बांका: जिले का मंदार स्थित ऐतिहासिक पापहरणी सरोवर की धार्मिक मान्यता है. इस तालाब में डुबकी लगाने से शरीर निरोग हो जाता है. इस कारण पूर्णिमा, अमावस्या या अन्य कोई त्योहार पर सरोवर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. मकर संक्रांति पर यहां श्रद्धालुओं में स्नान के लिए होड़ लगती है क्योंकि इसी दिन इस सरोवर की खुदाई हुई थी.
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मकर संक्रांति पर पापहरणी सरोवर पर श्रद्धालुओं की भीड़: मंदार पहाड़ पर मौजूद अभिलेख के अनुसार सातवीं सदी में मगध के राजा आदित्य सेन अपनी पत्नी के साथ यहां आए थे. वे बहुत ही धार्मिक थे. इतिहासकार मनोज मिश्र बताते हैं कि तब छोटे से जलस्रोत के रूप में मंदार में मौजूद मनोहर कुंड था. इस कुंड में स्नान करने से राजा आदित्य सेन का चर्म रोग दूर होने लगा था. इसके बाद उन्होंने मकर संक्राति पर इसकी विस्तृत खुदाई करवाई थी. तब इस सरोवर को पापहरणी सराेवर से बुलाया जाने लगा.
ईष्टदेव की होती है पूजा: आगे चलकर सफा धर्म के संस्थापक सह मंदार पहाड़ स्थित सबलपुर निवासी चंदर दास ने भी मंदार में सफा आश्रम की स्थापना 1940 में मकर संक्राति में ही की थी. इनके बिहार सहित झारखंड, बंगाल, नेपाल, ओडिशा सहित अन्य प्रांतों में एक लाख से अधिक अनुयायी हैं. इस कारण मकर संक्राति पर्व के साथ ही आदिवासियों का पवित्र पत्र सोहराय (वंदना) भी 11 से लेकर 15 जनवरी तक मनाया जाता है. इसमें विभिन्न प्रांतों से पहुंचे आदिवासी मंदार को अपना तीर्थस्थल मानकर भगवान राम, शिव और अपने ईष्टदेव मरांग की पूजा करते हैं.
एक महीने तक लगता है मेला: मंदार पर्वत के आस-पास पहले पूरे मैदान में एक माह का मेला आयोजित किया जाता है. इसका उद्घाटन हर वर्ष कोई न कोई मंत्री भी करते हैं. इस मेले के उद्घाटन करने का सौभाग्य पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत को भी प्राप्त हो चुका है. जबकि बिहार की कई मंत्री और मुख्यमंत्री भी इस महीने भर चलने वाले मेले का उद्घाटन कर चुके हैं. इस वर्ष इस मेले का उद्घाटन बिहार आपदा प्रबंधन मंत्री शहनाज आलम के हाथों होगा.
लाखों की जुटी भीड़:संबंध में सफा धर्म के वर्तमान आचार्य निर्मल दास ने बताया कि सफा धर्म की स्थापना के साथ ही सोहराय पर्व होने पर यहां लाखों की भीड़ जुटती है. 14 जनवरी को पचास हजार से अधिक लोगों की भीड़ स्नान के लिए यहां जुटी है. सभी लोग मंदार पहाड़ स्थित भगवान शिव, राम , सफा धर्म के संस्थापक चंदर दास व आदिवासी अपने ईष्ट देव की पूजा अर्चना के लिए जुटते हैं.