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रिक्शा चलाकर अपाहिज पति और बच्चों का भरन-पोषण कर रही है शकुंतला, समाज में बनी मिसाल

बेगूसराय की रहने वाली शकुंतला ने समाज में एक मिशाल कायम किया है. अपने अपाहिज पति और बच्चों की परवरिश के लिए उसने रिक्शा चलाने का काम शुरु किया. समाज ने इसके लिए उसपर काफी जुल्म किया, लेकिन उसने हार नहीं मानी.

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Published : Jul 25, 2019, 2:22 PM IST

शकुंतला

बेगूसराय: महिला सशक्तिकरण के इस दौड़ में आज महिलाएं धरती से लेकर आसमान तक का सफर तय कर रही है. ऐसी ही एक मिसाल बेगूसराय में देखने को मिल रही है. जहां एक महिला अपने अपाहिज पति और बच्चों की परवरिश के लिए समाज की रुढ़ि परंपरा से लड़कर रिक्शा चलाने का काम कर रही है.

रिक्शे को बनाया अपना हमसफर

अपने परिवार के भरन-पोषण के लिए बेगूसराय आजाद नगर काशिमपुर की रहने वाली शकुंतला ने रिक्शे को ही अपना हमसफर बना लिया. शकुंतला ने गांव की पगडंडियों से अपने सफर की शुरुआत की, जो आज शहर के सड़कों पर अपने रिक्शा को सरपट दौड़ाती है. उसने अपने जैसी कई महिलाओं के लिए मिशाल कायम किया है. समाज के द्वारा जुल्म किए जाने के बावजूद भी उसने हार नहीं मानी.

रोहतास
रिक्शाचालक शकुंतला

रिक्शा चलाने को लेकर पिटाई भी की गई
शकुंतला एक येसी ही महिला है जिसने जिंदगी की दुष्वारियों से लड़ने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया. रिक्शा चलाने को लेकर समाज में शकुंतला पर काफी जुल्म किया गया. यहां तक की उसकी पिटाई भी की गई. बावजूद इसके शकुंतला ने हार नहीं मानी. उसने किसी की भी परवाह किए बिना अपने अपाहिज पति की सेहत और बच्चों की शिक्षा के लिए सारे समाज के द्वारा दिए गए सारे जुल्म सह लिए.

रोहतास
ई-रिक्शा चलाती शकुंतला

मेहनत की कमाई से खरीदा ई-रिक्शा

समाज में आज उसकी एक अलग पहचान है. शकुंतला के जो रिश्तेदार कल तक समाज का विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे, आज खुलकर शकुंतला के पक्ष में खड़े हैं. दूसरों का रिक्शा चलाने वाली शकुंतला ने अपनी मेहनत की कमाई और कुछ रिश्तेदारों की मदद से खुद का ई-रिक्शा खरीद लिया. बच्चों को खाना खिलाकर स्कूल भेजने के बाद वह रोज ई-रिक्शा से घर के राशन के लिए पैसे जुटाने निकल जाती है. परिवार के लोग अब शकुंतला का भरपूर सहयोग कर रहे हैं.

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती शकुंतला

रिक्शे का हैंडल तक नहीं पकड़ती थी शकुंतला

कहते हैं अगर दिल में जज्बा हो और इरादों में बुलंदी हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. शकुंतला ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध करके दिखाया है. कल तक जो महिला रिक्शा का हैंडल तक नहीं पकड़ती थी, आज परिस्थितियों से जुझकर फॉर लेन पर अपने रिक्शा को सरपट दौड़ाती है. उसके इरादों में मजबूती थी. गरीबी से लड़ने के लिए उसने सारे सुख त्यागकर रिक्शा चलाने का फैसला लिया और एक मिशाल कायम किया.

काफी मुश्किल भरा सफर रहा

शकुंतला के जिंदगी का ये सफर काफी मुश्किल भरा रहा है. बावजूद इसके सबकुछ सहते हुए उसने इस सफर को बड़े आसानी से पार किया. आज शकुंतला की जिंदगी में खुशहाली वापस लौट चुकी है. वह अपने बच्चों को पढ़ाने से लेकर परिवार का परवरिश तक कर रही है. शकुंतला समाज में रहने वाली उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा के समान है, जो समाज के रुढ़ि परंपरा को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है.

