भागलपुर: यहां लोकसभा चुनाव को लेकर दूसरे चरण में 18 अप्रैल को मतदान होना है. नामों की घोषणा होने के साथ ही जिले में राजनीतिक तापमान बढ़ गया है. शैलेष मंडल भागलपुर लोक सभा सीट से 2014 में जीत दर्ज कर चुके हैं. उन्होंने बहुत की कम अंतर से बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को हराया था. इस बार शैलेष मंडल उर्फ बुलो मंडल को जेडीयू को अजय मंडल टक्कर देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.
शाहनवाज हुसैन का कटा पत्ता
इस चुनाव में खास बात ये है कि बीजेपी द्वारा जारी किए गए उम्मीदवारों की सूची में कई अहम दावेदारों का टिकट कट गया. इसमें सबसे अहम था बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का भागलपुर से टिकट कटना था. लोगों को उम्मीद थी कि यहां से शाहनवाज एक बार फिर अपनी किस्तम आजमाएंगे, लेकिन सीट बंटवारे में ये सीट जेडीयू के खाते में चली गई. इस बार यहां से जेडीयू के अजय मंडल उम्मीदवार बनाए गए हैं.
पिछले चुनाव का ब्यौरा
2014 में मोदी लहर के बावजूद बुलो मंडल विजयी रहे और उन्हें 3,67,623 वोट मिले. जबकि शाहनवाज हुसैन को 3,58,138 वोट मिले. शाहनवाज हुसैन मात्र कुछ हजार वोटों से हारे थे. उस हार का खामियाजा शाहनवाज को 2019 में उठाना पड़ा..पार्टी ने न सिर्फ भागलपुर से टिकट काटा बल्कि बिहार की किसी भी सीट से उन्हें टिकट नहीं दिया.
मतदाताओं का समीकरण
भागलपुर संसदीय सीट की बात करें तो चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक यहां करीब 14 लाख 33 हजार 346 मतदाता हैं. इनमें 7 लाख 74 हजार 758 पुरुष और 6 लाख 58 हजार 588 महिला मतदाता हैं. इस बार ये मतदाता 2019 के लिए अपने सांसद का चुनाव करेंगे.
शैलेष मंडल की संसदीय गतिविधि
शैलेष मंडल की संसद में हाजिरी 77 प्रतिशत है. हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 80 प्रतिशत है. उन्होंने 50 डिबेट में हिस्सा लिया. डिबेट का राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ा देखें तो यह 64.3 प्रतिशत है. मंडल ने संसद में 59 सवाल पूछे जबकि राष्ट्रीय स्तर पर संसदों का यह आंकड़ा 278 का है. इसके अलावा मंडल ने तीन प्राइवेट मेंबर बिल भी पास कराए हैं.
सांसद निधि के खर्च का ब्यौरा
भागलपुर संसदीय क्षेत्र के लिए 25 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित है. भारत सरकार ने कुल 17.50 करोड़ रुपए जारी किए. ब्याज को मिलाकर यह राशि 19.71 करोड़ रुपए हुई. जबकि सांसद बुलो मंडल ने अपने क्षेत्र के लिए 25.30 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा जिसमें 17.96 करोड़ रुपए पास हुए. इसमें 16.04 करोड़ रुपए खर्च हुए. कुल राशि का 90.25 प्रतिशत हिस्सा खर्च हुआ.
बुलो मंडल की चुनौतियां
इस चुनाव में भागलपुर में मुकाबला 2014 की तुलना में कड़ा होने वाला है. मुकाबले में बुलो मंडल की चुनौतियां कम नहीं हैं. उनके प्रतिद्वंदी अजय मंडल भी उनपर निशाने का एक भी मौका नहीं चूक रहे हैं. उन्होंने तो यहां तक कह दिया मौजूदा सांसद को काम से कोई मतलब नहीं है. साथ ही कहा कि अगर वो जीतकर आते हैं उनकी पहली प्राथमिकता बंद सिंचाई, सड़क, किसान, मजदूर और शिक्षा व्यवस्था होंगी.
भागलपुर की प्रमुख समस्याएं और इस बार के चुनावी मुद्दे
हालांकि चुनाव के समय कागज़ी दावे तो खूब होते हैं, जनप्रतिनिधि चाहे जितने कार्य और उपलब्धियां गिना दें लेकिन जमीनी हकीकत तो वहां की जनता ही बताती है. भागलपुर की जनता का कहना है बीते 20 सालों से यहां विकास का एक भी काम नहीं हुआ है. शिक्षा और सड़क और रोजगार जैसे मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है.
चुनाव में मंडल कार्ड का सहारा
जातीय समीकरण की बात करें तो भागलपुर में गंगोत्री मंडलों की संख्या भारी मात्रा में हैं. राजनीतिक दल भी इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में लगे हैं. मंडल बाहुल्य इलाका होने की वजह से इस जाति का वोट काफी मायने रखता है. इसी कारण नाथनगर के वर्तमान विधायक अजय मंडल को आगे रखकर जदयू भागलपुर में मंडल कार्ड खेलना चाहती है, ताकि राजद के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल को हराया जा सके.
बीजेपी का गढ़ रहा है भागलपुर
हालांकि यह इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता हैं. मतदाता इस बार बीजेपी को सीट नहीं मिलने से काफी नाराज दिख रहे हैं. पिछले 5 साल में बीजेपी के शाहनवाज हुसैन ने पूरे क्षेत्र में अपना दौरा जारी रखा था ताकि बीजेपी की दावेदारी मजबूती से पेश की जा सके, बराबरी के खेल में यह सीट जदयू को चली गई. देखना होगा कि बदलाव के कारण इस चुनाव में स्थानीय जनता की नाराजगी कहीं एनडीए को भारी ना पड़ जाए. हालांकि दोनों ही उम्मीदवारों की दावेदारी कम नहीं है. ऐसे में बाजी कौन मारेगा इसके लिए चुनाव परिणाम का ही इंतजार करना होगा.