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Banka Mandar Talhati : 100 साल से चल रहा पूजा पाठ, सफा अनुयायी 10 से 14 जनवरी तक करते हैं पूजा पाठ

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Published : Jan 13, 2023, 6:18 PM IST

Banka News: बांका में सफा अनुयायी पिछले 100 सालों से पूजा पाठ कर रहे हैं. इन लोगों के पूजा पाठ का मानना है कि सभी आदिवासी समाज के लोग बुराईयों को छोड़कर प्रेम और दया को अपनाएं. पढ़ें पूरी खबर...

बांका के मंदार
बांका के मंदार

बांका: बिहार के बांका में 100 साल से सफा धर्मावलम्बियों द्वारा पूजा पाठ किया (Worship Of safa people In Banka) जाता है. मंदार की तलहटी में आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा बुराईयों को समाप्त करने के लिए इसकी पहल की गई है. जो आज भी मंदार की तलहटी में शोभायमान है. इस पूजा का लक्ष्य यह था कि आदिवासी समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करने पर जोर दिया जाए. इसके साथ ही प्रेम और दया को अपने जीवन में अपनाकर चलते रहना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः कालचक्र पूजा : विदेशियों की इसमें क्यों होती है आस्था, क्या है बौद्धों की विशेष पूजा

मंदार तलहटी में अनुयायी करेंगे पूजा पाठ: जिले के मंदार तलहटी में आज भी मकर संक्रांति के अवसर पर दया की बाती से प्रेम का दीपक जलाया जाता है. हर साल इस प्रेम दीपक के उजाले से मंदार की तलहटी देखने को मिलती हैं. बताया जाता है कि लगभग 100 सालों पहले एक व्यक्ति चंदर दास ने प्रेम के इस सफा पंथ की शुरुआत की थी. इसके तहत उनका लक्ष्य यह था कि आदिवासी समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करने के साथ ही प्रेम और दया को अपनाकर जीवन बिताने पर लोग विचार करें. उस समय से आज तक इस पंथ के लोग मांस, मदिरा, समेत प्याज-लहसुन और बलि जैसी प्रथाओं से भी दूरी बनाकर रहना पसंद करते हैं.


पिछले 100 सालों से की जा रही पूजा: बताया जाता है कि पिछले कई सालों से 10 से 14 जनवरी तक ये मंदार के पास कड़ाके की ठंड में भी जमा होकर अपने धार्मिक अनुष्ठान के साथ मानवता का यह संकल्प दोहराते हैं. इनलोगों के संकल्प में शराब जैसे विष से दूर रहने की बात कही जाती है. वहीं हर साल की भांति इस बार भी सैकड़ों लोग इस मंदार की तलहटी में अपने इस संकल्प को दोहराने के लिए एक बार फिर से जमा हुए हैं.

1934 में हुई सफा धर्म की स्‍थापना: गौरतलब है कि सफा धर्मावलंबी के लोग पापहरणी सरोवर में स्नान करने के बाद सफा धर्म के संस्थापक चंदर दास की पूजा-अर्चना करते हैं. इसलिए साथ ही साफ सुथरी और सात्विक विचारधारा के कारण ही इस धर्म का नाम सफा पड़ा है. जानकारी के अनुसार सबलपुर निवासी स्वामी चंदर दास ने 1934 में सफा धर्म की स्थापना की थी. उस समय संथाल समाज में नशे के साथ बलि प्रथा का काफी प्रचलन था. जिसे समाप्त करने के लिए चंदर दास ने अभियान चलाया. जिसके बाद आजतक बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा में उनके एक लाख से अधिक अनुयायी हैं. हालांकि चंदर दास का देहांत 1974 में हो गया था. इस धर्म की बात करते हुए चंदर दास के सेवक निर्मल दास ने बताया कि 'सनातन धर्म का एक रूप ही सफा धर्म है'.

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बांका: बिहार के बांका में 100 साल से सफा धर्मावलम्बियों द्वारा पूजा पाठ किया (Worship Of safa people In Banka) जाता है. मंदार की तलहटी में आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा बुराईयों को समाप्त करने के लिए इसकी पहल की गई है. जो आज भी मंदार की तलहटी में शोभायमान है. इस पूजा का लक्ष्य यह था कि आदिवासी समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करने पर जोर दिया जाए. इसके साथ ही प्रेम और दया को अपने जीवन में अपनाकर चलते रहना चाहिए.

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मंदार तलहटी में अनुयायी करेंगे पूजा पाठ: जिले के मंदार तलहटी में आज भी मकर संक्रांति के अवसर पर दया की बाती से प्रेम का दीपक जलाया जाता है. हर साल इस प्रेम दीपक के उजाले से मंदार की तलहटी देखने को मिलती हैं. बताया जाता है कि लगभग 100 सालों पहले एक व्यक्ति चंदर दास ने प्रेम के इस सफा पंथ की शुरुआत की थी. इसके तहत उनका लक्ष्य यह था कि आदिवासी समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करने के साथ ही प्रेम और दया को अपनाकर जीवन बिताने पर लोग विचार करें. उस समय से आज तक इस पंथ के लोग मांस, मदिरा, समेत प्याज-लहसुन और बलि जैसी प्रथाओं से भी दूरी बनाकर रहना पसंद करते हैं.


पिछले 100 सालों से की जा रही पूजा: बताया जाता है कि पिछले कई सालों से 10 से 14 जनवरी तक ये मंदार के पास कड़ाके की ठंड में भी जमा होकर अपने धार्मिक अनुष्ठान के साथ मानवता का यह संकल्प दोहराते हैं. इनलोगों के संकल्प में शराब जैसे विष से दूर रहने की बात कही जाती है. वहीं हर साल की भांति इस बार भी सैकड़ों लोग इस मंदार की तलहटी में अपने इस संकल्प को दोहराने के लिए एक बार फिर से जमा हुए हैं.

1934 में हुई सफा धर्म की स्‍थापना: गौरतलब है कि सफा धर्मावलंबी के लोग पापहरणी सरोवर में स्नान करने के बाद सफा धर्म के संस्थापक चंदर दास की पूजा-अर्चना करते हैं. इसलिए साथ ही साफ सुथरी और सात्विक विचारधारा के कारण ही इस धर्म का नाम सफा पड़ा है. जानकारी के अनुसार सबलपुर निवासी स्वामी चंदर दास ने 1934 में सफा धर्म की स्थापना की थी. उस समय संथाल समाज में नशे के साथ बलि प्रथा का काफी प्रचलन था. जिसे समाप्त करने के लिए चंदर दास ने अभियान चलाया. जिसके बाद आजतक बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा में उनके एक लाख से अधिक अनुयायी हैं. हालांकि चंदर दास का देहांत 1974 में हो गया था. इस धर्म की बात करते हुए चंदर दास के सेवक निर्मल दास ने बताया कि 'सनातन धर्म का एक रूप ही सफा धर्म है'.

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