक्षा देने की बात करें लेकिन स्कूलों में अभी भी कमरों और भवन का अभाव है. अभी भी बिहार के स्कूल और मदरसों में शौचालय और पीने के पानी का अभाव है. यही वजह है कि बच्चे मदरसे और स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं. कुछ ऐसा ही हाल भागलपुर जिले के एक मदरसा (Madrasa In Bhagalpur) में देखने को मिला. इस मदरसे में मात्र दो कमरे हैं. जिसमें कुल 150 बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं. जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मदरसे में पढ़ रहे बच्चों का भविष्य क्या होगा.
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हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर कहलगांव प्रखंड के महिमाचक स्थित कोड संख्या- 910 तजूल उलूम कुरमाटोला मदरसे की. इस मदरसे में संसाधन की बात की जाए, तो यहां पढ़ने वाले बच्चों के लिए न बैठने का टेबल है और न ही कुर्सियों की व्यवस्था है. यहां पढ़ने वाले छात्रों को मदरसा आने से पहले अपने बैठने का इंतजाम भी साथ लेकर आना पड़ता है. यानी घर से सभी छात्र एक बोरी लेकर आते हैं.
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ईटीवी भारत की टीम जब मदरसा पहुंची तो पाया कि दो कमरों के मदरसे में 1 से 8वीं तक के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि बच्चे बहुत कम आए हुए थे. मदरसे में संसाधन के अभाव के कारण छात्र पढ़ने नहीं आते हैं. इस मदरसे में बच्चों ने नामांकन तो करा लिया लेकिन क्लास करने नहीं आते हैं. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों के घर-घर जाकर मदरसा आने के लिए कहते हैं लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को नहीं भेजते हैं.
इसके पीछे की वजह है कि मदरसे में न तो पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय है. जिस दो भवन में बच्चे पढ़ते हैं उसकी भी हालत बद से बदतर है. छत का सीलिंग भी टूट कर गिर रहा है. दीवार का प्लास्टर भी उखड़ गया है. ब्लैक बोर्ड का प्लास्टर निकल रहा है. हल्की सी बारिश होने पर दोनों कमरों में बारिश का पानी जमा हो जाता है. यही वजह है कि अभिभावक अपने बच्चों को नहीं भेजते हैं.
वहीं, जो भी बच्चे मदरसे में पढ़ाई करने आते हैं, वे सभी बरामदे में ही बैठकर पढ़ाई करते हैं. मदरसे के दोनों कमरे में न दरवाजा है और न ही खिड़कियां हैं. हैरानी तो तब हुई जब मदरसे में बिजली का कनेक्शन को दिखा पर पंखा नहीं. यहां पढ़ने वाले बच्चों को गर्मी के मौसम में अधिक परेशानी होती है.
उमस भरी गर्मी में बच्चे बिना पंखे के ही पढ़ाई करते हैं. जब बच्चों को प्यास लगती है, तो मदरसे से सटे घरों में जाकर पानी पीते हैं. इसके साथ ही सभी बच्चे शौचालय खुले में करते हैं. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक और शिक्षिका भी शौचालय और पानी पीने के लिए दर-दर भटकते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे किस तरह से पढ़ाई करते हैं और उनका भविष्य क्या और कैसा होगा.
'जब से मैं यहां पर आए हूं मदरसा की स्थिति इसी तरह बनी हुई है. दो कमरे में कक्षा 1 से 8 तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं. 1 से 8 तक के कक्षा में डेढ़ सौ छात्र-छात्राएं हैं. कमरे की हालत सबके सामने हैं. मदरसे में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है. शौचालय की व्यवस्था नहीं है. दो वर्षों में सिर्फ एक भवन का निर्माण हुआ है. जिसमें मदरसे का दफ्तर चल रहा है.' -मौलवी मोहम्मद जावेद अकरम, मदरसा हेड
जावेद अकरम ने बताया कि बिजली का कनेक्शन है लेकिन पंखा और लाइट की व्यवस्था नहीं मिली है. मदरसे के दोनों कमरों की हालत जर्जर है. इसे लेकर पत्राचार किया गया है लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि एमडीएम भी इस मदरसे में चल रहा था लेकिन कोरोना की वजह से अभी बंद है. उन्होंने कहा कि संसाधन के अभाव में मदरसे में बच्चे पढ़ने नहीं आते हैं. मदरसा के आगे के इलाके में गंदा पानी जमा होता है, जिससे दुर्गंध निकल रहा है. बच्चे उस दुर्गंध के बीच पढ़ाई करते हैं.