बेगूसराय: महिला सशक्तिकरण के इस दौड़ में आज महिलाएं धरती से लेकर आसमान तक का सफर तय कर रही है. ऐसी ही एक मिसाल बेगूसराय में देखने को मिल रही है. जहां एक महिला अपने अपाहिज पति और बच्चों की परवरिश के लिए समाज की रुढ़ि परंपरा से लड़कर रिक्शा चलाने का काम कर रही है.

रिक्शे को बनाया अपना हमसफर

अपने परिवार के भरन-पोषण के लिए बेगूसराय आजाद नगर काशिमपुर की रहने वाली शकुंतला ने रिक्शे को ही अपना हमसफर बना लिया. शकुंतला ने गांव की पगडंडियों से अपने सफर की शुरुआत की, जो आज शहर के सड़कों पर अपने रिक्शा को सरपट दौड़ाती है. उसने अपने जैसी कई महिलाओं के लिए मिशाल कायम किया है. समाज के द्वारा जुल्म किए जाने के बावजूद भी उसने हार नहीं मानी.

रोहतास
रिक्शाचालक शकुंतला

रिक्शा चलाने को लेकर पिटाई भी की गई
शकुंतला एक येसी ही महिला है जिसने जिंदगी की दुष्वारियों से लड़ने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया. रिक्शा चलाने को लेकर समाज में शकुंतला पर काफी जुल्म किया गया. यहां तक की उसकी पिटाई भी की गई. बावजूद इसके शकुंतला ने हार नहीं मानी. उसने किसी की भी परवाह किए बिना अपने अपाहिज पति की सेहत और बच्चों की शिक्षा के लिए सारे समाज के द्वारा दिए गए सारे जुल्म सह लिए.

रोहतास
ई-रिक्शा चलाती शकुंतला

मेहनत की कमाई से खरीदा ई-रिक्शा

समाज में आज उसकी एक अलग पहचान है. शकुंतला के जो रिश्तेदार कल तक समाज का विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे, आज खुलकर शकुंतला के पक्ष में खड़े हैं. दूसरों का रिक्शा चलाने वाली शकुंतला ने अपनी मेहनत की कमाई और कुछ रिश्तेदारों की मदद से खुद का ई-रिक्शा खरीद लिया. बच्चों को खाना खिलाकर स्कूल भेजने के बाद वह रोज ई-रिक्शा से घर के राशन के लिए पैसे जुटाने निकल जाती है. परिवार के लोग अब शकुंतला का भरपूर सहयोग कर रहे हैं.

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती शकुंतला

रिक्शे का हैंडल तक नहीं पकड़ती थी शकुंतला

कहते हैं अगर दिल में जज्बा हो और इरादों में बुलंदी हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. शकुंतला ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध करके दिखाया है. कल तक जो महिला रिक्शा का हैंडल तक नहीं पकड़ती थी, आज परिस्थितियों से जुझकर फॉर लेन पर अपने रिक्शा को सरपट दौड़ाती है. उसके इरादों में मजबूती थी. गरीबी से लड़ने के लिए उसने सारे सुख त्यागकर रिक्शा चलाने का फैसला लिया और एक मिशाल कायम किया.

काफी मुश्किल भरा सफर रहा

शकुंतला के जिंदगी का ये सफर काफी मुश्किल भरा रहा है. बावजूद इसके सबकुछ सहते हुए उसने इस सफर को बड़े आसानी से पार किया. आज शकुंतला की जिंदगी में खुशहाली वापस लौट चुकी है. वह अपने बच्चों को पढ़ाने से लेकर परिवार का परवरिश तक कर रही है. शकुंतला समाज में रहने वाली उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा के समान है, जो समाज के रुढ़ि परंपरा को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है.

