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'90 बरस बीत गये लेकिन अब तक किसी ने कुछ नहीं दिया, बस वोट लेने चले आते हैं'

सदर प्रखंड अंतर्गत तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर है. यहां रहने वाले लोग वर्षों से घास फूस की टूटी-फूटी झोपड़ी में सड़क किनारे अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं.

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Published : Apr 5, 2019, 11:40 AM IST

बेगूसराय: पिछड़ों की राजनीति करके बिहार में और देश में कई ऐसे नेता हैं जो सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गये, लेकिन जिले में दलितों की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. चाहे छोटा बच्चा हो या 90 साल का बूढ़ा. इस समुदाय के लोग अभी भी अपने उत्थान के लिए तारणहार की बाट जोह रहे हैं.

तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर
जिला मुख्यालय से सटे सदर प्रखंड अंतर्गत तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर है. यहां रहने वाले लोग वर्षों से घास फूस की टूटी-फूटी झोपड़ी में सड़क किनारे अपना जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. हालत यह है कि धूप हो या बरसात इन्हें हर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

यहां गरीबी चरम पर

आर्थिक तौर पर यहां के लोग अपनी जरूरतों की पूर्ति में अक्षम साबित हो रहे हैं. यहां के लोगों को अभी तक 3 डिसमिल जमीन तक सरकार मुहैया नहीं करा पाई है, वैसे में इंदिरा आवास हो या अन्य तमाम योजनाएं जो सरकार द्वारा प्रायोजित हैं, इन्हें नहीं मिल पा रही हैं. 90 साल के निवासी सदा ने बताया कि जवानी से लेकर इस उम्र तक कोई ऐसा नेता या अधिकारी नहीं आया जो मेरी तकलीफ को समझ कर उसे दूर कर सके. हां यह बात जरूर है कि जब चुनाव आता है तो नेता और समर्थक उन्हें रिक्शा से उठाकर ले जाते हैं और अपने पक्ष में मतदान करवाकर घर पहुंचा देते हैं.

गांव की तस्वीर

लोक लाज त्याग कर एक साथ रहने को मजबूर हैं महिलाएं

वहीं, दूसरी ओर महिलाओं का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है. एक छोटी सी झोपड़ी में 5 से 7 सदस्य एक साथ रहते हैं. उसमें सास-बहू का पर्दा भी है. ससुर भी हैं बेटा और बेटी भी हैं. महिलाओं ने कहा कि हमलोग लोकलाज त्याग कर एक साथ रहने को मजबूर हैं.

बेगूसराय: पिछड़ों की राजनीति करके बिहार में और देश में कई ऐसे नेता हैं जो सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गये, लेकिन जिले में दलितों की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. चाहे छोटा बच्चा हो या 90 साल का बूढ़ा. इस समुदाय के लोग अभी भी अपने उत्थान के लिए तारणहार की बाट जोह रहे हैं.

तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर
जिला मुख्यालय से सटे सदर प्रखंड अंतर्गत तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर है. यहां रहने वाले लोग वर्षों से घास फूस की टूटी-फूटी झोपड़ी में सड़क किनारे अपना जीवन-यापन करने को मजबूर हैं. हालत यह है कि धूप हो या बरसात इन्हें हर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

यहां गरीबी चरम पर

आर्थिक तौर पर यहां के लोग अपनी जरूरतों की पूर्ति में अक्षम साबित हो रहे हैं. यहां के लोगों को अभी तक 3 डिसमिल जमीन तक सरकार मुहैया नहीं करा पाई है, वैसे में इंदिरा आवास हो या अन्य तमाम योजनाएं जो सरकार द्वारा प्रायोजित हैं, इन्हें नहीं मिल पा रही हैं. 90 साल के निवासी सदा ने बताया कि जवानी से लेकर इस उम्र तक कोई ऐसा नेता या अधिकारी नहीं आया जो मेरी तकलीफ को समझ कर उसे दूर कर सके. हां यह बात जरूर है कि जब चुनाव आता है तो नेता और समर्थक उन्हें रिक्शा से उठाकर ले जाते हैं और अपने पक्ष में मतदान करवाकर घर पहुंचा देते हैं.

गांव की तस्वीर

लोक लाज त्याग कर एक साथ रहने को मजबूर हैं महिलाएं

वहीं, दूसरी ओर महिलाओं का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है. एक छोटी सी झोपड़ी में 5 से 7 सदस्य एक साथ रहते हैं. उसमें सास-बहू का पर्दा भी है. ससुर भी हैं बेटा और बेटी भी हैं. महिलाओं ने कहा कि हमलोग लोकलाज त्याग कर एक साथ रहने को मजबूर हैं.

Intro:डे प्लान स्टोरी
एंकर- बेगूसराय दलित महादलित की राजनीति कर बिहार में और देश में कई ऐसे कई ऐसे नेता है जो सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे लेकिन जिले में दलितों की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं। चाहे छोटा बच्चा हो या 90 वर्ष का बूढ़ा इस समुदाय के लोग अभी भी अपने उत्थान के लिए तारणहार की बाट जोह रहे हैं ।
एक रिपोर्ट


Body:vo-बेगूसराय जिला मुख्यालय से सटे सदर प्रखंड अंतर्गत तरैया महादलित टोले की स्थिति बद से बदतर है यहां रहने वाले लोग बरसों से टूटी फूटी झोपड़ी बनाकर सड़क किनारे अपना जीवन यापन कर रहे हैं ।हालात यह है कि धूप हो या बरसा इन्हें हर मुसीबतों का सामना करना होता है। आर्थिक दृष्टिकोण से बिल्कुल ही कमजोर यहां के लोग अपनी जरूरतों की पूर्ति में अक्षम साबित हो रहे है ।यहां के लोगों को अभी तक 3 डिसमिल जमीन तक सरकार मुहैया नहीं करा पाई है, वैसे में इंदिरा आवास हो या अन्य तमाम सुविधाएं जो सरकार द्वारा प्रायोजित है इन्हें नहीं मिल पा रही हैं ।
इस बाबत जब ग्रामीणों से बात की गई तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए।
90 वर्षीय लेबर सदा बताते हैं कि एक जवानी से लेकर 90 वर्ष की अवस्था मेरी हो चली अब मैं जब अपने से उठ नही सकता हूं ना चल सकता हूं ,इस उम्र तक कोई ऐसा नेता या अधिकारी नहीं आया जो मेरी तकलीफ को समझ कर उसे दूर कर सके, हां यह बात जरूर है कि जब चुनाव आता है तो नेता और समर्थक उन्हें रिक्शा से उठाकर ले जाते हैं और अपने पक्ष में मतदान करवाकर घर पहुंचा देते हैं।
बाइट- लेबर सदा वृद्ध
vo-वहीं दूसरी ओर महिलाओं का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है एक छोटे से झोपड़ी में 5 से 7 सदस्य एक साथ रहते हैं उसमें सास बहू का पर्दा भी है ससुर भी हैं बेटा भी बेटी भी है हमलोग लोक लाज त्याग कर एक साथ रहने को मजबूर हैं।
बाइट -कमला देवी ।
बाइट -सरोजनी देवी


Conclusion:fvo बहरहाल जो भी हो राज्य और केंद्र सरकार दावे जो कर लें लेकिन महादलितों की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नही किया जा सकता है जिस तरीके से 90 वर्ष तक के वृद्ध भी अपने तारणहार की बाट जोह रहे हैं तो इसे क्या माना जा सकता है ?
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