अररिया: दीपावली के करीब आते ही कुम्हार अपने पारंपरिक काम में जुट गए हैं. लेकिन इस बार इनके चेहरे पर दोहरी खुशी है. कुम्हारों का मानना है कि सरकार की तरफ से प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से उनके रोजगार में अब और बढ़ोतरी होने की उम्मीद जग गई है.
कुल्हड़ के आने लगे हैं आर्डर
दरअसल अररिया के कुम्हार टोली में मात्र चार ही परिवार बचे हैं. जो इस पारंपरिक कार्य से जुड़े हुए हैं. इनका कहना है कि हमारा कारोबार लगभग बंदी के कगार पर पहुंच चुका था. लेकिन सरकार के प्लास्टिक बंदी के फैसले के बाद, हमें कुछ उम्मीद जगी है और अब कुल्हड़ के आर्डर भी आने लगे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दीपावली का समय है, इसलिए हम लोग दिया, धूपदानी और मिट्टी के बर्तनों को बनाने में जुटे हुए हैं.
सरकार नहीं दे रही बढ़ावा
कुम्हारों ने बताया कि चाइनीज लाईट की बिक्री कम होने पर उनके व्यवसाय में भी बढ़ोतरी हुई है और अब लोग दिये की खरीदारी करते हैं. उनका कहना है कि सरकारी बढ़ावा नहीं मिलने के कारण उनके बच्चे इस काम से मुंह मोड़ने लगे हैं, जबकि कई पीढ़ियों से उनका ये कारोबार चलता आ रहा था.
कुम्हार के नाम के पीछे लगता है पंडित
वहीं, सनातन धर्म के जानकार कहते हैं कि भगवान ने कुम्हारों को भी काफी महत्व दिया था. क्योंकि ये भी एक रचयिता हैं. इसीलिए जिस तरह ब्राह्मणों के नाम के आगे पंडित लगाया जाता है. उसी तरह कुम्हार के नाम के पीछे पंडित लगता है और जब तक पृथ्वी है, तब तक उनकी आवश्यकता कम नहीं होगी.