Intro:एंकर- कहते है कि जिद के आगे जीत है ,  कुछ येसी ही दास्तान है बेगुसराय की शाकुन्तला की जिसने अपाहिज पति और बाल बच्चों की परवरिश के लिए , समाज की रुढि वादी परंपरा को तोड़कर रिक्शा चलाने का काम किया । गावँ की पगडंडियों से शुरू हुए ये सफर आज सड़को पर भले ही सरपट दौड़ती हो पर इसके लिए समाज ने न सिर्फ शकुंतला को प्रताड़ित किया बल्कि उसकी पिटाई भी की गई । पर अपाहिज पति और बाल बच्चो की शिक्षा दीक्षा के लिए शकुंतला ने किसी परवाह नही की और अपनी मंजिल की तलाश में रिक्शा को ही अपना हमसफ़र चुना। शकुंतला पर भले है सैकड़ों जुल्म ढाए गए हो पर शकुंतला ने जिद के आगे हार नही मानी और आज उसकी एक अलग पहचान है ।





Body:महिला सशक्तिकरण की इस दौड़ में आज महिलाएं धरती से लेकर आसमान तक का सफर तय कर रही है । पर आपने कम ही सुना होगा कि कोई महिला रिक्सा चलाकर अपने और अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हो। बेगुसराय आजाद नगर काशिमपुर की रहने वाली शकुंतला एक येसी ही महिला है जिसने जिंदगी की दुष्वारियों से लड़ने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया । अपाहिज पति और तीन मासूम बच्चो  की प्रतिपाल के लिए लिया गया ये फैसला समाज के लोगो को नापसंद था। इसके लिए शकुंतला को न सिर्फ ताना बाना से गुजरना पड़ा,  बल्कि समाज के हाथों मार भी खानी पड़ी । 
बाइट - शकुंतला
पर शकुंतला ने अपनी ज़िद के आगे किसी की एक न सुनी और उसने गरीवी और मुफलिसी से लड़ने के लिए रिक्शा चलनें का फैसला किया । कल तक रिक्सा का हैंडल तक नही पकड़ पाने वाली शकुंतला ने गावँ की पगडंडियों से इसकी शुरुआत की जो अब फ़ॉर लेन पर भी सरपट दौड़ती है । जिंदगी का ये सफर भरे ही मुश्किल भरा हो पर आज उसकी जिंदगी में खुशी है कि वो अपने बच्चों को पढ़ाने से लेकर परिवार का परवरिश कर रही है ।
बाइट - शकुंतला
शकुंतला को जानने वाले उसके रिश्तेदार या सगे संबंधी जो कल तक समाज का बिरोध करने का साहस नही कर पाते थे आज खुल कर शकुंतला के पक्ष में खड़े है वही शकुंतला के कार्य की सराहना कर रहे है ।
बाइट अशोक रॉय भैया
कल तक दूसरे का रिक्शा चलाने वाली शकुंतला ने अपनी मेहनत से जमा की गई रुपये और कुछ रिश्तेदारों की मदद से अपना ई रिक्शा खरीद लिया है । बच्चो का खाना बनाकर खिलाने और रोज स्कूल भेजने के बाद, शकुंतला ई रिक्शा की हर दिन साफ सफाई के बाद अपनी मंजिल की तलाश में निकल पड़ती है । और शाम ढलने से पहले घर की जवाबदेही निभाने पहुंच जाती है । रिश्तेदारों की माने तो उसके बेसहारा जीवन मे रिक्शा ने बहुत बड़ा सहारा दिया है । परिवार के लोगो का अब शकुंतला का भरपूर सहयोग करते है 

बाइट -रामाशीष शर्मा - मौसा



Conclusion:कुल मिलाकर शकुंतला आज किसी परिचय का मोहताज नही है । शुरुआती झंझावातों के बीच अब उसकी जिंदगी की गाड़ी आराम से रिक्शे की बदौलत आगे खिंच रही है । मुसाफिरों का प्यार और शकुंतला की मेहनत से आज शकुंतला को एक नई पहचान दी है ।
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